नई दिल्ली: केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जे.पी. नड्डा ने कहा है कि देश में टीबी से लड़ने की कोशिशों को भारत सरकार ने और तेज करने का
संकल्प व्यक्त किया है। वे आज यहां विश्व टीबी दिवस की पूर्वसंध्या पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि टीबी से लड़ाई की प्रक्रिया जारी है। इसलिए इससे पीछे नहीं हटा जा सकता और न ही इधर-उधर भटका जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हमारी कोशिश तेज और आक्रामक होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि टीबी से लड़ने के लिए संसाधन कभी आड़े नहीं आएगा और सरकार सभी हितधारकों के साथ काम करती रहेगी। यह लघु अवधि और दीर्घकालिक पहल के द्वारा होगा। श्री नड्डा ने टीबी के मरीजों के इलाज के लिए दयाभाव की जरूरत पर भी जोर दिया।
श्री जे.पी.नड्डा ने बेडाक्वीलिन नामक नई टीबी निरोधी दवा को भी सार्वजनिक किया। यह नई दवा एमआरडी-टीबी के इलाज के लिए है। नई श्रेणी की यह दवा मुख्य रूप से डायरियालक्वीनोलिन श्रेणी की है, जो खासतौर पर माइकोबैक्टीरियल के लक्ष्यों तक पहुंच कर माइकोबैक्टीरियम टीबी और दूसरे ज्यादातर माइकोबैक्टीरिया में ऊर्जा की आपूर्ति के लिए दूसरे आवश्यक एन्जाइम की आपूर्ति में सहायक है। इस दवा के इस्तेमाल से टीबी के प्रतिरोधी उपाय सहज होने के संकेत मिलते हैं। बेडाक्वीलिन को समूचे भारत में चिन्ह्ति छह क्षेत्रीय स्वास्थ्य केन्द्रों में पहुंचाना शुरू किया जा रहा है। इन केन्द्रों में प्रयोगशाला परीक्षण की उन्नत सुविधायें और मरीजों की सघन देखभाल की व्यवस्था है। बेडाक्वीलिन उन मरीजों को दी जाएगी, जिनमें दूसरी कई दवा संबंधी निरोधक प्रणालियां कारगर नहीं होती। सभी दूसरी उपचार प्रणालियों में सुई लगाने और व्यापक औषधि निरोधक उपाय सफल न होने पर भी बेडाक्वीलिन दी जाएगी।
श्री नड्डा ने कार्यक्रम में काट्रिज आधारित न्युक्लियाई एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट यानी सीबीएनएएटी मशीन को 500 से ज्यादा केन्द्रों पर भी शुरू किया। सीबीएनएएटी मशीन के आ जाने से तेजी से मोलीक्युलर परीक्षण संभव होगा, जिससे टीबी के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। इस टेस्ट से माइकोबैक्टीरियम टीबी और रिफामपीसिन जैसी प्रतिरोधक दवा से टीबी के परीक्षण में मदद मिली है। यह परीक्षण पूरी तरह स्वचालित है और इसमें दो घंटे के भीतर नतीजे सामने आ जाते हैं। यह दवा बेहद संवेदनशील डाइग्नोस्टिक टूल है और इसका इस्तेमाल दूरदराज के उन ग्रामीण क्षेत्रों में वहां किया जा सकता है, जहां अत्याधुनिक बुनियादी सुविधाएं या प्रशिक्षण केन्द्र नहीं है। 2015 तक देश में 121 जगहों से सीबीएनएएटी काम करने लगीं, जिससे डीआर टीबी के तेजी से जांच-पड़ताल में मदद मिली और यह भारत के सभी जिलों में या तो प्रत्यक्ष रूप से संभव हुआ या नमूनों को दूर तक पहुंचाकर उसका परीक्षण कर रिपोर्ट सौंपी गई। इसके अतिरिक्त, इस नई तकनीक के आ जाने से टीबी की जांच में अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल में मदद मिलेगी। वह भी उन खास जनसंख्या वाले क्षेत्रों में, जिनमें पीएलएचआईबी और दूसरे घातक टीबी मरीज मौजूद हैं। इनमें बच्चों से जुड़ी टीबी को भी शामिल किया गया है।
स्वास्थ्य मंत्री ने टीबी भारत – 2016 वार्षिक रिपोर्ट और तकनीक एवं ऑपरेशनल गाइड लाइन-2016 भी जारी की। इसके अलावा एकल खिड़की निगरानी के तहत मरीजों की देखभाल और परीक्षण संबंधी कार्यक्रम संभव होंगे। साथ ही, कार्यक्रम में दवाओं के बुरे असर को रोकने संबंधी ई-बुक को भी सार्वजनिक किया गया। इस मौके पर टीबी के नये रेडियो अभियान को भी शुरू किया गया, जिसके एम्बेसडर अमिताभ बच्चन है।
मंत्री महोदय ने एचआईवी के पीडि़त लोगों के लिए तीसरी पंक्ति के एआरटी कार्यक्रम को भी शुरू किया। जीवन-रक्षक तीसरी पंक्ति के इस कार्यक्रम पर एक मरीज पर 1,18,000 रूपये का सालाना खर्च आएगा। मुफ्त में ये सुविधायें मिलने से न सिर्फ जीवन सुरक्षित होगा, बल्कि इससे मरीज के सामाजिक-आर्थिक हालात में भी सुधार आएगा। इस पहल से भारत विकसित देशों में जारी ऐसे कार्यक्रम की कतार में खड़ा हो जाएगा।
परिवार एवं कल्याण मंत्रालय के सचिव श्री बी.पी. शर्मा ने सभी हितधारकों के सामूहिक संकल्प की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम सबसे कारगर कार्यक्रमों में से एक है। उन्होंने बताया, ‘इस कार्यक्रम से टीबी के इलाज और प्रसार को रोकने में जबर्दस्त कामयाबी मिली है। 300 सीबीएनएएटी मशीनें पहले ही विभिन्न केन्द्रों पर काम कर रही हैं और जल्दी ही 200 और मशीनें काम करने लगेंगी। इलाज की गुणवत्ता सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों तक पहुंचाई गई है, इसके लिए क्रय व्यवस्था को मजबूत किया गया है, जिससे यह कार्यक्रम 2030 तक चलाया जा सके। टीबी की निगरानी और देखभाल पर भी जोर दिया गया है। हमें नये अनुसंधान और परीक्षण की नई प्रणाली की जरूरत है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमें खुद के तौर-तरीके विकसित करने होंगे।’