नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने नई दिल्ली में मजबूत लोकतंत्र के लिए चुनाव सुधार विषय पर चौथा रक्षा संपदा विकास व्याख्यान दिया।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में बताया कि भारत ने 1950 में संविधान को अंगीकृत किया और पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। प्रारंभिक वर्षों में भारत में संसदीय प्रणाली की सफलता को लेकर संदेह व्यक्त किया गया, लेकिन नियमित रूप से हुए चुनावों ने यह साबित किया है कि ऐसी धारणा गलत है। बाद में अनेक विद्वानों ने कहा कि हम गठबंधन के युग में प्रवेश कर गए हैं और विविधता भरे भारत में एक पार्टी की सरकार बनने की संभावना नहीं दिखती। यह 1984 में गलत साबित हुआ। 2014 के आम चुनाव में भी एक दल को निर्णायक बहुमत मिलने के साथ ही यह गलत साबित हुआ। राष्ट्रपति ने कहा कि चुनाव कराने संबंधी कुछ क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है और कुछ भूलों को सुधारने की जरूरत है। इसी से चुनाव सुधार आवश्यक हो गया है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने संसदीय कार्यवाही में व्यवधान को टालने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि तीन-डी डिबेट(बहस), डिसेन्शन(असहमति) और डिसिश़न(निर्णय) संसदीय प्रणाली में आवश्यक हैं और चौथा डी डिस्रप्शन(व्यवधान) पूरी तरह अमान्य है। संसद महत्वपूर्ण विषयों पर जैसे – मुद्रा और वित्त से संबंधित विषयों पर कामकाज करने के लिए है। जो भी मतभेद हों संदस्यों को अपनी बात कहने का और स्वतंत्र रूप से विचार करने का मौका है। यदि कोई सदस्य किसी के बारे में आरोप लगाता है, तो उस स्थिति में भी देश की कोई अदालत उस पर मुकदमा नहीं चला सकती, क्योंकि सदस्य ने ऐसी बात सदन में की है। सदस्यों को प्राप्त स्वतंत्रता की इस सीमा का दुरुपयोग सदन के कामकाज में व्यवधान करके नहीं करना चाहिए। व्यवधान का अर्थ बहुमत का मुहं बंद करना है, क्योंकि केवल अल्पमत ही व्यवधान पैदा करता है और सभापति के पास सदन की कार्यवाही स्थगित करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता।
राष्ट्रपति ने कहा कि बार-बार चुनाव कराना प्रशासनिक और वित्तीय संसाधनों की दृष्टि से बोझ है। लोकतंत्र के लिए हम यह कीमत चुकाने को तैयार हैं, लेकिन यह बोझ विकास की कीमत पर नहीं उठाया जा सकता। चुनाव के दौरान प्रशासनिक और विकास के काम प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि उस दौरान नई विकास परियोजनाएं शुरू नहीं की जा सकतीं। राज्य के चुनाव के दौरान राज्य में भारत सरकार से संबंधित कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इस मसले पर निर्वाचन आयोग, राज्य तथा केन्द्र सरकार और राजनीतिक दलों को एकसाथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने भारत निर्वाचन आयोग से चुनाव घोषणा, अधिसूचना और चुनाव कराए जाने की समय सीमा छोटी करने का सुझाव दिया। चुनाव की अवधि लम्बी हो रही है, क्योंकि कई चरणों में चुनाव कराए जाते हैं।
राष्ट्रपति ने लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाने को लेकर संविधान संशोधन पर विचार करने का सुझाव दिया। भारत में 800 मिलियन से ऊपर मतदाता हैं। लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था। आज 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1.28 बिलियन जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जन आकांक्षा की सही अभिव्यक्ति के लिए लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए गंभीररूप से संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के कानूनी पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण महत्वपूर्ण विषय है। हालांकि देश में महिलाओं की आबादी लगभग 50 प्रतिशत है, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है। यह पूरी तरह अमान्य है।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि उन्हें भारतीय संसदीय प्रणाली पर गर्व है, लेकिन अब चुनाव सुधार आवश्यक हो गए हैं।
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