नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने कहा है कि आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार के मुद्दे नाइजीरिया एवं माली की उनकी यात्रा के दौरान विचार-विमर्श के प्रमुख विषय थे। वह आज नाइजीरिया एवं माली की पांच दिनों की यात्रा से लौटते समय एयर इंडिया जहाज में मीडिया को ऑन बोर्ड संबोधित कर रहे थे। केन्द्रीय वित्त एवं कंपनी मामले राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति महोदय ने नाइजीरिया को क्षेत्र में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बताते हुए कहा कि यह क्षेत्र में भारत का न केवल सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है बल्कि भारत उसका कुल मिलाकर सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। उन्होंने आगे कहा कि भारत का रक्षा के क्षेत्र में एक पुराना और सघन प्रशिक्षण कर्यक्रम है, जो आज भी जारी है और इसका बहुत अधिक महत्व है। उन्होंने कहा कि बहुत से आईटी पेशेवरों को भी भारत में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि नाइजीरिया में हुए विचार-विमर्श बहुत लाभप्रद थे और नवीकरणीय ऊर्जा, सौर गठबंधन, ढांचागत विकास, कृषि, विनिर्माण, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे कुछ नये क्षेत्रों की आपसी सहयोग के लिए पहचान की गई। उन्होंने कहा कि नाइजीरिया ने भारत के सफल अंतरिक्ष कार्यक्रम में गहरी दिलचस्पी प्रदर्शित की। उन्होंने बताया कि नाइजीरिया ने नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में भारत से कुछ सहायता प्राप्त करने के प्रति भी रूचि प्रदर्शित की।
उपराष्ट्रपति महोदय ने वरिष्ठ स्तर पर माली की यात्रा को अपनी तरह की पहली यात्रा करार दिया और कहा कि भारत मानव संसाधन विकास एवं क्षमता निर्माण के क्षेत्रों में काम करने का इच्छुक है, जो हमसे उनकी आवश्यकता का एक केन्द्रीय पहलू है। उन्होंने आगे कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र, सौर ऊर्जा एवं कृषि जैसे कुछ नये क्षेत्रों की पहचान की गई। दोनों देशों ने एक संयुक्त आयोग बैठक पर भी सहमति जताई, जो बहुत जल्द आयोजित की जाएगी।
नियंत्रण रेखा के पार हाल में हुए सर्जिकल हमलों से संबंधित एक सवाल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि भारत हमेशा ही आतंकवादी हमलों का एक प्राप्तकर्ता ही नहीं हो सकता और हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा रह सकता। उन्होंने बताया कि कुछ आतंकी लांच पैड्स की पहचान कर ली गई थी और उन्हें समाप्त कर दिया गया। इस यात्रा के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि आतंकवाद दोनों देशों के साथ बातचीत का एक प्रमुख बिंदु था और ये दोनों ही देश बहुत गंभीर प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों के शिकार रह चुके हैं।
इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) से जुड़े एक प्रश्न पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि निर्णय लेने के प्रति इसके सहमति आधारित दृष्टिकोण ने निर्णय को निष्प्रभावी बना दिया और यह सदस्य देशों के भीतर की समस्याओं का समाधान करने में भी विफल रहा। ओआईसी को एक ऐसे क्लब के रूप में उद्धृत करते हुए उन्होंने संकेत दिया कि सभी सदस्य देशों ने द्विपक्षीय बातचीत के दौरान आतंकवाद की निंदा की थी और यह स्वीकार किया था कि कोई भी इसकी अनदेखी नहीं कर सकता, क्योंकि हर कोई इसका शिकार बन चुका है।
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