लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का विजन है। इसे विभिन्न चरणों में वर्ष 2022 तक लागू किया जाना है। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में ज्ञान के सैद्धान्तिक पक्ष के साथ ही व्यावहारिक पक्ष का भी समावेश है। ज्ञान के इन दोनों पक्षों में समन्वय आवश्यक है। इससे विद्यार्थी डिग्री प्राप्त करने के साथ ही स्वावलम्बी और समाज के आधार स्तम्भ बनेंगे। उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ जुड़कर आगे बढ़ेगा, तो नये प्रतिमान स्थापित करेगा।
मुख्यमंत्री जी आज यहां लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में विश्वविद्यालय के शताब्दी उत्सव के शुभारम्भ कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री जी विश्वविद्यालय के शताब्दी उत्सव के शुभारम्भ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण करने पर लखनऊ विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्यों को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि इस गौरवशाली यात्रा के दौरान विश्वविद्यालय ने अकादमिक क्षेत्र में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय उपलब्धियां अर्जित की हैं। इस विश्वविद्यालय ने देश को राष्ट्रपति सहित अनेक लब्ध प्रतिष्ठ न्यायमूर्ति, राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, प्राचार्य, वैज्ञानिक और उद्योगपति दिये हैं। उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपनी सौ वर्ष की यात्रा शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रतिमान गढ़े हैं, वह अन्य राज्य विश्वविद्यालयों के लिए भी अनुकरणीय हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोई भी समाज तभी आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बन सकता है, जब वह सरकार से आगे चले। प्रधानमंत्री जी ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से समाज को आगे रखकर जो कार्य प्रारम्भ किया है, वह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ तथा ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आधार सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों को जनसरोकारों से जुड़ने की जरूरत है। विद्यार्थियों, शिक्षकों के साथ ही अभिभावक, पुरातन छात्र भी शिक्षण संस्थानों के अंग होते हैं। शिक्षण संस्थानों में इनकी भी उपयोगी भूमिका है, क्योंकि इनके पास विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी होती है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत है। इसलिए ज्ञान के क्षेत्र में सबको जोड़कर आगे बढ़ने से शिक्षा एवं शोध की गुणवत्ता का स्तर बढ़ता है। शिक्षण संस्थानों के आमजनमानस से जुड़ने और स्थानीय समस्याओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि कोविड-19 की चुनौती के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा सेनेटाइजर बनाया गया। सभी शिक्षण संस्थानों द्वारा आवश्यकता पड़ने पर समाज के लिए ऐसे उपयोगी कार्य किये जाने चाहिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार ने तत्कालीन राज्यपाल श्री राम नाईक के सुझाव पर ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। राज्य की स्थापना के 69 वर्ष बाद ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ मनाने का उद्देश्य ऐसा कार्यक्रम प्रारम्भ करना था, जो इस दिवस को यादगार बनाने के साथ ही, प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हो। प्रथम ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ को ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। यह कार्यक्रम सभी जनपदों की विशिष्ट स्थानीय उत्पादों की ब्राण्डिंग, डिजाइनिंग, मार्केटिंग से जुड़ा है। इस कार्यक्रम की उपयोगिता और महत्व को देखते हुए केन्द्रीय बजट में भी इसे सम्मिलित किया गया है। उन्होंने कहा कि ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ कार्यक्रम के साथ शिक्षण संस्थान जुड़ जाएं, तो सहज ही हर हाथ को काम उपलब्ध हो जाएगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने ‘मेक इन इण्डिया’ ‘स्टार्ट-अप इण्डिया’, ‘स्टैण्ड-अप इण्डिया’, ‘मुद्रा योजना’ आदि योजनाएं लागू की हैं। यह योजनाएं नौजवानों को आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध कराती हैं। शिक्षण संस्थानों को शासन की इन योजनाओं के साथ जुड़कर कार्य करना चाहिए, जिससे नवयुवकों द्वारा किये गये नवाचार को आगे बढ़ने और सफल होने का अवसर मिले और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक साबित हो।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अपार सम्भावनाएं हैं। प्रदेश में ‘आत्मनिर्भर भारत मिशन’ तथा देश को 05 ट्रिलियन यू0एस0 डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने की क्षमता है। इसके लिए शिक्षण संस्थानों को जनसरोकारों से जोड़ना होगा। ‘लोकल फाॅर वोकल’ होना होगा। ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ योजना से जुड़ाव पैदा करने के साथ ही युवाओं को शासन की नीतियों से अवगत कराना होगा। वर्ष 1947 में प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय देश की प्रति व्यक्ति आय से अधिक थी। वर्ष 2017 तक प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय देश की प्रति व्यक्ति आये की एक तिहाई हो गयी है। उन्होंने कहा कि यहां पर परम्परागत उद्यमों को आगे बढ़ाने से रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। पलायन रुकेगा तथा प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से ही हो सकती है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 24 जनवरी, 2019 को प्रदेश सरकार द्वारा ‘विश्वकर्मा श्रम सम्मान’ योजना और माटी कला बोर्ड के कार्य को आगे बढ़ाया गया। माटी कला बोर्ड के कार्याें ने मिट्टी के पारम्परिक हस्तशिल्पों को उल्लेखनीय सफलता दिलायी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अप्रैल से जून तक गांवों के तालाब की मिट्टी गांव के कुम्हार को निःशुल्क उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है। इससे कुम्हारी कला को लाभ हुआ है। साथ ही, स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हुआ है। उन्होंने कहा कि यही महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना भी है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं द्वारा हस्तशिल्प के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए। कोविड-19 के दौरान जनधन खाते के माध्यम से गरीबों, निराश्रितों, किसानों, पेंशनधारकों आदि की मदद में तकनीक की उपयोगिता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थाओं द्वारा तकनीक के आधार पर आॅनलाइन क्लासेज संचालित की जा रही हैं। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा बनायी गयी डिजिटल लाइब्रेरी में लखनऊ विश्वविद्यालय के योगदान की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञान के दायरे को जितना विस्तृत करेंगे, जितना व्यावहारिक बनाएंगे, वह उतना ही कारगर होगा। उन्होंने लोकभाषा, लोकज्ञान, लोकसंस्कृति के संरक्षण के कार्य से भी शिक्षण संस्थानों के जुड़ने पर बल दिया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में उत्तर प्रदेश अग्रणी है। प्रदेश में बेसिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के लिए शैक्षिक कैलेण्डर जारी किया गया है। नकलविहीन परीक्षा के साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर भी कार्य हुआ है। अलग-अलग विश्वविद्यालयों में शोध पीठों की स्थापना की गयी है। लखनऊ विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय रोजगार पीठ, पं0 दीन दयाल उपाध्याय शोध पीठ, अटल सुशासन शोध पीठ, भाउराव देवरस शोध पीठ की स्थापना करायी गयी है। यह विश्वविद्यालय में उत्कृष्ठ शोध कार्यक्रमों की श्रृंखला हैं। उन्होंने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वैदिक ज्ञान पर शोध के लिए शोध पीठ की स्थापना की गयी है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उप मुख्यमंत्री डाॅ0 दिनेश शर्मा ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय की एक शताब्दी की यात्रा सुखद रही है। विश्वविद्यालय में भूतपूर्व राष्ट्रपति डाॅ0 शंकर दयाल शर्मा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने वाले अनेक लोगों ने शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने लखनऊ विश्वविद्यालय के समग्र विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु आधारभूत संरचनाओं के निर्माण हेतु धनराशि दी है। प्रदेश सरकार द्वारा विश्वविद्यालय को 11.68 करोड़ रुपये की धनराशि अनुदान के रूप में दी गयी है। शोध के लिए 2.5 करोड़ रुपये की धनराशि प्रदान की गयी है। विश्वविद्यालय में शोध पीठों की स्थापना के लिए 02-02 करोड़ रुपये की धनराशि तथा कैलाश, सुभाष, बीरबल साहनी आदि छात्रावासों की मरम्मत के लिए 12 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि दी गयी है।
कार्यक्रम में अपने स्वागत सम्बोधन में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 आलोक कुमार राय ने कहा कि मुख्यमंत्री जी द्वारा विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन उच्च शिक्षा एवं उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का द्योतक है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी उच्च शिक्षा के प्रसार के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय की उपलब्धियों की जानकारी देने के साथ ही भविष्य की योजनाओं के सम्बन्ध में भी बताया। उन्होंने विद्यार्थियों में इमोशनल एवं स्प्रिचुअल कोशन्ट बढ़ाने के विश्वविद्यालय के प्रयासों के सम्बन्ध में भी अवगत कराया। कार्यक्रम के अन्त में उन्होंने मुख्यमंत्री जी और उप मुख्यमंत्री जी को अंगवस्त्र तथा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित भी किया।