बुसेल्स: रूस और यूक्रेन का विवाद अब तीसरे विश्वयुद्ध की आहट को पैदा कर रहा है. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) सहयोगी बलों को स्टैंडबाय पर रख रहे हैं और पूर्वी यूरोप में नाटो की तैनाती के लिए अतिरिक्त जहाजों और लड़ाकू विमानों को भेज रहे हैं.
इस वजह से नाटो मित्र देशों की रक्षा पंक्ति को और मजबूत कर रहे हैं क्योंकि रूस ने यूक्रेन और उसके आसपास सैन्य निर्माण जारी रखा है.
डेनमार्क भेज रहा है बाल्टिक सागर में युद्धपोत
एजेंसी की खबर के अनुसार, पिछले दिनों में नाटो के कई सहयोगियों ने वर्तमान या आगामी तैनाती के संबंध में घोषणाएं की हैं. डेनमार्क बाल्टिक सागर में एक युद्धपोत भेज रहा है और इस क्षेत्र में नाटो के लंबे समय से चले आ रहे हवाई-पुलिस मिशन के समर्थन में लिथुआनिया में चार F-16 लड़ाकू जेट तैनात करने के लिए तैयार है.
फ्रांस रोमानिया में सेना भेजने की जता रहा इच्छा
नाटो ने सोमवार को एक बयान में कहा कि स्पेन नाटो नौसैनिक बलों में शामिल होने के लिए जहाज भेज रहा है और बुल्गारिया में लड़ाकू जेट भेजने पर विचार कर रहा है. फ्रांस ने नाटो कमान के तहत रोमानिया में सेना भेजने की इच्छा व्यक्त की है.
नीदरलैंड क्षेत्र में नाटो की वायु-पुलिसिंग गतिविधियों का समर्थन करने के लिए अप्रैल से बुल्गारिया में दो F-35 लड़ाकू विमान भेज रहा है और नाटो के रिएक्शन के लिए एयरफोर्स ओर पैदल सेना को स्टैंडबाय पर रख रहा है. बयान में कहा गया है कि अमेरिका ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह गठबंधन के पूर्वी हिस्से में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने पर विचार कर रहा है.
नाटो महासचिव ने कहा- गठबंधन के प्रति है हमारी जिम्मेदारी
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा, “मैं नाटो में अतिरिक्त बलों का योगदान करने वाले सहयोगियों का स्वागत करता हूं. नाटो गठबंधन के पूर्वी हिस्से को मजबूत करने सहित सभी सहयोगियों की रक्षा और बचाव के लिए सभी आवश्यक उपाय करना जारी रखेगा. हमारी सामूहिक रक्षा की अपने सहयोगी गठबंधन के प्रति जिम्मेदारी है.”
एक सहयोगी पर हमले को पूरे गठबंधन पर माना जाएगा हमला
नाटो ने कहा कि 2014 में रूस के क्रीमिया के अवैध कब्जे के जवाब में नाटो ने गठबंधन के पूर्वी हिस्से में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी थी जिसमें एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड में चार मल्टीनेशनल वार यूनिट ग्रुप शामिल थे. यूके, कनाडा, जर्मनी और यूएस के नेतृत्व में ये मल्टीनेशनल यूनिट हैं और युद्ध के लिए तैयार हैं. उनकी उपस्थिति स्पष्ट करती है कि एक सहयोगी पर हमले को पूरे गठबंधन पर हमला माना जाएगा.
इस घटना में छिपे हैं युद्ध जैसे हालात के बीज
बता दें कि 2014 से पहले गठबंधन के पूर्वी हिस्से में नाटो सेनाएं नहीं थीं. नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया. यानुकोविच को रूस का समर्थन था जबकि अमेरिका-ब्रिटेन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे. फरवरी 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा. इससे नाराज होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. साथ ही वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया. अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. तब से ही रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच लड़ाई चल रही है.
क्रीमिया वही प्रायद्वीप है जिसे 1954 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे के तौर पर दिया था. 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो कई बार क्रीमिया को लेकर दोनों के बीच तनातनी होती रही.
सोर्स: यह Zeenews hindi फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ श्रमजीवी जर्नलिस्ट टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.