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अरुणाचल प्रदेश के दूरदराज के जनजातीय परिवारों तक पहुंचा नल कनेक्शन

देश-विदेश

नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश की हरी वादियों में 2,000 फीट की ऊंचाई पर बसे अनोखे गांव सेरिन में खुशियां मनाने के अब सभी कारण हैं। दूरदराज के इलाके में बसे इस छोटे से गांव तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं है। इस सेरिन गांव में पहुंचने के लिए किसी को एक दिन दुर्गम पैदल चलकर जाना पड़ता है। यह गांव राज्य में कामले जिले के तमेन – रागा प्रखंड में स्थित है। यह इलाक़ा काफी दुर्गम है और यहां के लोगों का जीवन भी काफी कठिन है। सेरिन गांव और उसके निकटतम पक्की सड़क के बीच की दूरी 22 किमी है। इस गांव में न्यासी जनजातीय लोग रहते हैं जिनकी कुल आबादी 130 है। अभी उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है क्योंकि वहां हर घर को नल कनेक्शन दिया जा चुका है। इससे उन्हें उनके घर-आंगन में ही पीने योग्य पानी मिलना सुनिश्चित हो गया है। इससे पहले, पानी लाना एक समय साध्य और विशेष रूप से सेरिन गांव के बुजुर्ग लोगों के लिए कठिन काम था क्योंकि उन्हें ही पास के झरना स्रोतों से पानी लाना पड़ता था। लेकिन अब सेरिन जलापूर्ति योजना को धन्यवाद है कि हर घर में नल कनेक्शन उपलब्ध हैं।

अरुणाचल प्रदेश सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत वर्ष 2023 तक राज्य के सभी घरों को 100 प्रतिशत नल जल कनेक्शन प्रदान करने का निर्णय लिया है। जल जीवन मिशन केंद्र सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य सभी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना है। यह देश के लोगों, विशेषकर ग्रामीण लोगों के जीवन में सुधार लाने की प्रधानमंत्री की सोच का नतीजा है। इस मिशन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन में परिवर्तन लाना है।

पहाड़ी इलाकों में, घर की महिलाओं पर घर से काफी दूर जाकर पानी लाने का भारी बोझ रहता है, जो उनके शरीर के लिए काफी कष्टकारी होता है। उनकी तकलीफों को कम करने के लिए यह जल जीवन मिशन एक वरदान के रूप में आया है। इसका उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को पर्याप्त मात्रा में और नियमित तथा दीर्घकालिक आधार पर निर्धारित गुणवत्ता वाला पानी उपलब्ध कराना है। राज्यों को स्थानीय स्तर पर आपूर्ति किए गए पानी के परीक्षण के लिए फील्ड टेस्ट किट का उपयोग करने के लिए हर गांव में पांच लोगों विशेष रूप से महिलाओं को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

सेरिन जलापूर्ति परियोजना को लागू करना एक कठिन कार्य था। गांव चूंकि पहाड़ की चोटी पर स्थित है, इसलिए रेत, दाद, पत्थर इत्यादि जैसी सभी नदी सामग्री को गांव के नीचे काफी दूर स्थित नदियों से जमा करना था। इसके अलावा, स्टील, सीमेंट, पाइप आदि जैसे भारी सामानों को पास की सड़क से सिर पर लादकर ले जाना पड़ता था। परियोजना की उच्च संचालन लागत स्थानीय स्तर पर कुशल मजदूरों की अनुपलब्धता के कारण कई गुना बढ़ गई और इस तरह परियोजना के सामने कई चुनौतियां पेश आईं। लेकिन पीएचई विभाग ने सावधानीपूर्वक इसकी योजना बनाई और फिर इसे पूरा कर लिया गया।

पहाड़ी राज्य होने के नाते, अरुणाचल प्रदेश में गुरुत्वाकर्षण-आधारित जल आपूर्ति प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इसका मतलब है कि गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग पानी को पहाड़ में काफी नीचे के एक स्रोत से गांव तक ले जाने के लिए किया जाता है। सतही स्रोतों से पानी इकट्ठा करने के लिए एक जल संग्रहण संरचना का निर्माण किया जाता है जिसे बाद में एक पाइप प्रणाली के माध्यम से गांव तक पहुंचाया जाता है। पुराने जमाने में, जल शुद्धीकरण संयंत्रों को आमतौर पर प्रति व्यक्ति लागत अधिक होने के कारण नहीं लगाया जाता था। लेकिन, अब जल जीवन मिशन की शुरुआत के साथ जल शुद्धीकरण संयंत्रों को निर्धारित गुणवत्ता का पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के लिए योजनाओं का अभिन्न अंग बनाया जा रहा है। जल शुद्धीकरण के बाद पानी को गांव में ऊंचाई पर बने एक स्वच्छ जलाशय में इकट्ठा किया जाता है और वहां से पाइप के वितरण नेटवर्क द्वारा गांव के सभी घरों में पेयजल पहुंचाया जाता है। जरूरत के हिसाब से बड़े गांवों में सभी को पानी के वितरण की सुविधा के लिए गांव के भीतर कुछ वितरण टैंक भी प्रदान किए जाते हैं।

देश के इस सीमांत राज्य में सेरिन गांव एक अकेला उदाहरण नहीं है। अरूणाचल प्रदेश में ऊपरी सियांज जिले में 3,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक अन्य गांव डलबिंग भी सामुदायिक लामबंदी का उत्कृष्ट उदाहरण है जहां 79 घर हैं और वहां लगभग 380 लोगों की आबादी रहती है। यहां आदी जनजातीय समुदाय के लोग रहते हैं। चूंकि जल जीवन मिशन एक विकेन्द्रीकृत, मांग-आधारित और समुदाय-प्रबंधित जलापूर्ति योजना है, इसलिए डलबिंग गांव के मूल निवासियों ने श्रम के रूप में सामुदायिक योगदान दिया। इसी तरह के काम ऊपरी कारको गांव में किए गए हैं जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा गांव है। एफएचटीसी उपलब्ध कराने के लिए कार्य के निष्पादन के दौरान, पाइप और अन्य निर्माण सामग्री ग्रामीणों द्वारा ले जाए गए। उन्होंने घरों में नल लगाने संबंधी कार्यों में भी पीएचईडी की सहायता की थी।

अरुणाचल प्रदेश के सबसे पूर्वी ज़िले लोंगडिंग में लगभग 3900 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक अन्य गांव पुमाओ है, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनाए गए थे, लेकिन पानी की आपूर्ति नहीं होने के कारण गांव वाले इनका उपयोग नहीं करते थे। अब वे अपने घरों में पानी आ जाने से शौचालयों का भी उपयोग खुशी-खुशी कर रहे हैं।

इन कठिन इलाकों और काफी ऊंचाई वाली जगहों पर जल जीवन मिशन का कार्यान्वयन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। कठोर जलवायु परिस्थितियों और खराब कनेक्टिविटी के कारण बाधाएं बढ जाती हैं। यही नहीं, गांव वालों को उनके व्यवहार में परिवर्तन के लिए प्रेरित करना और भी चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि वो अपनी मान्यताओं और जीवन शैली से दूर होने के इच्छुक नहीं हैं। लेकिन, इन गांवों की सफलता की कहानियां उस बेहतर भविष्य का प्रमाण है जिसकी केंद्र सरकार ने ग्रामीण लोगों, खासकर महिलाओं के जीवन में सुधार लाने की कल्पना की है।

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