लखनऊ: प्रदेश के कृषि निदेशक श्री सोराज सिंह ने बताया कि प्रदेश में फसलों को प्रति वर्ष कुल क्षति का लगभग 26 प्रतिशत क्षति रोगों द्वारा होती है। रोगों से होने वाली क्षति कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेती है और इनके प्रकोप से शत-प्रतिशत तक फसल नष्ट होने की सम्भावना बनी रहती है। अतः बुवाई से पूर्व सभी फसलों में बीजशोधन का कार्य शत-प्रतिशत कराया जाना नितान्त आवश्यक है।
बीजशोधन का मुख्य उद्देश्य रसायनों/बायोपेस्टीसाइड्स से शोधित कर बीजों एवं मृदा मे ंपाये जाने वाले रोग के कारकों को नष्ट करना होता है। बीजशोधन हेतु प्रयोग किए गए रसायनों/बायोपेस्टीसाइड्स को बुवाई के पूर्व सूखा अथवा कभी-कभी संस्तुतियों के अनुसार घोल/स्लरी बना कर मिलाया जाता है, जिससे इनकी एक परत बीजों की बाहरी सतह पर बन जाती है जो बीज पर/बीज में पाये जाने वाले शाकाणुओं/जीवाणुओं को अनुकूल परिस्थितियों में नष्ट कर देती है।
प्रदेश में खरीफ की प्रमुख फसलों में शतप्रतिशत बीजशोधन कराने हेतु 16 मई से 15 जून 2020 तक विभाग द्वारा अभियान के रूप में राजकीय अधिकारियों, कर्मचारियों के माध्यम से समस्त ग्राम पंचायतों में कृषकों को प्रेरित किया जायेगा।
खरीफ की प्रमुख फसलों यथा-धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उर्द, अरहर, मूॅगफली, सोयाबीन एवं तिल में बीजशोधन कार्य हेतु संस्तुतियों के अनुसार प्रमुख कृषि रक्षा रसायनों-थिरम 75 प्रतिशत डब्लू0एस0, कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0, स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत$टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत, कार्बाक्सिन 37.5 प्रतिशत$थिरम 37.5 प्रतिशत डी0एस0, टेबुकोनाजोल 2 प्रतिशत डी0एस0, मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस. एवं ट्राइकोडर्मा आदि रसायनों का प्रयोग किया जाता है।
खाद्यान्न उत्पादन के राष्ट्रीय कार्यक्रम तथा बीजशोधन अभियान को सफल बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, स्वयं सेवी संगठनों, स्वयं सहायता समूह एवं प्रगतिशील किसानों के साथ पेस्टीसाइड्स एसोसिएशन, थोक एवं फुटकर विक्रेताओं का सहयोग अपेक्षित है।