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ऐसे नवाचारों को असंगठित और अनौपचारिक औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले वायु प्रदूषण को घटाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है: डॉ. हर्षवर्धन

देश-विदेश

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज कहा, “शवदाह गृहों के आसपास के क्षेत्रों में पार्टिकुलेट मैटर के संबंध में वायु उत्सर्जन और अन्य हानिकारक गैसों के अत्यधिक संकेंद्रण का आकलन किया गया है। शवदाहगृहों से उच्च स्थानीयकृत विषाक्त उत्सर्जन से निपटने के लिए, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (एनईईआरआई) ने एक तकनीक तैयार की है, जो हरित शवदाहगृह की खुली चिताओं से होने वाले प्रदूषण को घटाने में सक्षम है।”

मंत्री दिल्ली के निगम बोध घाट श्मशान में हरित शवदाहगृह की चार चिताओं का उद्घाटन करने के बाद संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड की ओर से संचालित तीन नई चिताओं का भी उद्घाटन किया।

डॉ. हर्षवर्धन ने आयोजन स्थल पर संस्थागत ‘ग्रीन गुड डीड’ (पर्यावरण संरक्षण के लिए दैनिक आधार पर छात्र/अध्यापक/नागरिकों की भागीदारी लाने वाले व्यवहारिक उपाय) के लिए एक व्यापक योजना बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की ऐसी पहल के साथ, राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण सूचकांक में सुधार लाने की दिशा में काफी कुछ हासिल किया जा सकता है और सीएसआईआर-एनईईआरआई के वैज्ञानिक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार देश के 120 शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक में सुधार लाने के लिए पहले से ही काम कर रही है।

डॉ. हर्षवर्धन ने रेखांकित किया, “नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल के मुताबिक 120 से अधिक शहरों के गैर-प्राप्ति श्रेणी (नॉन-अटैनमेंट कैटेगरी) के तहत आने के साथ भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है।” उन्होंने बताया, “हाल ही में घोषित आम बजट 2021 में, भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए संसाधन आवंटित करने पर काफी जोर दिया गया है।”

दिल्ली में लगभग 56 पारंपरिक श्मशान घाट हैं, जहां पर हिंदू खुले में लकड़ी को जलाकर शवों का अंतिम संस्कार करते हैं,  जिससे आसमान में काले धुएं के बादल उठते हैं। वीआईपी चिता 3,4,5,6 में स्थापित तकनीक में धुंए के एकत्रण, हैंडलिंग (संभालना), प्रोसेसिंग/क्लीनिंग, जनोपयोगी सेवाएं और कचरा निपटाने की व्यवस्थाएं शामिल हैं। इस प्रणाली में एक कुशल स्क्रबिंग सिस्टम भी शामिल है जो खुरचकर हटाए गए तरल और ठोस अवशेषों को आसानी से रिसाइकल करने और निपटाने के साथ-साथ धुंआ, तेल/ग्रीस, हाइड्रोकार्बन और पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन भी घटाता है।

मंत्री ने आगे कहा, “इस तरह की तकनीक पर्यावरण के प्रति हमारी राष्ट्रीय और वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए स्पष्ट उपायों को अपनाकर हमारी वर्तमान विरासत को दोबारा स्थापित करने में मदद करती है।” उन्होंने कहा, “डिजाइन में मामूली बदलाव के साथ मौजूदा उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली को भविष्य में एलपीजी/सीएनजी और डीजल से चलने वाले शवदाहगृह में बदला जा सकता है।”

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, “इस तरह के नवाचार को असंगठित और अनौपचारिक औद्योगिक क्षेत्रों जैसे बेकरी, नमकीन निर्माण, या उन उपयोग क्षेत्रों में, जहां पर लकड़ी को प्राथमिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, से निकलने वाले वायु प्रदूषण को घटाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।” उन्होंने कहा, “एनसीएपी, स्वच्छ और स्वच्छ भारत पहल जैसे कार्यक्रमों के तहत, इस तरह की प्रणाली को पूरे देश में पहुंचाना चाहिए, ताकि शवदाहगृहों से निकलने वाले उत्सर्जन को घटाया जा सके, जो पर्यावरण और सामाजिक स्वास्थ्य को व्यापक तौर पर प्रभावित करता है।”

इस मौके पर, डॉ. हर्षवर्धन ने अनुसंधान के उद्देश्य से शरीर और अंग दान करने की भी अपील की और चेतावनी दी कि लोगों को अपनी सुरक्षा के उपायों में कोई कमी नहीं लानी चाहिए और कोविड रोकथाम के लिए उचित व्यवहार का पालन करना चाहिए।

इस अवसर पर डॉ. शेखर सी. मंडे, डीजी, सीएसआईआर; डॉ. राकेश कुमार, निदेशक, सीएसआईआर-एनईईआरआई; श्री के वेंकट सुब्रमण्यन, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर; डॉ. पद्मा राव, मुख्य अन्वेषक और वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनईईआरआई; श्री जय प्रकाश, मेयर, एनडीएमसी; और अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

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