नई दिल्ली: जब वह अपनी छोटी सी जिंदगी में सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही थीं, तो वह ना ही मायूस थीं ना ही उन्होंने जिंदगी से हार मानी थी। उन्होंने अपनी जिंदगी को पूरी जिंदादिली से जिया, यह अनन्या की किताब ‘ठहरती साँसों के सिरहाने से: जब ज़िन्दगी मौज ले रही थी (कैंसर डायरी)’ में साफ़ झलकता है।
लेखिका अनन्या मुख़र्जी बहुत कम उम्र में ही कैंसर से अपनी लड़ाई हार गयीं। वो अब हमारे साथ नहीं हैं। मरने से ठीक 18 दिन पहले लेखिका ने प्रकाशक को पांडुलिपि सौंपी, जो अब किताब के रूप में लोगों के सामने है। कैंसर जैसी घातक बिमारी से जूझ चुकी मशहुर अभिनेत्री मनीषा कोइराला एवं क्रिकेटर युवराज सिंह ने इस पुस्तक को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया में लेखिका के कैंसर से लड़ने के अद्भुत साहस एवं बहादुरी की सराहना की है।
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लेखिका अनन्या मुख़र्जी की बहुचर्चित किताब ‘ठहरती साँसों के सिरहाने से: जब ज़िन्दगी मौज ले रही थी (कैंसर डायरी)’ हिंदी एवं अंग्रेजी में ‘टेल्स फ्रॉम द टेल एंड : माय कैंसर डायरी” का लोकार्पण हुआ। हिंदी में यह किताब राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित की है। अंग्रेजी में यह किताब स्पिकिंग टाइगर द्वारा प्रकाशित की गयी है। पुस्तक लोकार्पण के बाद परिचर्चा में कैनसपोर्ट संस्था (कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने वाली संस्था) की अध्यक्ष हरमाला गुप्ता एवं लेखिका और स्तंभकार सादिया देहलवी ने अपने विचार साझा किये। कार्यक्रम का संचालन स्वतंन्त्र पत्रकार प्रज्ञा तिवारी ने किया। सभी वक्ताओं ने पुस्तक पर चर्चा करते हुए कैंसर से जुडी कई धारणाओं पर विस्तार से बातचीत की तथा किताब के कई पहलुओं को उजागर किया।
इस अवसर पर कैनसपोर्ट की संस्थापक-अध्यक्ष हरमाला गुप्ता ने कहा, “अनन्या मुखर्जी के जीवंत लेखन में मानवीय जज़्बे और मौत के सामने जिन्दगी के मायने खोजने की अद्भुत क्षमता है।”
सादिया दहलवी ने कैंसर की बिमारी के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि आज भी हमारा समाज कैंसर मरीज़ों के प्रति दोयम दर्ज़े का व्यवाहार करता है। कैंसर की बिमारी को ऐसी चीज माना जाता है जिसे ‘दुनिया से छिपाया जाना चाहिए’। उन्होंने बताया, “एक बार जब मैंने अपनी बिना बालों की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी थी, तो मेरी मां ने तुरंत मुझे उसे हटाने को कहा। माँ ने कहा कि हमें दुनिया के सामने इसका ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए।”
कैंसर से अपनी लड़ाई लगातार लड़ रही सादिया ने कहा कि जब कोई यह कहता है कि फलाना कैंसर से अपनी जंग हार गया है, तो मुझे बहुत बुरा लगता है। “मुझे अपने बारे में यह नहीं सुनना। हम सब अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं, इसमें जीत-हार जैसी क्या बात है।”
लोकार्पण में किताब के अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही संस्करण से कई किस्सों का पाठ किया गया, जिन्हें सुन जहाँ श्रोताओं की आँखें नम थीं, तो वहीँ वो खिलखिलाकर हंस भी रहे थे। बिलुकल इस किताब और इसकी लेखिका के मिजाज की तरह ही। कीमोथेरेपी के दौरान जिन्दगी में ह्यूमर ढूंढ लेने वाली हमारी लेखिका अपने पाठकों तक ‘YOLO’ (You only lived once) का सन्देश पहुंचाना चाहती है।
कार्यक्रम के अंत में युवा एवं नामी दास्तानगो हिमांशु बाजपाई ने किताब पर दास्तानगोई प्रस्तुत कर शाम को खूबसूरत एवं लोगों को मंत्रमुग्ध किया।
स्पीकिंग टाइगर से अंग्रेजी में आई किताब ‘टेल्स फ्रॉम द टेल एंड : माय कैंसर डायरी” का हिंदी अनुवाद ‘ठहरती साँसों के सिरहाने से: जब ज़िन्दगी मौज ले रही थी (कैंसर डायरी)’ को राजकमल प्रकाशन समूह ने प्रकाशित किया है। किताब का अनुवाद उर्मिला गुप्ता और डॉ. मृदुला भसीन ने और संपादन प्रभात रंजन ने किया है।
जल्द ही इस किताब का उर्दू अनुवाद भी प्रकाशित होने वाला है। उर्दू में किताब का अनुवाद कौसर जहां ने किया है। यह किताब बांग्ला, ओड़िया, मराठी, मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और अन्य भारतीय भाषाओँ में भी शीघ्र ही उपलब्ध होगी।
किताब के बारे में
अनन्या मुखर्जी के शब्दों में कहें तो ‘जब मुझे पता चला कि मुझे ब्रैस्ट कैंसर है, मैं विश्वास नहीं कर सकी। इस ख़बर ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। लेकिन, जल्द ही मैंने अपने आत्मविश्वास को समेटकर अपने को मजबूत किया। मैं जानती थी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा…’
लेकिन पहली बार हुआ कि वो भविष्य के अंधेरों से जीत नहीं पाई।
18 नवंबर 2018 को अनन्या, कैंसर से अपनी लड़ाई हार गईं। लेकिन, अनन्या जीवित हैं, दोस्तों और परिवार की उन खूबसूरत यादों में जिन्हें वो उनके लिये छोड़ गई हैं। साथ ही, डायरी के उन पन्नों में जो कैंसर की लड़ाई में उनके साथी रहे।
यह किताब कैंसर की अंधेरी लड़ाई में एक रोशनी की तरह है (कमरे की खिड़की पर बैठे गंदे कौवे की तुलना अपने एकदम साफ़, बिना बालों के सिर से करना), एक कैंसर के मरीज़ के लिए कौन सा गिफ्ट्स उपयोगी है ऐसी सलाह देना (जैसे रसदार मछली भात के साथ कुछ उतनी ही स्वादिष्ट कहानियां एक अच्छा उपहार हो सकता है), साथ ही एक कैंसर मरीज़ का मन कितनी दूर तक भटकता है (जैसलमेर रोड ट्रिप और गंडोला – एक तरह की पारंपरिक नाव – में बैठ इटली के खूबसूरत, पानी में तैरते हुए शहर वेनिस की सैर)
‘टेल्स फ्रॉम द टेल एंड’ किताब उम्मीद है, हिम्मत है| यह किताब सुबह की चमकती, गुनगुनाती धूप की तरह ताज़गी से भरी हुई है जो न केवल कैंसर से लड़ते मरीज़ के लिए बल्कि हम सभी के लिए, जो अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते आये हैं, कभी न हार मानने वाली उम्मीद की किरण है|
लेखिका अनन्या मुखर्जी के बारे में
अनन्या मुखर्जी ने अपना बचपन नागपुर और दिल्ली में बिताया, जहाँ उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की। उन्होंने सिम्बायोसिस कॉलेज, पुणे से मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की, और वे अपने बैच की टॉपर थीं। पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए वह ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ वोल्लोंगोंग गई।
अपने सत्रह साल के पेशेवर जीवन में उन्होंने कई जानी-मानी पीआर कम्पनियों और कॉर्पोरेट कम्पनियों के साथ काम किया, जिनमें कॉर्पोरेट वोयस, गुड रिलेशंस, इंजरसोल रैंड और डालमिया भारत ग्रुप शामिल हैं।
2012 में शादी के बाद वे जयपुर चली गई, जो उनका दूसरा घर बन गया।
2016 में पता चला कि अनन्या को स्तन कैंसर था, जब उनका इलाज चल रहा था तो उन्होंने कैंसर से जुड़े अपने अनुभवों और संघर्ष के बारे में लिखना शुरू कर दिया, जो इस किताब के रूप में सामने हैं।
कीमोथेरेपी के पचास से अधिक सत्रों से गुज़रने के बावजूद अनन्या शब्दों से जादू जगा देती थीं। यह किताब उन लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण की तरह हो सकती है जिनको कैंसर है और उनके परिजनों तथा देखभाल करने वालों के लिए भी जो मरीज़ के साथ-साथ इस बीमारी को अनुभव कर रहे होते हैं। 18 नवम्बर, 2018 को अनन्या कैंसर से लड़ाई हार गई।