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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में मातृभाषा में शिक्षा देने का जोर बड़ा परिवर्तन साबित होगा: उपराष्ट्रपति

देश-विदेश

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज उच्च शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाने और इसे अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि ग्रामीण युवाओं की शिक्षा तक समावेशी और न्‍यायसंगत पहुंच महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा मानव विकास, राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और एक समृद्ध और टिकाऊ वैश्विक भविष्य बनाती है।

इस कार्यक्रम में केन्‍द्रीय शिक्षा और कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री श्री धर्मेन्‍द्र प्रधान, दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, प्रो. दक्षिण दिल्ली परिसर के निदेशक श्री प्रकाश सिंह, दिल्ली सर्कल की मुख्य पोस्टमास्टर जनरल सुश्री मंजू कुमार,  डीन ऑफ कॉलेजेस प्रो. बलराम पाणि, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, प्रॉक्टर प्रो. रजनी अब्बी,  शताब्दी समारोहों के संयोजक प्रो. नेरा अग्निमित्र , संकाय, कर्मचारी, छात्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में श्री नायडु ने इस बात पर जोर दिया कि विश्वविद्यालयों को समाज की गंभीर समस्याओं का समाधान करने के लिए नवीन और नए विचारों के साथ आना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शोध का अंतिम उद्देश्य लोगों के जीवन को अधिक आरामदायक और खुशहाल बनाना होना चाहिए।

यह इंगित करते हुए कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है, उपराष्ट्रपति ने राष्ट्र निर्माण के लिए अपने मानव संसाधन की सामूहिक शक्ति का उपयोग करने का आह्वान किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) को एक दूरदर्शी दस्तावेज बताते हुए, जो देश में शिक्षा के परिदृश्‍य में क्रांति लाने के लिए तैयार है, उन्होंने कहा कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लागू होने पर मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने पर जोर एक बड़ा परिवर्तन साबित होगा। एक बच्चे को मातृभाषा में बुनियादी शिक्षा प्रदान करने का आह्वान करते हुए श्री नायडु ने कहा कि स्‍थानीय भाषा प्रशासन और अदालतों में सूचना का मुख्‍य जरिया होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा, “हर राजपत्र अधिसूचना और सरकारी आदेश स्थानीय या मूल भाषा में होना चाहिए ताकि आम आदमी इसे समझ सके।”

श्री नायडु ने लोगों को याद दिलाया कि प्राचीन भारत ने एक विश्वगुरु होने की प्रतिष्ठा का आनंद लिया था और वह संस्कृति का उद्गम था। उन्होंने कहा कि मानवता के लिए सबसे पहले मशहूर ज्ञान के प्रतिष्ठित केन्‍द्र जैसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालय इस तथ्य की पर्याप्त गवाही देते हैं। यह घोषणा करते हुए कि भारतीय विश्वविद्यालयों को दुनिया के शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों में स्थान देना उनकी दिली तमन्‍ना है, उपराष्ट्रपति ने सभी हितधारकों को इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए काम करने के लिए कहा।

इस अवसर पर, श्री प्रधान ने कहा कि दुनिया के एक इनक्यूबेटर के रूप में उभर रहा दिल्ली विश्वविद्यालय वैश्विक समस्याओं के समाधान की पेशकश करेगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं है, बल्कि इससे जुड़े लोगों के लिए एक भावना है। डीयू के पूर्व छात्रों का आह्वान किया कि वे पूर्व छात्रों के योगदान का देश के लिए एक आदर्श प्रस्‍तुत करें।

मंत्री ने एनईपी 2020 के सभी पहलुओं को लागू करने में अग्रणी होने के लिए विश्वविद्यालय को बधाई दी। उन्होंने कहा कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को कौशल और शिक्षा के कैनवास का विस्तार करना चाहिए और ‘नौकरी सृजनकर्ता’ बनने का भी प्रयास करना चाहिए। श्री प्रधान ने विश्वास व्यक्त किया कि विश्वविद्यालय वैश्विक नागरिकों का मंथन करने, भारत को ज्ञान आधारित समाज के रूप में स्थापित करने और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक कीर्तिमान आदर्श बनाने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।

इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने स्मारक शताब्दी टिकट, स्मारक शताब्दी सिक्का, स्मारक शताब्दी संस्‍करण और दिल्ली विश्वविद्यालय स्नातक पाठ्यक्रम रूपरेखा-2022 (हिंदी, संस्कृत और तेलुगु संस्करण) का भी विमोचन किया। उन्होंने विश्वविद्यालय की शताब्दी वेबसाइट का भी शुभारंभ किया और गार्गी कॉलेज की छात्रा और दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी प्रतीक चिन्‍ह को बनाने वाली सुश्री कृतिका खिंची को सम्मानित किया।

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