नई दिल्ली: इस्पात और खान मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में आज बेंगलुरु, कर्नाटक में इस्पात और खान मंत्रालय से संबद्ध संसदीय सलाहकार समिति की बैठक आयोजित की गई।
भारतीय इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान और विकास और अन्वेषण बढ़ाने के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए इस्पात और खान मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्यों का गार्डन सिटी बेंगलुरु में स्वागत करते हुए श्री तोमर ने कहा कि अभी तक भारत, चीन, जापान और अमरिका के बाद विश्व में इस्पात का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश था। इस कलेंडर वर्ष के पहले पांच महीनों के दौरान विश्व इस्पात उत्पादन में भारत ने तीसरा स्थान हासिल किया है। उन्होंने कहा कि भारतीय इस्पात उद्योग एक बहुत अच्छी गति से विकास कर रहा है और पिछले वर्ष के दौरान कच्चे इस्पात उत्पादन में देश की प्रगति 8 प्रतिशत से अधिक हुई है। फिर भी प्रति व्यक्ति इस्पात खपत बहुत कम है। जहां विश्व की औसत खपत 216 किलो ग्राम है वहीं भारत में यह खपत केवल 60 किलोग्राम है। इसमें संदेह नहीं कि कम खपत भारतीय इस्पात उद्योग के लिए व्यापक विकास की संभावनाओं को दर्शाती है। भारत ने 2025 तक 300 मिलियन टन (एमटी) उत्पादन लक्ष्य निर्धारित किया है और इस्पात मंत्रालय इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्य योजना और नीति तैयार कर रहा है।
श्री तोमर ने कहा कि इस्पात उद्योग ने पहले ही विस्तार का रूख अपना रखा है। पुराने इस्पात संयंत्रों को आधुनिक बना कर विस्तार किया जा रहा है। आधुनिक तकनीकियों से युक्त नये ग्रीन फिल्ड संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं। उन्होंने सदस्यों को बताया कि अभी हाल में प्रधानमंत्री ने आईआईएससीओ इस्पात संयंत्र पर लगी भारत की सबसे बड़ी 4160 क्यूबिक मीटर की बलास्ट फर्नेस देश को समर्पित की थी। लगभग 4000 क्यूबिक मीटर की अनेक बलास्ट फर्नेस जो विश्व स्तर के निपुणता मानदंडों से युक्त हैं देश में प्रचालित हैं। भारतीय इस्पात उद्योग के दीर्घकालीन विकास के लिए अनुसंधान और विकास के बारे में उन्होंने कहा कि कच्ची सामग्री के क्षेत्र में आ रही समस्याओं को दूर किए जाने की जरूरत है ताकि अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी हस्ताक्षेपों के द्वारा कम ग्रेड के खनिज और अधिक राख वाले कोयले का उपयोग किया जा सके। उन्होंने उन मूल्य संबर्द्धन उत्पादों के विकास के लिए अनुसंधान और विकास की जरूरत पर जोर दिया जिसके लिए हम आयात पर निर्भर हैं। द्वितीयक इस्पात उद्योग के लिए भी अनुसंधान और विकास हस्तक्षेपों की जरूरतों के बारे में उन्होंने कहा कि हमने सभी बड़ी इस्पात कंपनियों को सलाह दी है कि वे अपनी कुल बिक्री की एक प्रतिशत राशि का निवेश अनुसंधान और विकास की स्थापना के कार्य में करें। सेल का रांची में अनुसंधान और विकास केन्द्र हैं/ आरआईएनएल अपनी अनुसंधान और विकास ढांचे का विस्तार कर रहा है। निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों ने भी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान एवं विकास सुविधाएं स्थापित की हैं।
उन्होंने सदस्यों को बताया कि मंत्रालय नए संस्थान एसआरटीएमारआई की स्थापना में मदद कर रहा है और इस संस्थान की निधि में 50 प्रतिशत योगदान कर रहा है। सैद्धांतिक रूप से एसआरटीएमआई की स्थापना को मंजूरी दे दी गई है और प्रमुख भारतीय स्टील कंपनियों के सीईओ ने 200 करोड़ रुपये की प्रारंभिक निधि की एक पहल के रूप में भागीदारी और वित्तीय योगदान के लिए इस्पात मंत्रालय के साथ अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। भारतीय लोहा और इस्पात उद्योग नवीनतम प्रौद्योगिकी का विकास करके और पायलट/ प्रदर्शन स्तर पर अनुसंधान और विकास के माध्यम से भारतीय कच्ची सामग्री का उपयोग करके 2025 तक 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा।
मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित करते हुए इस्पात सचिव श्री राकेश सिंह ने कहा कि मंत्रालय विभिन्न नीति कदमों के द्वारा इस्पात उद्योग की उन्नति और विकास में सहायता प्रदान कर रहा है। इस्पात मंत्रालय ने 2025 तक इस्पात की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 300 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी है और मंत्रालय इस बारे में अनुवर्ती कार्यवाही कर रहा है। अनेक संयंत्रों का विस्तार किया जा चुका है और सेल अपनी क्षमता के आधुनिकीकरण और विस्तार की प्रक्रिया में है। वर्तमान में इसका स्तर 12.8 मिलियन टन है जिसे बढ़ाकर 21.4 मिलियन टन किया जाना है। उन्होंने बताया कि इस्पात उद्योग के अनुसंधान और विकास क्षेत्र में सुधार हो रहा है। जीरो डिफेक्ट और जीरो इफेक्ट के माध्यम से देश में इस्पात की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्पात उद्यमियों के लिए अपने बिक्री व्यापार की एक प्रतिशत राशि अनुसंधान और विकास पर खर्च करने का हमने लक्ष्य रखा है जिसके लिए अधिक समर्पित अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रमों की जरूरत है।
खान सचिव श्री बलविन्दर कुमार ने सदस्यों को बताया कि खान और खनिज (विकास और विनियमन ) (संशोधन) अधिनियम 2015 खनन उद्योग की बढ़ती समस्याओं को दूर करने के लिए आवश्यक हो गया है। इस संशोधन से खनिज रियायतों की मंजूरी में विवेक का प्रयोग समाप्त कर दिया गया है। सभी खनिज रियायतें संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अब नीलामियों के माध्यम से दी जाती हैं जिससे इस कार्य में अधिक पारदर्शिता आई है। इसका अर्थ यह भी है कि सरकार को खनन क्षेत्र से अधिक हिस्सा मिलेगा। उन्होंने कहा कि संशोधित अधिनियम 2015 खनन होने वाले सभी जिलों में जिला खनिज प्रतिष्ठान (डीएमएफ) को आवश्यक बनाता है। डीएमएफ में रॉयल्टी दर की केवल एक तिहाई राशि का अंशदान करना है। जहां तक नीलामी द्वारा दी जाने वाली नई रियायतों का संबंध है वे वर्तमान में दी जा रही रियायतों के संबंध में रॉयल्टी से अधिक नहीं होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय खनन उद्योग ने अभी तक इस प्रकार का उत्खनन नहीं देखा है जैसा कि अन्य देशों में होता है। संशोधित अधिनियम में माइनिंग खनन लीज धारकों के अंशदान से स्थापित राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास का प्रावधान है। इससे सरकार को उत्खनन के लिए समर्पित निधि मिलेगी। राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास खनन क्षेत्र में अन्वेषण में योगदान करने के लिए स्थापित किया जा रहा है। इसके अलावा हस्तांतरण के प्रावधान से इस क्षेत्र में भारी निवेश के प्रवाह की अनुमति मिलेगी जिससे खनन में कार्यकुशलता में वृद्धि होगी। गैर कानूनी खनन के खिलाफ कठोर प्रावधानों के बारे में उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत अब पांच वर्ष की अधिकतम सजा या पांच लाख रुपये प्रति हैक्टेयर का जुर्माना किया जाएगा। श्री विष्णु देव साई इस्पात और खान राज्यमंत्री भी इस बैठक में उपस्थित थे।
विशिष्टताएं-
-भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है।
-देश में 2014-15 के दौरान 88.25 मिट्रिक टन (एमटी) उत्पादन हुआ।
– वर्ष 2015 के पहले पांच महीनों में भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बना। -भारत जल्दी ही विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बनने के पथ पर है।
-देश में प्रति व्यक्ति इस्पात खपत 60 किलो ग्राम है जबकि विश्व में औसत खपत 216 किलो ग्राम है। इस प्रकार अधिक विकास संभावनाएं मौजूद हैं।
-भारत ने 2025 तक 300 मिट्रिक टन (एमटी)उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
–भारत के इस्पात उद्योग की प्रतिस्पर्धा के लिए अनुसंधान एवं विकास निवेश में बढ़ोतरी और नई प्रौद्योगिकियों को अपनाना आवश्यक हो गया है।