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Text of PMs address in 36th episode of Mann Ki Baat on AIR

देश-विदेश

नई दिल्ली: मेरे प्यारे देशवासियों, आप सबको नमस्कार । आकाशवाणी के माध्यम से ‘मन की बात’ करते-करते तीन वर्ष पूरे हो गए हैं । आज ये 36वाँ episode है । ‘मन की बात’ एक प्रकार से भारत की जो सकारात्मक शक्ति है, देश के कोने-कोने में जो भावनाएँ भरी पड़ी हैं, इच्छाएँ हैं, अपेक्षाएँ हैं, कहीं-कहीं शिकायत भी है – एक जन-मन में जो भाव उमड़ते रहते हैं ‘मन की बात’ ने उन सब भावों से मुझे जुड़ने का एक बड़ा अद्भुत अवसर दिया और मैंने कभी ये नहीं कहा है कि मेरे मन की बात है । ये ‘मन की बात’ देशवासियों के मन से जुड़ी हैं, उनके भाव से जुड़ी हैं, उनकी आशा-अपेक्षाओं से जुड़ी हुई हैं । और जब ‘मन की बात’ में बातें मैं बताता हूँ तो उसे देश के हर कोने से जो लोग मुझे अपनी बातें भेजते हैं, आपको तो शायद मैं बहुत कम कह पाता हूँ लेकिन मुझे तो भरपूर खज़ाना मिल जाता है । चाहे email पर हो, टेलीफोन पर हो, mygov पर हो, NarendraModiApp पर हो, इतनी बातें मेरे तक पहुँचती हैं । अधिकतम तो मुझे प्रेरणा देने वाली होती हैं । बहुत सारी, सरकार में सुधार के लिए होती हैं । कहीं व्यक्तिगत शिकायत भी होती हैं तो कहीं सामूहिक समस्या पर ध्यान आकर्षित किया जाता है । और मैं तो महीने में एक बार आधा घंटा आपका लेता हूँ, लेकिन लोग, तीसों दिन ‘मन की बात’ के ऊपर अपनी बातें पहुँचाते हैं । और उसका परिणाम ये आया है कि सरकार में भी संवेदनशीलता, समाज के दूर-सुदूर कैसी-कैसी शक्तियाँ पड़ी हैं, उस पर उसका ध्यान जाना, ये सहज अनुभव आ रहा है । और इसलिए ‘मन की बात’ की तीन साल की ये यात्रा देशवासियों की, भावनाओं की, अनुभूति की एक यात्रा है । और शायद इतने कम समय में देश के सामान्य मानव के भावों को जानने-समझने का जो मुझे अवसर मिला है और इसके लिए मैं देशवासियों का बहुत आभारी हूँ । ‘मन की बात’ में मैंने हमेशा आचार्य विनोबा भावे की उस बात को याद रखा है । आचार्य विनोबा भावे हमेशा कहते थे ‘अ-सरकारी, असरकारी ’ । मैंने भी ‘मन की बात’ को, इस देश के जन को केंद्र में रखने का प्रयास किया है । राजनीति के रंग से उसको दूर रखा है । तत्कालीन, जो गर्मी होती है, आक्रोश होता है, उसमें भी बह जाने के बजाय, एक स्थिर मन से, आपके साथ जुड़े रहने का प्रयास किया है । मैं ज़रूर मानता हूँ, अब तीन साल के बाद social scientists, universities, reseach scholars, media experts ज़रूर इसका analysis करेंगे । plus-minus हर चीज़ को उजागर करेंगे । और मुझे विश्वास है कि ये विचार-विमर्श भविष्य ‘मन की बात’ के लिए भी अधिक उपयोगी होगा, उसमें एक नयी चेतना, नयी ऊर्जा मिलेगी । और मैंने जब एक बार ‘मन की बात’ में कही थी कि हमें भोजन करते समय चिंता करनी चाहिये कि जितनी ज़रूरत है उतना ही लें, हम उसको बर्बाद न करें । लेकिन उसके बाद मैंने देखा कि देश के हर कोने से मुझे इतनी चिट्ठियाँ आयी, अनेक सामाजिक संगठन, अनेक नवयुवक पहले से ही इस काम को कर रहे हैं । जो अन्न थाली में छोड़ दिया जाता है उसको इकट्ठा करके, उसका सदुपयोग कैसे हो इसमें काम करने वाले इतने लोग मेरे इतने ध्यान में आये, मेरे मन को इतना बड़ा संतोष हुआ, इतना आनंद हुआ ।

एक बार मैंने ‘मन की बात’ में महाराष्ट्र के एक retired teacher श्रीमान् चन्द्रकान्त कुलकर्णी की बात कही थी, जो अपने pension में से, सोलह हज़ार रूपये का pension मिलता था उसमें से पाँच हज़ार रुपया वो, 51 post-dated cheque देकर के, स्वच्छता के लिये उन्होंने दान दे दिया था । और उसके बाद तो मैंने देखा कि स्वच्छता के लिए, इस प्रकार के काम करने के लिए कितने लोग आगे आए ।

एक बार मैंने हरियाणा के एक सरपंच की ‘selfie with daughter’ को देखा और मैंने ‘मन की बात’ में सबके सामने रखा । देखते ही देखते न सिर्फ़ भारत में, पूरे विश्व में ‘selfie with daughter’ एक बड़ा अभियान चल पड़ा । ये सिर्फ़ social media का मुद्दा नहीं है । हर बेटी को एक नया आत्मविश्वास, नया गर्व पैदा करने वाली ये घटना बन गयी । हर माँ-बाप को लगने लगा कि मैं अपनी बेटी के साथ selfie लूँ । हर बेटी को लगने लगा कि मेरा कोई माहात्म्य है, मेरा कोई महत्व है ।

पिछले दिनों मैं भारत सरकार के tourism department के साथ बैठा था । मैंने जब tour पर जाने वाले लोगों से कहा था कि आप incredible India पर, जहाँ भी जाएँ वहाँ की फोटो भेजिये । लाखों तस्वीरें, भारत के हर कोने की, एक प्रकार से tourism क्षेत्र में काम करने वालों की एक बहुत बड़ी अमानत बन गयी । छोटी-सी घटना कितना बड़ा आन्दोलन खड़ा कर देती है, ये ‘मन की बात’ में मैंने अनुभव किया है । आज मन कर गया, क्योंकि जब सोच रहा था तीन साल हो गये, तो पिछले तीन साल की कई घटनायें मेरे मन-मंदिर में छा गयीं । देश सही दिशा में जाने के लिए हर पल अग्रसर है । देश का हर नागरिक दूसरे की भलाई के लिए, समाज की अच्छाई के लिए, देश की प्रगति के लिए, कुछ-न-कुछ करना चाहता है ये मेरे तीन साल के ‘मन की बात’ के अभियान में, मैंने देशवासियों से जाना है, समझा है, सीखा है । किसी भी देश के लिए ये सबसे बड़ी पूँजी होती है, एक बहुत बड़ी ताक़त होती है । मैं ह्रदय से देशवासियों को नमन करता हूँ ।

मैंने एक बार ‘मन की बात’ में खादी के विषय में चर्चा की थी । और खादी एक वस्त्र नहीं, एक विचार है । और मैंने देखा कि इन दिनों खादी के प्रति काफ़ी रुचि बढ़ी है और मैंने स्वाभाविक रूप से कहा था कि मैं कोई खादीधारी बनने के लिए नहीं कह रहा हूँ लेकिन भाँति-भाँति के fabric होते हैं तो एक खादी क्यों न हो ? घर में चादर हो, रूमाल हो, curtain हो । अनुभव ये आया है कि युवा-पीढ़ी में खादी का आकर्षण बढ़ गया है । खादी की बिक्री बढ़ी है और उसके कारण ग़रीब के घर में सीधा-सीधा रोज़गारी का संबंध जुड़ गया है । 2 अक्टूबर से खादी में discount दिया जाता है , काफ़ी छूट-रियायत मिलती है । मैं फिर एक बार आग्रह करूँगा, खादी का जो अभियान चला है उसको हम और आगे चलायें, और बढ़ायें । खादी खरीद करके ग़रीब के घर में दिवाली का दीया जलायें, इस भाव को लेकर के हम काम करें । हमारे देश के ग़रीब को इस कार्य से एक ताक़त मिलेगी और हमें करना चाहिए । और इस खादी के प्रति रुचि बढ़ने के कारण खादी क्षेत्र में काम करने वालो में, भारत सरकार में खादी से संबंधित लोगों में एक नये तरीक़े से सोचने का उत्साह भी बढ़ा है । नई technology कैसे लाएँ, उत्पादन क्षमता कैसे बढ़ाएँ, solar-हथकरघे कैसे ले आएँ? पुरानी जो विरासत थी जो बिलकुल ही 20-20, 25-25, 30-30 साल से बंद पड़ी थीं उसको पुनर्जीवित कैसे किया जाए ।

उत्तर प्रदेश में, वाराणसी सेवापुर में, अब सेवापुरी का खादी आश्रम 26 साल से बंद पड़ा था लेकिन आज पुनर्जीवित हो गया । अनेक प्रकार की प्रवर्तियों को जोड़ा गया । अनेक लोगों को रोज़गार के नये अवसर पैदा किये । कश्मीर में पम्पोर में खादी एवं ग्रामोद्योग ने बंद पड़े अपने प्रशिक्षण केंद्र को फिर से शुरू किया और कश्मीर के पास तो इस क्षेत्र में देने के लिए बहुत कुछ है । अब ये प्रशिक्षण केंद्र फिर से शुरू होने के कारण नई पीढ़ी को आधुनिक रूप से निर्माण कार्य करने में, बुनने में, नयी चीज़ें बनाने में एक मदद मिलेगी और मुझे अच्छा लग रहा है कि जब बड़े-बड़े Corporate House भी दिवाली में जब gift देते हैं तो इन दिनों खादी की चीज़े देना शुरू किये हैं । लोग भी एक दूसरे को gift के रूप में खादी की चीज़े देना शुरू किये हैं । एक सहज़ रूप से, चीज़ कैसे आगे बढ़ती है ये हम सब अनुभव करते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, पिछले महीने ‘मन की बात’ में ही हम सब ने एक संकल्प किया था और हमने तय किया था कि गाँधी-जयंती से पहले 15 दिन देश-भर में स्वच्छता का उत्सव मनायेंगे । स्वच्छता से जन-मन को जोड़ेंगे । हमारे आदरणीय राष्ट्रपति जी ने इस कार्य का आरंभ किया और देश जुड़ गया । अबाल-वृद्ध, पुरुष हो, स्त्री हो, शहर हो, गाँव हो, हर कोई आज इस स्वच्छता-अभियान का हिस्सा बन गया है । और जब मैं कहता हूँ ‘संकल्प से सिद्धि’, ये स्वच्छता-अभियान एक संकल्प-सिद्धि की ओर कैसे आगे बढ़ रहा है हम अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं । हर कोई इसको स्वीकारता है, सहयोग करता है और साकार करने के लिए कोई न कोई योगदान देता है । मैं आदरणीय राष्ट्रपति जी का तो आभार मानता हूँ लेकिन साथ-साथ देश के हर वर्ग ने इसको अपना काम माना है । हर कोई इसके साथ जुड़ गया है । चाहे खेल- जगत के लोग हों, सिने-जगत के लोग हों, academicians हों, स्कूल हों, कॉलेज हों, university हों, किसान हों, मज़दूर हों, अफ़सर हों, बाबू हों, पुलिस हों, फौज के जवान हों – हर कोई इसके साथ जुड़ गया है । सार्वजनिक स्थानों पर एक दबाव भी पैदा हुआ है कि अब सार्वजनिक स्थान गंदे हों तो लोग टोकते हैं, वहाँ काम करने वालों को भी एक दबाव महसूस होने लगा है । मैं इसे अच्छा मानता हूँ और मेरे लिए ख़ुशी है कि ‘स्वच्छता ही सेवा अभियान’ के सिर्फ पहले चार दिन में ही करीब-करीब 75 लाख से ज़्यादा लोग, 40 हज़ार से ज़्यादा initiative लेकर के गतिविधियों में जुड़ गए और कुछ तो लोग मैंने देखा है कि लगातार काम कर रहे हैं, परिणाम लाकर के रहने का फैसला ले करके काम कर रहे हैं । इस बार एक और भी चीज़ देखी – एक तो होता है कि हम कहीं स्वच्छता करें, दूसरा होता है हम जागरूक रह करके गन्दगी न करें, लेकिन स्वच्छता को अगर स्वभाव बनाना है तो एक वैचारिक आंदोलन भी ज़रुरी होता है । इस बार ‘स्वच्छता ही सेवा’ के साथ कई प्रतियोगितायें हुईं । ढाई करोड़ से ज़्यादा बच्चों ने स्वच्छता के निबंध-स्पर्धा में भाग लिया । हज़ारों बच्चों ने paintings बनायी । अपनी-अपनी कल्पना से स्वच्छता को लेकर के चित्र बनाये । बहुत से लोगों ने कवितायें बनायी और इन दिनों तो मैं social media पर ऐसे जो हमारे नन्हें साथियों ने, छोटे-छोटे बालकों ने चित्र भेजे हैं वो मैं post भी करता हूँ, उनका गौरवगान करता हूँ । जहाँ तक स्वच्छता की बात आती है तो मैं media के लोगों का आभार मानना कभी भूलता नहीं हूँ । इस आंदोलन को उन्होंने बहुत पवित्रतापूर्वक आगे बढ़ाया है । अपने-अपने तरीक़े से, वे जुड़ गए हैं और एक सकारात्मक वातावरण बनाने में उन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया है और आज भी वो अपने-अपने तरीक़े से स्वच्छता के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं । हमारे देश का electronic media, हमारे देश का print media देश की कितनी बड़ी सेवा कर सकता है ये ‘स्वच्छता ही सेवा’ आंदोलन में हम देख पाते हैं । अभी कुछ दिन पहले मुझे किसी ने ध्यान आकर्षित किया श्रीनगर के 18 साल के नौजवान बिलाल डार के संबंध में । और आपको जान करके ख़ुशी होगी कि श्रीनगर नगर निगम ने बिलाल डार को स्वच्छता के लिए अपना Brand Ambassador बनाया है और जब Brand Ambassador की बात आती है तो आपको लगता होगा कि शायद वो सिने-कलाकार होगा, शायद वो खेल-जगत का हीरो होगा, जी नहीं । बिलाल डार स्वयं 12-13 साल की अपनी उम्र से, पिछले 5-6 साल से स्वच्छता में लग गया है । एशिया की सबसे बड़ी झील श्रीनगर के पास वहाँ प्लास्टिक हो, पॉलिथीन हो, used bottle हो, कूड़ा-कचरा हो, बस वो साफ़ करता रहता है । उसमें से कुछ कमाई भी कर लेता है । क्योंकि उसके पिता जी की बहुत छोटी आयु में कैंसर में मृत्यु हो गई लेकिन उसने अपना जीवन आजीविका के साथ-साथ स्वच्छता के साथ जोड़ दिया । एक अनुमान है कि बिलाल ने सालाना 12 हज़ार किलो से ज़्यादा कूड़ा-कचरा साफ़ किया है । श्रीनगर नगर निगम को भी मैं बधाई देता हूँ कि स्वच्छता के प्रति इस पहल के लिए और Ambassador के लिए उनकी इस कल्पना के लिए, क्योंकि श्रीनगर एक tourist destination है और हिन्दुस्तान का हर नागरिक श्रीनगर जाने का मन करता है उसका, और वहाँ सफ़ाई को इतना बल मिले ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है । और मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने बिलाल को सिर्फ Brand Ambassador बनाया ऐसा नहीं है, सफ़ाई करने वाले बिलाल उसको निगम ने इस बार गाड़ी दी है, uniform दिया है और वो अन्य इलाक़ों में भी जाकर के लोगों को स्वच्छता के लिए शिक्षित करता है, प्रेरित करता है और परिणाम लाने तक पीछे लगा रहता है । बिलाल डार, आयु छोटी है लेकिन स्वच्छता में रुचि रखने वाले हर किसी के लिए प्रेरणा का कारण है । मैं बिलाल डार को बहुत बधाई देता हूँ ।

मेरे प्यारे देशवासियो, इस बात को हमें स्वीकार करना होगा कि भावी इतिहास, इतिहास की कोख में जन्म लेता है और जब इतिहास की बात आती है तो महापुरुष याद आना बहुत स्वाभाविक है । ये अक्तूबर महीना हमारे इतने सारे महापुरुषों को स्मरण करने का महीना है । महात्मा गाँधी से लेकर के सरदार पटेल तक इसी अक्तूबर में इतने महापुरुष हमारे सामने हैं कि जिन्होंने 20वीं सदी और 21वीं सदी के लिए हम लोगों को दिशा दी, हमारा नेतृत्व किया, हमारा मार्गदर्शन किया और देश के लिए उन्होंने बहुत कष्ट झेले । दो अक्तूबर को महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री जी की जन्म जयंती है तो 11 अक्तूबर को जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख की जन्म-जयंती है और 25 सितम्बर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्म-जयंती है । नानाजी और दीनदयाल जी की तो ये शताब्दी का भी वर्ष है । और इन सभी महापुरुषों का एक केंद्र-बिंदु क्या था? एक बात common थी और वो देश के लिए जीना, देश के लिए कुछ करना और मात्र उपदेश नहीं, अपने जीवन के द्वारा करके दिखाना । गाँधी जी, जयप्रकाश जी, दीनदयाल जी ये ऐसे महापुरुष हैं जो सत्ता के गलियारों से कोसो दूर रहे हैं, लेकिन जन-जीवन के साथ पल-पल जीते रहे, जूझते रहे और ‘सर्वजन हिताय–सर्वजन सुखाय’, कुछ-न-कुछ करते रहे । नानाजी देशमुख राजनीतिक जीवन को छोड़ करके ग्रामोदय में लग गए थे और जब आज उनका शताब्दी-वर्ष मनाते हैं तो उनके ग्रामोदय के काम के प्रति आदर होना बहुत स्वाभाविक है ।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्रीमान अब्दुल कलाम जी जब नौजवानों से बात करते थे तो हमेशा नानाजी देशमुख के ग्रामीण विकास की बातें किया करते थे । बड़े आदर से उल्लेख करते थे और वो स्वयं भी नानाजी के इस काम को देखने के लिए गाँव में गए थे । दीनदयाल उपाध्याय जी जैसे महात्मा गाँधी समाज के आखिरी छोर में बैठे हुए इंसान की बात करते थे । दीनदयाल जी भी समाज के आखिरी छोर पर बैठे हुए ग़रीब, पीड़ित, शोषित, वंचित की ही और उसके जीवन में बदलाव लाने की – शिक्षा के द्वारा, रोज़गार के द्वारा किस प्रकार से बदलाव लाया जाये, इसकी चर्चा करते थे । इन सभी महापुरुषों को स्मरण करना ये उनके प्रति उपकार नहीं है , ये महापुरुषों का स्मरण इसलिए करते हैं कि हमें आगे का रास्ता मिलता रहे, आगे की दिशा मिलती रहे ।

अगले ‘मन की बात’ में, मैं जरुर सरदार वल्लभ भाई पटेल के विषय में कहूँगा, लेकिन 31 अक्तूबर पूरे देश में Run for Unity ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ । देश के हर शहर में, हर नगर में बहुत बड़ी मात्रा में Run for Unity के कार्यक्रम होने चाहिए और मौसम भी ऐसा है कि दौड़ने का मज़ा आता है – सरदार साहब जैसी लौह-शक्ति पाने के लिए ये भी तो ज़रुरी है । और सरदार साहब ने देश को एक किया था । हमने भी एकता के लिए दौड़ करके एकता के मंत्र को आगे बढ़ाना चाहिए ।

हम लोग बहुत स्वाभाविक रूप से कहते हैं – विविधता में एकता, भारत की विशेषता । विविधता का हम गौरव करते हैं लेकिन क्या कभी आपने इस विविधता को अनुभव करने का प्रयास किया है क्या? मैं बार-बार हिंदुस्तान के मेरे देशवासियों से कहना चाहूँगा और ख़ास करके मेरी युवा-पीढ़ी को कहना चाहूँगा कि हम एक जागृत-अवस्था में हैं । इस भारत की विविधताओं का अनुभव करें, उसको स्पर्श करें, उसकी महक को अनुभव करें । आप देखिये, आपके भीतर के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी हमारे देश की ये विविधतायें एक बहुत बड़ी पाठशाला का काम करती है । Vacation है, दिवाली के दिन है, हमारे देश में चारों तरफ कहीं-न-कहीं जाने का स्वभाव बना हुआ है ,लोग जाते हैं tourist के नाते और बहुत स्वाभाविक है । लेकिन कभी-कभी चिंता होती है कि हम अपने देश को तो देखते नहीं हैं, देश की विविधताओं को जानते नहीं, समझते नहीं, लेकिन चका-चौंध के प्रभाव में आकर के विदेशों में ही tour करना पसंद करना शुरू किये हैं । आप दुनिया में जायें मुझे कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन कभी अपने घर को भी तो देखें ! उत्तर-भारत के व्यक्ति को पता नहीं होगा कि दक्षिण-भारत में क्या है? पश्चिम-भारत के व्यक्ति को पता नहीं होगा कि पूर्व-भारत में क्या है? हमारा देश कितनी विविधताओं से भरा हुआ है ।

महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी अगर उनकी बातों में देखोगे तो एक बार बात आती है कि जब उन्होंने भारत-भ्रमण किया तब उनको भारत को देखने-समझने में और उसके लिए जीने-मरने के लिए एक नई प्रेरणा मिली । इन सभी महापुरुषों ने भारत का व्यापक भ्रमण किया । अपने कार्य के प्रारंभ में उन्होंने भारत को जानने, समझने का प्रयास किया । भारत को अपने आप में जीने की कोशिश की । क्या हम, हमारे देश के भिन्न-भिन्न राज्यों को, भिन्न-भिन्न समाजों को, समूहों को, उनके रीति-रिवाजों को, उनकी परम्परा को, उनके पहर्वेश (पहनावे) को, उनके खान-पान को, उनकी मान्यताओं को एक विद्यार्थी के रूप में सीखने का, समझने का, जीने का प्रयास कर सकते हैं ?

Tourism में value addition तभी होगा कि जब हम सिर्फ़ मुलाक़ाती नहीं, हम एक विद्यार्थी के तौर पर उसका पाना-समझना-बनने का प्रयास करें । मेरा स्वयं का अनुभव है मुझे हिंदुस्तान के पाँच सौ से अधिक district में जाने का मौक़ा मिला होगा । साढ़े चार सौ से अधिक district तो ऐसे होंगे जहाँ मुझे रात्रि-मुक़ाम का अवसर मिला है और आज जब मैं भारत में इस दायित्व को संभाल रहा हूँ तो मेरे उस भ्रमण का अनुभव मुझे बहुत काम आता है । चीजों को समझने में मुझे बहुत सुविधा मिलती है । आपसे भी मेरा आग्रह है कि आप इस विशाल भारत को “विविधता में एकता” सिर्फ़ नारा नहीं, हमारी अपार-शक्ति का ये भंडार है, इसको अनुभव कीजिये । ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सपना इसमें निहित है । खान-पान की कितनी varieties हैं ! पूरे जीवन भर हर दिन एक-एक नई variety अगर खाते रहें तो भी repetition नहीं होगा । अब ये हमारी tourism की बड़ी ताक़त है । मैं आग्रह करूँगा कि इस छुट्टियों में आप सिर्फ घर के बाहर जाएँ ऐसा नहीं, change के लिए निकल पड़ें ऐसा नहीं – कुछ जानने- समझने-पाने के इरादे से निकलिए । भारत को अपने भीतर आत्मसात् कीजिये । कोटि-कोटि जनों की विविधताओं को भीतर आत्मसात् कीजिये । इन अनुभवों से आपका जीवन समृद्ध हो जायेगा । आपकी सोच का दायरा विशाल हो जायेगा । और अनुभव से बड़ा शिक्षक कौन होता है ! सामान्य तौर पर अक्तूबर से मार्च तक का समय ज्यादातर पर्यटन का रहता है । लोग जाते हैं । मुझे विश्वास है कि इस बार भी अगर आप जायेंगे तो मेरे उस अभियान को और आगे बढ़ायेंगे । आप जहाँ भी जाएँ अपने अनुभवों को share कीजिये, तस्वीरों को share कीजिये । #incredibleindia ( हैश टैग incredibleindia) इस पर आप फ़ोटो ज़रुर भेजिए । वहाँ के लोगों से मिलना हो जाये तो उनकी भी तस्वीर भेजिए । सिर्फ़ इमारतों की नहीं, सिर्फ़ प्राकृतिक सौन्दर्य की नहीं ,वहाँ के जन-जीवन की कुछ बातें लिखिए । आपकी यात्रा के अच्छे निबंध लिखिए । Mygov पर भेजिए, NarendraModiApp पर भेजिये । मेरे मन में एक विचार आता है कि हम भारत के tourism को बढ़ावा देने के लिए क्या आप अपने राज्य के सात उत्तम से उत्तम tourist destination क्या हो सकते हैं – हर हिन्दुस्तानी को आपके राज्य के उन सात चीज़ों के विषय में जानना चाहिये । हो सके तो उन सात स्थानों पर जाना चाहिये । आप उसके विषय में कोई जानकारी दे सकते हैं क्या ? NarendraModiApp पर उसको रख सकते हैं क्या ? #IncredibleIndia (हैश टैग incredibleindia) पर रख सकते हैं क्या ? आप देखिये, एक राज्य के सब लोग ऐसा बतायेंगे तो मैं सरकार में कहूँगा कि वो उसको scrutiny करे और common कौन-सी सात चीज़े हर राज्य से आई हैं उस पर वो प्रचार-साहित्य तैयार करें । यानि एक प्रकार से जनता के अभिप्रायों से tourist destination का बढ़ावा कैसे हो ? उसी प्रकार से आपने जो चीजें देखी हैं देशभर में, उसमें से सात आपको जो अच्छे से अच्छी लगी हैं , आप चाहते हैं कि किसी-न-किसी ने तो इसको देखनी चाहिये, जाना चाहिये, उसके विषय में जानकारी पानी चाहिये तो आप आपकी पसंद की सात ऐसे स्थान का भी MyGov पर, NarendraModiApp पर ज़रूर भेजिये । भारत सरकार उस पर काम करेगी । ऐसे उत्तम destination जो होंगे उसके लिए film बनाना, video बनाना, प्रचार-साहित्य तैयार करना, उसको बढ़ावा देना – आपके द्वारा चुनी हुई चीज़ों को सरकार स्वीकार करेगी । आइये, मेरे साथ जुड़िये । इस अक्तूबर महीने से मार्च महीने तक का समय का उपयोग देश के tourism को बढ़ाने में आप भी एक बहुत बड़े catalyst agent बन सकते हैं । मैं आपको निमंत्रण देता हूँ ।

मेरे प्यारे देशवासियो, एक इन्सान के नाते बहुत-सी चीजें मुझे भी छू जाती हैं । मेरे दिल को आंदोलित कर जाती हैं । मेरे मन पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं । आख़िर मैं भी तो आप ही की तरह एक इन्सान हूँ । पिछले दिनों एक घटना है जो शायद आपके भी ध्यान में आयी होगी – महिला-शक्ति और देशभक्ति की अनूठी मिसाल हम देशवासियों ने देखी है । Indian Army को लेफ्टिनेंट स्वाति और निधि के रूप में दो वीरांगनाएँ मिली हैं और वे असामान्य वीरांगनाएँ है । असामान्य इसलिए हैं कि स्वाति और निधि माँ-भारती की सेवा करते-करते उनके पति शहीद हो गए थे । हम कल्पना कर सकते हैं कि इस छोटी आयु में जब संसार उजड़ जाये तो मन:स्थिति कैसे होगी ? लेकिन शहीद कर्नल संतोष महादिक की पत्नी स्वाति महादिक इस कठिन परिस्थितियों का मुक़ाबला करते हुए उसने मन में ठान ली । और वे भारत की सेना में भर्ती हो गयीं । 11 महीने तक उसने कड़ी मेहनत करके प्रशिक्षण हासिल किया और अपने पति के सपनों को पूरा करने के लिए उसने अपनी ज़िन्दगी झोंक दी । उसी प्रकार से निधि दुबे, उनके पति मुकेश दुबे सेना में नायक का काम करते थे और मातृ-भूमि के लिए शहीद हो गए तो उनकी पत्नी निधि ने मन में ठान ली और वे भी सेना में भर्ती हो गयीं । हर देशवासी को हमारी इस मातृ-शक्ति पर, हमारी इन वीरांगनाओं के प्रति आदर होना बहुत स्वाभाविक है । मैं इन दोनों बहनों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ । उन्होंने देश के कोटि-कोटि जनों के लिए एक नयी प्रेरणा, एक नयी चेतना जगायी है । उन दोनों बहनों को बहुत-बहुत बधाई ।

मेरे प्यारे देशवासियो, नवरात्रि का उत्सव और दिवाली के बीच हमारे देश की युवा पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा अवसर भी है। FIFA under-17 का वर्ल्ड-कप हमारे यहाँ हो रहा है । मुझे विश्वास है कि चारों तरफ़ फुटबाल की गूँज सुनाई देगी । हर पीढ़ी की फुटबाल में रूचि बढ़ेगी । हिन्दुस्तान का कोई स्कूल – कॉलेज का मैदान ऐसा न हो कि जहाँ पर हमारे नौजवान खेलते हुए नज़र न आयें । आइये, पूरा विश्व जब भारत की धरती पर खेलने के लिए आ रहा है, हम भी खेल को अपने जीवन का हिस्सा बनायें ।

मेरे प्यारे देशवासियो, नवरात्रि का पर्व चल रहा है । माँ दुर्गा की पूजा का अवसर है । पूरा माहौल पावन पवित्र सुगंध से व्याप्त है । चारों तरफ़ एक आध्यात्मिकता का वातावरण, उत्सव का वातावरण, भक्ति का वातावरण और ये सब कुछ शक्ति की साधना का पर्व माना जाता है । ये शारदीय-नवरात्रि के रूप में जाना जाता है । और यहीं से शरद-ऋतु का आरंभ होता है । नवरात्रि के इस पावन-पर्व पर मैं देशवासियों को अनेक-अनेक शुभकामनायें देता हूँ और माँ-शक्ति से प्रार्थना करता हूँ कि देश के सामान्य-मानव के जीवन की आशा-आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए हमारा देश नई ऊँचाइयों को प्राप्त करे । हर चुनौतियों का सामना करने का सामर्थ्य देश को आए । देश तेज़ गति से आगे बढ़े और दो हज़ार बाईस (2022) भारत की आज़ादी के 75 साल- आज़ादी के दीवानों के सपनों को पूरा करने का प्रयास, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प, अथाह मेहनत, अथाह पुरुषार्थ और संकल्प को साकार करने के लिए पांच साल का road map बना करके हम चल पड़े और माँ शक्ति हमे आशीर्वाद दे । आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ । उत्सव भी मनायें, उत्साह भी बढ़ायें ।

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