नई दिल्ली: कंपनी मामले के मंत्रालय द्वारा भारतीय ऋणशोधन (इन्सोल्वेंसी) और दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन की संस्तुति करने के लिए गठित ऋणशोधन कानून समिति (आईएलसी) ने अपनी दूसरी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। इसमें सीमापार ऋणशोधन के बारे में उल्लेख किया गया है। वित्त और कंपनी मामले के मंत्री श्री अरूण जेटली को आज कंपनी मामले के सचिव श्री इंजेती श्रीनिवास ने यह रिपोर्ट सौंपी।
आईएलसी ने सीमापार ऋणशोधन, 1957 के यूएनसीआईटीआरएएल प्रारूप कानून को लागू करने की संस्तुति की है, क्योंकि इसमें सीमापार ऋणशोधन संबंधी मुद्दे से निपटने के लिए व्यापक प्रावधान शामिल हैं। समिति ने घरेलू ऋणशोधन क्षमता संबंधी प्रावधानों और प्रस्तावित सीमापार ऋणशोधन से जुड़े प्रावधानों के बीच किसी प्रकार की असंगति को दूर करने के लिए भी कुछ प्रावधानों की संस्तुति की है।
यूएनसीआईटीआरएएल प्रारूप कानून लगभग 44 देशों में लागू किया गया है। इसलिए इसमें सीमापार ऋणशोधन से जुड़े मुद्दे से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ परंपराओं को शामिल किया गया है। घरेलू प्रक्रियाएं और लोगों के हितों की रक्षा से जुड़े प्रावधान शामिल होने से यह लाभकारी है। विदेशी निवेशकों के बीच अधिक विश्वास पैदा करना, घरेलू ऋणशोधन कानून के साथ मजबूती से जुड़ना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मजबूत तंत्र कायम होना इसकी अन्य विशेषताओं में शामिल हैं।
इस प्रारूप कानून में सीमापार ऋणशोधन के चार प्रमुख सिद्धांत शामिल हैं, जैसे- किसी उल्लंघनकर्ता कर्जदार के विरूद्ध घरेलू ऋणशोधन प्रक्रिया में भाग लेने अथवा उसे शुरू करने के लिए विदेशी ऋणशोधन व्यवसायियों और विदेशी ऋणदाताओं तक सीधी पहुंच; विदेशी प्रक्रियाओं को मान्यता और सुधार के प्रावधान; घरेलू और विदेशी न्यायालयों तथा घरेलू और विदेशी ऋणशोधन कारोबारियों के बीच सहयोग कायम करना; और विभिन्न देशों में दो अथवा अधिक ऋणशोधन प्रक्रियाओं के बीच समन्वय कायम करना। मुख्य हित के केंद्र की अवधारण द्वारा मुख्य प्रक्रिया परिभाषित है।