नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज मुंबई में ‘मेरीटाइम इंडिया समिट’ के शुभारंभ के अवसर पर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना जारी की, जिसमें ‘सागरमाला’ की रूपरेखा का ब्यौरा दिया गया है। सागरमाला सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य देश में बंदरगाहों की अगुवाई में विकास की गति तेज करना है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों के अहम हितधारकों और शिपिंग, बंदरगाह, जहाज निर्माण, विद्युत, सीमेंट एवं इस्पात क्षेत्रों की सार्वजनिक और निजी कंपनियों के साथ व्यापक सलाह-मशविरा करने के बाद राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना तैयार की गई है। यह न्यूनतम निवेश के साथ निर्यात-आयात एवं घरेलू व्यापार की लागत काफी हद तक कम करने संबंधी सागरमाला के विजन को साकार करने की दिशा में एक अहम कदम है।
केंद्रीय शिपिंग, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने बाद में संवाददाताओं के साथ बातचीत करते हुए कहा कि जल परिवहन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इससे लॉजिस्टिक्स लागत में खासी कमी करने में मदद मिलेगी, जो चीन एवं यूरोपीय देशों की तुलना में भारत में बहुत ज्यादा है।
रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि इस कार्यक्रम से लॉजिस्टिक्स लागत में तकरीबन 35,000 करोड़ रुपये की सालाना बचत संभव हो सकती है और इसके साथ ही वर्ष 2025 तक भारत के व्यापारिक निर्यात के बढ़कर 110 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच जाने की संभावना है। यही नहीं, लगभग 1 करोड़ नये रोजगार सृजित होने का अनुमान है, जिनमें से 40 लाख प्रत्यक्ष रोजगार होंगे।
यह योजना इन चार रणनीतिक पहलुओं पर आधारित है- घरेलू कार्गो की लागत घटाने के लिए मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट का अनुकूलन करना, निर्यात-आयात कार्गो लॉजिस्टिक्स में लगने वाले समय एवं लागत को न्यूनतम करना, बल्क उद्योगों को लागत के और करीब स्थापित कर लागत को घटाना और बंदरगाहों के पास पृथक विनिर्माण क्लस्टरों की स्थापना कर निर्यात के मामले में प्रतिस्पर्धी क्षमता बेहतर करना।
सागरमाला का लक्ष्य चार व्यापक क्षेत्रों में 150 से भी ज्यादा परियोजनाओं और पहलों के जरिये आवश्यक सकारात्मक असर सुनिश्चित करना है। भारत के बंदरगाह ढांचे के आधुनिकीकरण के लिए 5-6 नये बंदरगाह बनाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके अलावा बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाने वाली 40 से अधिक परियोजनाओं पर काम शुरू किया जाएगा। क्षमता बढ़ाने के अलावा ये परियोजनाएं बर्थों के यंत्रीकरण और बड़े जहाजों के समायोजन हेतु तलछटों की ज्यादा गहराई सुनिश्चित करके बंदरगाह ढांचे को और ज्यादा आधुनिक बनाने में मददगार साबित होंगी।
इस मामले में विशेष ध्यान वाला दूसरा क्षेत्र बंदरगाहों की कनेक्टिविटी है, जिसके लिए 80 से भी ज्यादा परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है।
परियोजनाओं के तीसरे समूह का उद्देश्य बंदरगाहों की अगुवाई में औद्योगीकरण की संभावना का दोहन करना है, ताकि तटीय रेखा के साथ-साथ औद्योगिक एवं निर्यात विकास को नई गति प्रदान की जा सके। तटीय रेखा के पास अवस्थित 14 तटीय आर्थिक क्षेत्रों (सीईजेड) के जरिये इस उद्देश्य की पूर्ति की जाएगी।
आखिर में, कौशल विकास पर फोकस करते हुए तटीय समुदायों की संभावनाओं का दोहन किया जाएगा, ताकि बंदरगाहों की अगुवाई में औद्योगीकरण में सहूलियत हो सके। इसके अंतर्गत उठाए जाने वाले कदमों के तहत मछुआरों एवं अन्य तटीय समुदायों के लिए भी अवसर सृजित किए जाएंगे। इसके अलावा भारत की तटीय रेखा के आसपास कई द्वीपों का विकास किया जाएगा।