महामारी को नियंत्रण में रखने के लिए समय पर लागू किए गए विभिन्न उपायों, बड़े पैमाने पर मौद्रिक विस्तार करने और व्यापक राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की बदौलत ही देश की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2021 में मंदी की गिरफ्त में आने से बच पाई है
आर्थिक समीक्षा में ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति (एसओई) 2020-21 – व्यापक नजरिया’ शीर्षक वाले विशेष अध्याय में कोविड काल की भारतीय अर्थव्यवस्था का अत्यंत सहज विवरण पेश किया गया है। इसमें बताया गया है कि सरकार द्वारा समय पर उठाए गए प्रभावकारी नीतिगत कदमों की मदद से सबसे पहले तो देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में दर्ज की गई तेज ऋणात्मक गिरावट को सफलतापूर्वक अत्यंत सीमित किया गया और फिर ठीक इसके बाद ही जीडीपी में ‘V’ आकार में निरंतर बेहतरी हासिल की गई। इसके साथ ही इस अध्याय में उन सरकारी नीतियों से मिलने वाले अभिनव मजबूत सहारे का भी उल्लेख किया गया है जिनका उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को महामारी से पहले के तेज विकास वाले पथ पर फिर से अग्रसर करना है।
एसओई में महामारी का प्रकोप शुरू होने के समय पूरी दुनिया के सामने उत्पन्न हुई ‘जीवन बनाम आजीविका’ की उस नीतिगत दुविधा का भी उल्लेख किया गया है जिसके तहत समस्त देश इन दोनों में से किसी एक का चयन करने पर विवश हो गए थे। जहां तक भारत सरकार का सवाल है, इसने महामारी को नियंत्रण में रखने की रणनीति को अपनाते हुए सबसे पहले लोगों की जिंदगियां बचाने पर ही फोकस किया, लेकिन महामारी से निपटने की कारगर व्यवस्था हो जाने के बाद इसने जल्द ही लोगों की आजीविकाओं को बनाए रखने पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। इसका मुख्य उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को अनलॉक करने की प्रक्रिया में तेजी लाना था। इसके अत्यंत अच्छे नतीजे देखने को मिले। इसकी बानगी आपके सामने है। वित्त वर्ष 2021 की प्रथम तिमाही में जीडीपी में सालाना आधार पर 23.9 प्रतिशत की तेज ऋणात्मक गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि दूसरी तिमाही में यह गिरावट काफी कम होकर 7.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। यही नहीं, इसके बाद महामारी से जुड़े संक्रमण के मामले भी निरंतर घटते चले गए। यह सब कुछ लॉकडाउन को बिल्कुल सही समय पर लागू करने और अनलॉकिंग की प्रक्रिया को क्रमिक रूप से धीरे-धीरे आगे बढ़ाने से ही संभव हो पाया। इतना ही नहीं, इसकी बदौलत भारत अन्य देशों की तुलना में काफी पहले ही उपर्युक्त नीतिगत दुविधा से बाहर निकल पाया।
एसओई में जिस मौद्रिक रणनीति की चर्चा की गई है वह उधारी लागत कम करके और तरलता या नकदी प्रवाह बढ़ाकर कारोबारियों को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए आरबीआई द्वारा किए गए विभिन्न उपायों से जुड़ी हुई है। आरबीआई ने नीतिगत दरों में कटौती की, खुले बाजार एवं दीर्घकालिक रेपो परिचालन की शुरुआत की, बैंकों के सीआरआर को कम किया, बैंकों की उधारी सीमाएं बढ़ाईं, सावधि ऋणों पर मोहलत दी एवं ब्याज अदायगी को स्थगन किया, सरकारों के अर्थोपाय अग्रिम को बढ़ाया, इत्यादि। नीतिगत दरों में उल्लेखनीय कटौती दरअसल इस रणनीति की खासियत प्रतीत होती है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप पूंजी के देश से बाहर जाने का खतरा था। हालांकि, महामारी से उत्पन्न आर्थिक सुस्ती से स्वयं को बाहर निकालने के लिए विकसित देशों द्वारा वैश्विक स्तर पर तरलता या नकदी प्रवाह की भरमार कर देने से पूंजी के भारत से बाहर जाने का खतरा टल गया। दरअसल, उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में दिख रही तेज विकास की संभावनाओं के मद्देनजर विशेषकर भारत अपने यहां पूंजी को निरंतर आकर्षित करता रहा है।
महामारी से निपटने के लिए अपनाई गई राजकोषीय रणनीति के तहत शुरुआत में देश की आबादी के कमजोर वर्गों को एक सुरक्षा कवर प्रदान किया गया जिसमें स्वास्थ्य संबंधी सहायता, खाद्य आपूर्ति, नकदी का हस्तांतरण, ऋण गारंटी, ब्याज संबंधी सब्सिडी और कर स्थगन, इत्यादि शामिल थे। राजकोषीय रणनीति के तहत किए जा रहे फोकस को वर्ष के उत्तरार्द्ध में बदल कर उपभोग या खपत बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। जैसा कि एसओई में विस्तार से बताया गया है, राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज का आकार बढ़ाने की जरूरत इसलिए महसूस की गई, ताकि बढ़ती निजी उपभोग मांग के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सके। अनिश्चितता के प्रारंभिक दौर में निजी उपभोग मांग कम थी और यह मुख्यत: आवश्यक खर्चों तक ही सीमित थी क्योंकि लोग सावधानी बरतते हुए अपनी बचत राशि को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। तदनुसार, आवश्यक खपत या उपभोग को पूरा करने के लिए ही राजकोषीय व्यय सुनिश्चित किया गया। जैसे ही लॉकडाउन में ढील देने से अनिश्चितता दूर हुई, लोगों ने गैर-आवश्यक उपभोग पर खुलकर खर्च करना शुरू कर दिया। आर्थिक विकास की गति तेज होने पर अतिरिक्त राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता महसूस होने लगी, ताकि अर्थव्यवस्था में दिख रही बेहतरी के शुरुआती लक्षण को मजबूती प्रदान की जा सके। अत: निजी उपभोग में बदलाव के अनुरूप ही आवश्यक राजकोषीय उपाय करने से राजकोषीय संसाधनों की बर्बादी को रोकना सुनिश्चित किया जा सका।
एसओई में इसके साथ ही अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता में नई जान फूंकने में ढांचागत सुधार की अहम भूमिका के बारे में बताया गया है। सरकार द्वारा घोषित प्रमुख सुधारों में कृषि उपज के विपणन में किसानों को आजादी देना, विकास एवं रोजगार सृजन में आवश्यक सहयोग देने के लिए एमएसएमई की परिभाषा में परिवर्तन करना, चार श्रम संहिताओं को कानून का रूप देना, क्रॉस-पावर सब्सिडी को कम करना, सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) का विनिवेश और कोयले के वाणिज्यिक खनन का मार्ग प्रशस्त करना शामिल थे। पिछले 6-7 वर्षों में लागू किए गए सुधारों के साथ-साथ इन सुधारों का भी उद्देश्य निजी क्षेत्र के निवेश के मार्ग में मौजूद बाध्यकारी अवरोधों को कम करना है।
एसओई में उल्लेख किए गए आर्थिक आउटलुक में वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। इसी तरह आईएमएफ ने जनवरी 2021 के अपने अपडेट में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है। ये पूर्वानुमान दरअसल वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर की संभावनाओं को ध्यान में रखते ही लगाए गए हैं जिसके प्रथम छमाही के (-)19.4 प्रतिशत से काफी सुधर कर दूसरी छमाही में (+)23.9 प्रतिशत हो जाने का अनुमान लगाया गया है। यहां तक कि प्रथम छमाही में ही जीडीपी वृद्धि दर प्रथम तिमाही के (-)29.3 प्रतिशत से काफी सुधर कर दूसरी तिमाही में (+) 23.2 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है। जीडीपी की क्रमिक वृद्धि दरों में इस तरह की आकर्षक छलांग निश्चित रूप से किसी भी अर्थव्यवस्था में मंदी के व्याप्त होने को प्रतिबिंबित नहीं करती है। इसके ठीक विपरीत ये आंकड़े यही दर्शाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था बड़ी मजबूती के साथ पटरी पर टिकी हुई है जो सरकार द्वारा महामारी को नियंत्रण में रखने के लिए लागू किए गए विभिन्न उपायों, व्यापक मौद्रिक विस्तार, राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज और ढांचागत सुधारों की बदौलत ही संभव हो पाया है।
राजीव मिश्रा,
आर्थिक सलाहकार,
वित्त मंत्रालय
(ये लेखक के निजी विचार हैं)