नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि सभी राज्यों को खरीफ लक्ष्य प्राप्त करने और किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य मिशन मोड में रखना चाहिए। खरीफ फसलें 2020 पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, उन्होंने राज्यों को आश्वासन दिया कि भारत सरकार राज्यों के सामने आने वाली सभी बाधाओं को दूर करेगी।
राष्ट्रीय खरीफ सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य लॉकडाउन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए खरीफ की खेती की तैयारियों के बारे में राज्यों के परामर्श से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करना और कदम उठाना है।
श्री तोमर ने कहा कि कोरोनावायरस के कारण उत्पन्न असाधारण स्थिति का कृषि क्षेत्र को साहस और दृढ़ता से मुकाबला करना होगा और सभी को इस समय उठकर काम करना होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सुनिश्चित किया है कि “गांव, गरीब और किसान” इस संकट के दौरान परेशान न हों। श्री तोमर ने राज्यों से आग्रह किया कि वे प्रत्येक किसान को दो योजनाओं – प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के बारे में समझाएं।
मंत्री महोदय ने राज्यों को सूचित किया कि अखिल भारतीय कृषि मालवाहक कॉल सेंटर को यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया है कि लॉकडाउन के कारण कृषि प्रभावित नहीं हो। उन्होंने ई-एनएएम का बड़े पैमाने पर उपयोग करने के लिए भी कहा। श्री तोमर ने राज्यों का आह्वान किया कि वे एक दूसरे से दूरी बनाए रखने और सामाजिक दायित्व संबंधी नियमों का पालन करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय की कृषि क्षेत्र को दी गई छूट और ढील को लागू करें।
वर्ष 2020-21 के लिए खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 298.0 मिलियन टन निर्धारित किया गया है। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान, खाद्यान्न उत्पादन लक्ष्य 291.10 मिलियन टन रखा गया है जबकि विभिन्न फसलों के क्षेत्र कवरेज और उत्पादकता में वृद्धि के कारण अधिक उत्पादन होकर लगभग 292 मिलियन टन होने का अनुमान है।
कृषि राज्य मंत्री, श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने राष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभों को किसानों को समझाया जाना चाहिए। श्री रूपाला ने कहा कि हमारे देश में कृषि और बागवानी क्षेत्र कई राज्यों में आर्थिक विकास के प्रमुख प्रेरक तत्व बन चुके हैं। पिछले वर्ष (2018-19) में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन होने के अलावा, देश ने लगभग 25.49 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 313.85 मिलियन मीट्रिक टन बागवानी उत्पादन किया, जो फलों के कुल विश्व उत्पादन का लगभग 13 प्रतिशत है। चीन के बाद भारत सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
अपने संबोधन में, कृषि राज्य मंत्री श्री कैलाश चौधरी ने कहा कि वर्षा के पैटर्न में बदलाव के साथ मौसम में बदलाव की वर्तमान स्थिति में 2018-19 में खाद्यान्न का 285 मिलियन टन रिकॉर्ड उत्पादन होना उल्लेखनीय है जिसके 2019-20 के दौरान बढ़कर 292 मिलियन होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि यह सब तकनीकी प्रगति के कारण संभव हो रहा है, जिसमें केन्द्र और राज्य सरकारों के समर्पित और समन्वित प्रयासों के साथ-साथ सुधार भी शामिल है।
कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण सचिव श्री संजय अग्रवाल ने अपने समापन भाषण में कहा कि हालांकि हमारा देश खाद्य अधिशेष वाला देश बन गया है, लेकिन फिर भी हमें ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि और बागवानी क्षेत्रों के उत्पादन और उत्पादकता में तेजी लानी होगी। उन्होंने किसानों को फसलों के उत्पादन और किसानों की आय बढ़ाने के लिए मंत्रालय द्वारा शुरू की गई प्रमुख नई पहलों के बारे में बताया, जैसे कि – पानी और उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा देते हुए सबसे प्रमुख प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (पीएमकेएसवाय) के तहत “प्रति बूंद अधिक फसल” की गहनता की पहल, परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाय), संशोधित किसान हितैषी “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाय)”, किसानों को एक इलेक्ट्रॉनिक ऑनलाइन व्यापार मंच प्रदान करने के लिए ई-एनएएम पहल, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना की गहनता, प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना (पीएम-केपीवाय) की केंद्रीय क्षेत्र की योजना की शुरुआत, तिलहन, दलहन और फसलों के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने के लिए पीएम-आशा योजना की शुरुआत, और कोविड-19 को देखते हुए लॉकडाउन की स्थिति में किसानों को बेहतर आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने हेतु कृषि प्रबंधन के लिए जो एडवाइज़री / दिशा निर्देश जारी किए गए हैं उनके मद्देनजर प्रत्यक्ष विपणन के लिए विभिन्न प्रावधानों के साथ उत्पादन लागत के कम से कम 2 गुना के स्तर पर एमएसपी देना।
खरीफ के मौसम में और खासकर महामारी लॉकडाउन के दौरान फसल प्रबंधन के लिए रणनीतियों पर एक विस्तृत प्रस्तुति देते हुए कृषि आयुक्त डॉ. एस. के. मल्होत्रा ने कहा कि पिछले दो दशकों (1988-89 से 2018-19) के दौरान खेती योग्य / कृषि भूमि में लगभग 2.74 मिलियन हेक्टेयर तक की कमी आई है। हालांकि, इसी अवधि के दौरान सकल फसली क्षेत्र 182.28 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 196.50 मिलियन हेक्टेयर हो गया है, जिसमें विशुद्ध बोया गया क्षेत्र काफी हद तक 140 मिलियन हेक्टेयर पर अपरिवर्तित रहा है। उन्होंने आगे कहा कि विभिन्न तकनीकी और नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण खाद्यान्न का उत्पादन 169.92 मिलियन टन से बढ़कर 284.96 मिलियन टन हुआ है।
जहां तक रबी की फसलों का संबंध है, तो यह निर्णय लिया गया है कि सभी राज्य ग्राम / ब्लॉक स्तरों पर इसकी खरीद सुनिश्चित करेंगे क्योंकि किसानों को लॉकडाउन के कारण ब्लॉक से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, सभी राज्य किसानों से उत्पादित फसल का प्रत्यक्ष विपणन / खरीद करने के लिए कदम उठा रहे हैं।
सभी राज्यों को सलाह / दिशा निर्देश जारी किए गए हैं और देश भर में ग्राम / ब्लॉक स्तरों पर इस तरह के आदानों की सही समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बीजों और उर्वरकों से लदे ट्रकों / वाहनों की आवाजाही के लिए छूट दी गई है। सरकार ने किसानों को इलेक्ट्रॉनिक ऑनलाइन व्यापार मंच और बेहतर आर्थिक लाभ प्रदान करने के लिए ई-एनएएम प्रणाली को भी मजबूत किया है।
पिछले दशकों में कई प्रयासों के बावजूद, बड़ा कृषि क्षेत्र अभी भी मानसून पर निर्भर है और मानसून की विफलता के कारण, किसानों को अपनी फसलों के अस्तित्व के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं को हल करने के लिए “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” (पीएमकेएसवाय) को कार्यान्वित किया जा रहा है जिसका उद्देश्य सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में उपलब्ध जल उपयोग दक्षता में सुधार लाना, सटीक सिंचाई और अन्य पानी की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों के अपनाए जाने को बढ़ावा देना है।
राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा मिशन (एनएफएनएसएम) की अग्रिम योजना और कार्यान्वयन के लिए राज्य कार्य योजना (एसएपी) के प्रारूप को सरल और कम करके लगभग एक पृष्ठ का कर दिया गया है, ताकि राज्यों को तैयार की गई एसएपी मिल सकें और उसे वे न्यूनतम प्रयासों के साथ सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बाद भारत सरकार के पास जमा करवा सकें। राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा मिशन मुख्य रूप से खाद्यान्न उत्पादन के लिए एक जनादेश है और देश भर में राज्य कृषि विभागों के माध्यम से प्रोजेक्टाइज़्ड मोड पर लागू किया जाता है।
एसएपी प्राप्त होने के बाद, एक सप्ताह के समय में उसकी जांच की जाती है और कार्यान्वयन एजेंसियों को अनुमोदन दिया जाता है। परियोजना निगरानी दल केंद्रीय और राज्य स्तर पर मौजूद होते हैं ताकि एसएपी तैयार करने और क्षेत्र दौरे व किसानों से बातचीत के माध्यम से वे मार्गदर्शन कर सकें। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न हस्तक्षेपों की जियो-टैगिंग भी की जाती है।
विशेष सचिव, अतिरिक्त सचिव (कृषि) और कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, आईसीएआर के वरिष्ठ अधिकारियों और विभिन्न राज्य सरकारों के अधिकारियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया। कृषि क्षेत्रों में खरीफ सीजन के दौरान क्षेत्र कवरेज, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए संबंधित राज्यों में अपनाई जाने वाली रणनीतियों, चुनौतियों, उपलब्धियों को साझा करने के लिए पांच समूहों में सभी राज्यों के कृषि उत्पादन आयुक्तों और प्रमुख सचिवों के साथ एक बातचीत सत्र भी आयोजित किया गया।