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1965 के युद्ध की कहानियां स्‍कूली पाठयक्रमों में शामिल की जानी चाहिए : पर्रिकर

देश-विदेश

नई दिल्ली: रक्षा मंत्री की मनोहर पर्रिकर ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में हमारे बहादुर जवानों की वीरता और बलिदानों की कहानियां स्‍कूली पाठयक्रमों में शामिल करने की आवश्‍यकता पर जोर दिया है। उन्‍होंने कहा कि ऐसा करना आवश्‍यक है ताकि भविष्‍य की पीढि़यों के मन में देशभक्ति और मूल्‍यों की भावना भरी जा सके।

श्री पर्रिकर आज यहां 1965 के भारत-पाक युद्ध की स्‍वर्ण जयंती समारोह पर तीनों सेनाओं के सेमीनार को सम्‍बोधित कर रहे थे। दो दिवसीय सेमीनार का उदघाटन उपराष्‍ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने अनेक अवकाश प्राप्‍त सेना प्रमुखों, युद्धनायकों तथा तीनों सेनाओं और रक्षा मंत्रालय के वरिष्‍ठ अधिकारियों की उपस्थिति में किया। रक्षा मंत्री ने कहा कि 1965 के युद्ध में भारतीय सशस्‍त्र बलों ने अपनी सीमाओं के बावजूद पेशेवर दृष्टिकोण का प्रदर्शन किया और उन्‍हें सभी देशवासियों से प्रशंसा और सम्‍मान मिला।

उन्‍होंने कहा कि 1965 का युद्ध इस तथ्‍य की ओर इशारा करता है कि एक देश के सम्‍पूर्ण सैन्‍य प्रतिष्‍ठान को प्रादेशिक अखण्‍डता सुनिश्चित करने और शत्रु की कार्रवाई का जवाब देने के लिए अपनी क्षमताओं और प्रक्रियाओं में निरंतर सुधार करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि आज की परिस्थिति में भी सतर्कता और तैयारी के साथ इस दृष्टिकोण की आवश्‍यकता है ताकि हम किसी भी ऐसी कार्रवाई का मुकाबला कर सकें और शांतिपूर्ण वातावरण सुनिश्चित कर सकें। श्री पर्रिकर ने 1965 के युद्ध में भाग लेने वाले तथा अदम्‍य साहस और वीरता का प्रदर्शन करने वाले सैन्‍य कर्मियों के प्रति सम्‍मान और अभार व्‍यक्‍त किया।

सेमीनार को चीफ ऑफ स्‍टॉफ कमेटी (सीओएससी) तथा वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा, नौ सेना प्रमुख एडमिरल आर के धोवन तथा सेना प्रमुख जनरल दलवीर सिंह ने भी सम्‍बोधित किया। एयर चीफ मार्शल श्री अरूप राहा ने कहा कि एयर मार्शल अर्जन सिंह, डीएफसी (अब भारतीय वायु सेना के मार्शल) के नेतृत्‍व में वायु सेना के लडाकुओं ने अदम्‍य सहास और वीरता का प्रदर्शन किया और उन्‍हें 5 महावीर चक्र तथा 44 वीर चक्रों से सम्‍मानित किया गया।

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