नागपुर: बढ़ते पारे और झुलसा देने वाली गर्मी के बीच ख़बरे हैं कि महाराष्ट्र और दूसरे सूबों में पानी की क़िल्लत से जंगली जानवरों के हालात ख़राब हो रहे हैं. लेकिन, सवाल यह है कि क्या वन विभाग पर्याप्त क़दम उठा रहा है? क्या यह भी देखा जा रहा है कि ज़मीनी हक़ीकत क्या है? इसे समझने के लिए ये दिलचस्प मिसाल हो सकती है.
नागपुर में एक शाम का नज़ारा है, एक बाघिन परेशान और बेहद थकान से जूझ रही है. वो पौधों के बीच एक हैंडपंप वाले बोरवेल के क़रीब घूमती दिखाई देती है, फिर बैठ जाती है. इसके बाद वह बोरवेल के पास बने वॉटर होल की सीमेंट कंक्रीट की बनी सूखी फ़र्श चाटने की कोशिश करती है लेकिन झट से हट जाती है. ज़ाहिर है, तपती दोपहरी के बाद फ़र्श भी तप रहा है. अब वो बोरवेल के पास बैठ कर सड़क की ओर देखने लगती है जहां एक कार खड़ी है.
42 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच झुलसाते मौसम में जंगली पशुओं की दयनीय हालात को बताने वाला यह एक मोबाइल क्लिप का वीडियो है. इस वीडियो को एक वन्यजीव प्रेमी प्रज्वल जोसेफ़ ने फ़िल्माया है. मूल रूप से नागपुर के रहने वाले प्रज्वल मुंबई में गायक-संगीतकार हैं और पिंकू जोसेफ़ के नाम से शोज़ भी करते हैं. वे बताते हैं कि नागुपर में दो मई को शाम छह बजे नागपुर से क़रीब 46 किलोमीटर दूर उन्हें मोबाइल फ़ोन से ये वीडियो रिकॉर्ड किया.
उनके शब्दों में यह घटना कुछ ऐसी थी-
“मैं दो गांवों के बीच से गुज़र रहा था, जो घने जंगल का इलाक़ा है. वन विभाग की ओर से वहां हैंडपंप वाला बोरवेल लगा है और उससे जुड़ा सीमेंट का वॉटर होल भी बना है.” “मैंने देखा कि उसमें पानी की एक बूंद भी नहीं था. पानी की नमी भी नहीं थी जैसे कई दिनों से उसमें पानी नहीं रहा होगा. मैंने पौधों के पीछे एक बाघिन देखी है जो उठी और हैंडपंप के करीब आ गई.”
“वह हैंडपंप के उस पार थी और मैं अपनी गाड़ी में बैठा था. बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था. वह देखती रही मानों कह रही हो कि भैया तुम ही पानी भर दो. मैं उस सीन से बेहद डिस्टर्ब हो गया था.”
उस दिन पिंकू जैसे-तैसे अपनी कार लेकर वहां से हट गए लेकिन उन्होंने अगले दिन अपने कज़िन के साथ पानी की कुछ कैन ख़रीदीं और उसी जगह पर जाकर उसे उड़ेल दिया. फिर भी वॉटर होल सूखा ही रहा लेकिन हैंडपंप चलाने से पानी आने लगा.
जोसेफ़ आगे बताते हैं, “मैं एक घंटे बाद दोबारा उस स्थान पर लौटा तो देखा कि वहां बंदर, नीलगाय, बुलबुल, गिलहरियां, मोर और कुछ पक्षी भी थे. कुछ पानी पी रहे थे. पूरा माहौल एकदम जीवंत लग रहा था.” लेकिन जोसेफ़ सवाल भी पूछते हैं, “वन विभाग से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है, मेरा सवाल बस इतना है कि जब वॉटर होल बनाया है तो वहां पानी क्यों नहीं भरा जाता?”
बहरहाल, पिंकू एक घंटा कार चलाकर उसी स्थान पर जाते हैं और हैंडपंप से चलाकर वॉटर होल भरने के लिए. टाइगर लैंड मोटरस्पोर्ट्स एसोसिएशन के सचिव संदीप सुरेका बताते हैं, “चार मई की शाम घने और सुनसान जंगल में हैंडपंप से पानी निकालते पिंकू से हुई मुलाकात को वो भूल नहीं पाएंगे. हमने गांव वालों से अनुरोध किया है कि वे आते जाते हैं दो-चार बार हैंडपंप पर पानी चला दिया करें.”
क़रीब के गांव कातलाबोडी के निवासी ज्ञानेश्वर कोवे साफ़ कहते हैं कि इस जंगल में कई बाघ, जंगली सुअर, नील गाय, बंदर और कई तरह के पक्षी हैं. उन्होंने बताया, “ये वॉटर होल क़रीब एक साल पहले बनाया गया. जब कोई बड़े साहब का दौरा हो तो फ़ॉरेस्ट गार्ड हैंडपंप चलाकर वाटर होल भर जाते हैं. नहीं तो यह सूखा ही रहता है. जब तापमान 44-45 डिग्री हो तो पानी झट से सूख जाता है.”
हालांकि वन विभाग के अधिकारी कुछ कहने से कतराते हैं, लेकिन उनका सीधा जवाब भी होता है कि जंगलों में पशुओं को पानी मुहैया कराने के हर संभव प्रयास किए गए हैं. महाराष्ट्र सरकार के वन्य जीव विभाग के प्रिंसिपल चीफ़ कंज़र्वेटर ऑफ़ फ़ॉरेस्ट (पीसीसीएफ) श्री भगवान का कहना है कि वन विभाग के फ़ॉरेस्ट गॉर्ड्स वॉटर होल्स पर नज़र रख रहे हैं.
उन्होंने कहा, “विभाग के पास अपने ट्रैक्टर्स भी है, जो वॉटर होल्स में पानी भरने के लिए इस्तेमाल हो रहे है. ज़िला वन अधिकारी और अन्य अधिकारी उनके कामों की समीक्षा करते रहते हैं.” श्री भगवान ने ये भी वादा किया है कि वे अगले सोमवार को अपनी साप्ताहिक समीक्षा में वे इस मुद्दे को देखेंगे और कोई कमी हुई तो उसे दूर करेंगे.
साभार बीबीसी हिन्दी