लखनऊ: केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के अचानक 500 व 1000 रुपये के नोट बन्द करने से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब व मजदूर वर्ग के लोगों को उठाना पड़ रहा है। जहां गरीब लोगों के सामने रोजमर्रा की जरुरत की चीजों के लिए नकदी की भयंकर समस्या आ खड़ी हुई है वहीं दिहाड़ी मजदूरों को काम मिलने में भी दिक्कत आ रही है, जिस वजह से इन लोगों के लिए भूखों मरने की नौबत आने लगी है। केन्द्र सरकार को इन लोगों की ओर भी गम्भीरता से सोचने की आवश्यकता है।
प्रचलित नोटां पर अचानक रोक लगाने के कारण किसान रबी की बुवाई के वक्त खाद, बीज, कीटनाशक जैसी अपरिहार्य वस्तुओं की खरीद नहीं कर पा रहा है। किसान घण्टों सहकारी समितियों एवं दुकानों के बाहर लाइन लगाकर खड़े रहने के बावजूद चार बोरी खाद व बीज खरीद नहीं पा रहा क्योंकि उसके पास नई मुद्रा उपलब्ध नहीं है। जनता तक नई नोट पहुंचाने में केन्द्र सरकार बुरी तरह असफल हो चुकी है। ग्रामीण बैकों व जिला सहकारी बैंको में अभी तक नई मुद्रा रिजर्व बैंक द्वारा नहीं भेजी गई है। इन कमियों एवं संकट के कारण केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर रबी के फसलों की बुवाई पूर्ण होने तक किसानों को 500 और 1000 के पुराने नोटों के प्रयोग की छूट देने का कष्ट करें और सभी सहकारी बैंकां सहकारी समितियों एवं उन सभी संस्थाओं को पुराने नोटों को लेने का स्पष्ट निर्देश दें जहां से किसान बीज, खाद, कीटनाशक एवं कृषि यंत्रों की खरीद करता है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश की बहुतायत आबादी कृषि पर निर्भर है। रबी के फसलों के बुवाई के वक्त अचानक करेन्सी के स्वाभाविक चलन को बाधित कर एवं किसानों को छूट न देकर मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि उसका किसानों, गरीबों और कृषि के प्रति दृष्टिकोण नकारात्मक है। किसान भाजपा की वरीयता से बाहर है। इस निर्णय से बुवाई पिछड़ गई है जिससे कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके फलस्वरूप देश को आने वाले दिनों में खाद्यान्न संकट से गुजरना पड़ सकता है। देश को पुनः खाद्यान्न के आयात पर निर्भर होना पड़ेगा जिससे विदेशी कर्ज बढ़ेगा व भुगतान संतुलन प्रभावित होगा। इसका प्रतिकूल असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था विशेष कर छोटे व्यापारियों, किसानों, बुनकरों पर पड़ेगा, काफी हद तक पड़ चुका है।