नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा के 100 साल से ज्यादा लंबे इतिहास में सैंकड़ों अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने रुपहले परदे पर अनगिनत खल किरदार अदा किये हैं, जिनसे हम न केवल अपने आस-पास मौजूद बुरे चरित्रों को भलि-भांति पहचान सकते हैं, बल्कि किसी संभावित खतरे से बच भी सकते हैं।
यश पब्लिकेशंस दवारा प्रकाशित पुस्तक ‘’मैं हूं खलनायक’’, हिन्दी सिनेमा के खलनायकों और खलनायिकाओं पर लिखी गई ऐसी ही पुस्तक है। इस पुस्तक में हिन्दी सिनेमा के शुरूआती दौर से लेकर मौजूदा दौर के नामचीन खल चरित्र यानि निगेटिव किरदार निभाने वाले तमाम कलाकारों के साथ-साथ उन छोटे-मोटे खलनायकों का भी पूरी तफ्सील से जिक्र है, जो अक्सर मुख्य खलनायक के गुर्गे, प्यादे या कहिए वसूलीमैन के रूप में हमें याद दिखते तो रहे हैं, लेकिन याद नहीं रहे।
वरिष्ठ पत्रकार फजले गुफरान की यह किताब खलनायकी के उस दौर को हमारे सामने लाती है, जब लोग खल चरित्र निभाने वाले कलाकारों को असल जिंदगी में भी बुरा इंसान ही समझते थे। दूसरी तरफ यह किताब कई कलाकारों से की गई एक मुकम्मल बातचीत का यादगार सफर है, जिसमें उनके अंदर से एक ऐसा इंसान बात करता दिखता है, जिसे शायद किसी ने सुनने की कभी जहमत ही नहीं उठाई। किताब में प्रसिद्ध अभिनेता रजा मुराद की बातें हैरान कर देने वाली हैं, और सोनू सूद की बातों से उत्साह और उम्मीदें झलकती हैं। दिग्गज अभिनेता प्रेम चोपड़ा अपने और मौजूदा दौर के खलनायकों के बारे में बेबाकी से बात करते दिखते हैं, तो मुकेश ऋषि दिल से प्राण साहब, अजित के बारे में बताते हैं।
आज के इस दौर में जब हम ये मान बैठे हैं कि इंटरनेट पर हर तरह की जानकारी मौजूद है, यह किताब हिन्दी सिनेमा के खलनायकों के बारे में चार कदम आगे की और एक्सक्लूसिव बातें करती है और सिने प्रेमियों के साथ-साथ सिनेमा के छात्रों के लिए एक टेक्सटबुक का काम करती है, क्योंकि इसमें एक ओर अलग-अलग दौर के दिग्गज अभिनेताओं जैसे प्राण साहब, प्रेम चोपड़ा, अजीत, जीवन, प्रेम नाथ, मदन पुरी, अमरीश पुरी, अमजद खान, डैनी, अनुपम खेर, गुलशन ग्रोवर, शक्ति कपूर, कबीर बेदी और प्रकाश राज आदि के बारे में रोचक जानकारियां दी गयी हैं और बातें की गयी हैं, तो दूसरी ओर के. एन. सिंह, कन्हैयालाल, बीएम व्यास, कमल कपूर, अनवर हुसैन के साथ-साथ नादिरा, शशिकला, ललिता पंवार, हेलन और बिंदु जैसी खलनायिकाओं के भी बेहद दिलचस्प ब्यौरे दिये गये हैं। आप हैरान हो जाते हैं, 1940 के दौर में आयी अभिनेत्री कुलदीप कौर जैसी खलनायिका के बारे में पढ़कर, जिसे किसी ने कभी याद ही नहीं किया। वह एक ऐसी दिलेर महिला थी जो बंटवारे के समय अकेले कार चलाकर दिल्ली होते हुए लाहौर से बंबई आ गयी थी। पुस्तक ‘’मैं हूं खलनायक’’ यह एक दस्तावेज से कम नहीं। इसे पन्नों में समेटना नामुमकिन सा है लेकिन लेखक फजले गुफरान ने 352 पन्नों में समेटने की कोशिश की है। करीबन 150 से अधिक खलनायक और खल चरित्र निभाने कलाकारों के बारे में जिक्र है। इस पुस्तक की कीमत 299 रूपए है जो फिलवक्त अमेजन पर उपलब्ध है। फिल्म पत्रकारिता और मनोरंजन जगत से जुडे पाठकों के लिए यह एक उपयोगी पुस्तक साबित होगी ऐसी उम्मीद है।