नई दिल्ली: आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मौसम विभाग द्वारा औसत से कम मॉनसून होने की भविष्यवाणी के अनुसार किसानों के अनुकूल हस्तक्षेपों की एक श्रृंखला शुरू करने के लिए कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इससे मॉनसून देरी से आने और इसकी अनिश्चितता के कारण पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। खड़ी कृषि फसलों और बहुवर्षीय ऑर्किडों को बचाने के लिए तुरंत उपचारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सी सी ई ए) ने मॉनसून की कमी में सूखे की स्थिति होने पर राज्य सरकारों द्वारा शुरू किये जाने वाले निम्नलिखित हस्तक्षेपों/कदमों को मंजूरी दी है –
ए- 100 करोड़ रुपये के आवंटन से फसलों की रक्षात्मक सिंचाई के लिए डीजल अनुदान सहायता योजना (डीजल सब्सिडी स्कीम) लागू करना।
बी- फसलों की दोबारा बुआई और उचित किस्मों के बीजों की खरीदारी में आने वाले अतिरिक्त व्यय की आंशिकरूप से प्रतिपूर्ति हेतु किसानों के लिए बीज सब्सिडी की सीमा बढ़ाना।
सी- बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच) के अधीन डेढ़ सौ करोड़ रुपये के अतिरिक्त आवंटन से बहुवर्षीय बागवानी फसलों के लिए सूखे से निपटने के हस्तक्षेपों को लागू करना।
डी- चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की उप-योजना के रूप में वर्ष 2015-16 के दौरान 50 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ अतिरिक्त चारा विकास कार्यक्रम (एएफडीपी) को लागू करना।
इन उपायों के लिए चालू वित्तीय वर्ष के दौरान 300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन स्वीकृत किया गया है। वास्तविक व्यय में सूखे की स्थिति के अनुसार परिवर्तन हो सकता है। ये हस्तक्षेप/उपाय देश के सभी कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लागू होंगे।
उपरोक्त हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप किसान मॉनसून की अनिश्चितता और इसमें देरी होने के कारण पैदा हुई चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो जाएंगे। राज्य सरकार कम वर्षा वाले जिलों में खड़ी कृषि फसलों और बहुवर्षीय आर्किडों को बचाने के लिए तुरंत उपचारात्मक उपाय शुरू करने में समर्थ होगी। इसके अलावा जहां सामान्य बुआई उपलब्ध न हुई हो या बुआई दोबारा करने की जरूरत हो, वहां किसान आकस्मिक फसल के लिए बीजों को खरीदने में समर्थ होंगे। इन हस्तक्षेपों के कारण पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए उचित उपायों को करना संभव होगा। इन हस्तक्षेपों से कृषि उत्पादन पर कम बारिश का विपरीत असर कम करने में भी मदद मिलेगी।
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून (जून से सितंबर) का देश की कुल वर्षा में लगभग 80 प्रतिशत योगदान है। मॉनसून के समय पर आने और बारिश का एक समान वितरण खरीफ फसलों की खेती के लिए महत्वूर्ण है। देश की खरीफ फसलों में धान का 90 प्रतिशत, मोटे अनाजों का 70 प्रतिशत और तिलहन उत्पादन का 70 प्रतिशत योगदान है। मौसम विभाग की 03.08.2015 को जारी बड़े क्षेत्र की भविष्यवाणी के अनुसार मॉनसून के दूसरे अर्द्ध भाग के दौरान (अगस्त और सितंबर) लम्बी अवधि औसत बारिश 84 प्रतिशत होने की संभावना है, जिसमें 8 प्रतिशत की कमोबेशी हो सकती है। अगस्त के दौरान बारिश के 90 प्रतिशत होने की संभावना है, जिसमें 9 प्रतिशत की कमोबेशी हो सकती है। देश में बारिश के मौसम (जून से सितंबर) में कुल मिलाकर एलपीए की 88 प्रतिशत बारिश होने की संभावना है, जिसमें 4 प्रतिशत की कमोबेशी हो सकती है। यह भविष्यवाणी जून में की गई थी।
मौसम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार आज तक मेघालय (-33 प्रतिशत), नगालैंड (-58 प्रतिशत), मणिपुर (-20 प्रतिशत), मिजोरम (-30 प्रतिशत), बिहार (-31 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश (-32 प्रतिशत), हरियाणा (-24 प्रतिशत), पंजाब (-26 प्रतिशत), गोवा (-22 प्रतिश), महाराष्ट्र (-26 प्रतिशत), तेलंगाना (-22 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (-24 प्रतिशत), कर्नाटक (-23 प्रतिशत) और केरल (-30 प्रतिशत) राज्यों में कम बारिश हुई है।