नई दिल्ली: राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने बंगलूरू में 14वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन मेंविदाई भाषण दिया और प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार प्रदान किए।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि विश्वभर में फैले प्रवासी भारतीय हमेशा भारत कीविकास गाथा के अग्रणी दूत रहेंगे। उन्होंने कहा कि इन बेहतरीन पश्चिमी प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी केसाथ ही इन लोगों की सभ्यता की जड़ें भारत के शाश्वत और अनंत लोकाचार से जुड़ी हुई है, इसलिए वे दो गुनाधन्य है। उनके द्वारा पश्चिमी और पूर्वी सभ्यता के साथ तालमेल से उन्हें असाधाराण स्थान और अवसरउपलब्ध होते हैं। इसमें उनकी मातृभूमि और उनके द्वारा अपनाये गए देशों का साझा ज्ञान महत्वपूर्ण है। वेअपने मेजबान देशों में भारत की छवि प्रदर्शित करने के साथ ही उनके द्वारा अपनाई गई भूमि की सांस्कृतिकविरासत भी भारत लाते है। ‘’वसुधैव कुटुम्बकम’’ के बारे में हमारे विश्वास का इससे बढि़या उदाहरण नहीं होसकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जैसा कि हम राष्ट्रों के समुदाय में अपना योग्य स्थान प्राप्त करने के लिएलगातार प्रयास कर रहे है, वैसे ही हमें उत्कृष्टता और कुशाग्रता के दायरे में हमारी प्राचीन मजबूती को बरकराररखने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। रोजगार की तलाश में अस्थायी रूप से विदेश जाने वाले प्रवासियों काकौशल बढ़ाने की आवश्यकता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भारत सरकार के कौशल कार्यक्रमों के जरिएप्रवासी कामगारों में कौशल की कमी को दूर करने से उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ ही उनकी आयभी बढ़ेगी।
राष्ट्रपति ने अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के साथ भारतीय महिलाओं और लड़कियों के विवाह परभी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यहां तक कि सरकार और उसकी एजेंसियां इस समस्या से निपट रही है।लेकिन इस विशेष वर्ग की समस्याओं का सबसे प्रभावी निराकरण स्थानीय सामुदायिक संगठन कर सकते है।उन्होंने विदेशों के भारतीय सामुदायिक संगठनों से आग्रह किया कि वे इसके लिए सरकार के प्रयासों में अपनासहयोग देते रहें।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने विदेश नीति पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के चयनित भाषणों के संकलनका भी अनावरण किया।