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बड़ी ही विचित्र है इस मंदिर की कहानी, भक्त को नहीं है भगवान के दर्शन की अनुमति

अध्यात्म

लाटू मंदिर – हमारे देश में कईं ऐसे मंदिर हैं, जिनसे जुड़ी कहानियां और विश्वास चौंका देने वाले हैं। कुछ मंदिरों से ऐसी मान्यताएं जुड़ी हैं जिन्हे मानना किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है तो कुछ मंदिर अपनी गोद में कईं राज़ समेटे हुए हैं।

किसी मंदिर में खजाना दबे होने की बात कही जाती है, किसी में साक्षात भक्तों को भगवान के होने का आभास होता है तो वही किसी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने पर बहस छिड़ जाती है।

यूं तो आपने भी हमारे देश में स्थित मंदिरों से जुड़ी कईं अद्भुत कहानियों को सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भक्त का प्रवेश ही वर्जित है।

जी हां, इस मंदिर में किसी भी व्यक्ति को, चाहे वो अमीर हो या गरीब, सेलिब्रिटी हो या कोई राजनेता आने की इजाज़त नहीं है। यहां तक कि मंदिर के पुजारी को भी पूजा-अर्चना करने के लिए कईं नियमों का पालन करना पड़ता है। श्रध्दालुओं को इस मंदिर में आना मना है। सिर्फ यही नहीं, यहां के पुजारी को भी आंख, नाक और मुंह पर पट्टी बांध कर देवता की पूजा करनी पड़ती है।

जो भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं उन्हे मंदिर परिसर से लगभग 75 फीट की दूरी पर रहकर पूजा-पाठ करना होता है और यही से वो अपनी मनचाही मुराद भी मांगते हैं।

यह मन्दिर उत्तराखंड के चमोली जिले में देवाल नामक ब्लॉक में ये मंदिर स्थित है। इस मंदिर को देवस्थल लाटू मंदिर नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां लाटू देवता की पूजा होती है।

इस मंदिर के कपाट पूरे साल में सिर्फ एक ही बार खुलते हैं। वैशाख माह की पूर्णिमा को लाटू मंदिर के कपाट खुलते हैं। इस दिन लाटू मंदिर के पुजारी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट खोलते हैं। भक्तजन पूरे दिन दूर से ही भगवान के दर्शन कर उनका आशीष ले सकते हैं।

उत्तराखंड में इस मंदिर से संबधित कईं कथाएं प्रचलित हैं। जिनके अनुसार, लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्या नंदा देवी के धर्म भाई हैं। उत्तराखंड में हर 12 साल में श्रीनंदा देवी की राज यात्रा का आयोजन होता है। वांण गांव इसका 12वां पड़ाव है। ऐसा कहा जाता है कि लाटू देवता वांण से लेकर हेमकुंड तक अपनी बहन नंदा देवी की अगवानी करते हैं।

आपके मन में ये सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर क्यो लाटू मंदिर में किसी का भी जाना वर्जित है तो आपको बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के अंदर स्वंय नागराज अपने भव्य रूप में अपनी मणि के साथ विराजमान हैं। ये उनका निवास स्थान है। नागराज को उनकी मणि के साथ देखना किसी भी साधारण इंसान के बस में नहीं है। इसलिए लोगों का यहां आना वर्जित है और इसलिए पुजारी भी मुंह पर पट्टी बांधकर यहां पूजा करते हैं।

इसके अलावा एक मत और है जिसके अनुसार मणि को रोशनी इतनी तेज़ है कि जो इंसान उसे देख लेगा वो अपनी आंखों की रोशनी खो बैठेगा और साथ ही मंदिर में उपस्थित पुजारी के मुंह की गंध देवता को महसूस नहीं होनी चाहिए और न ही नागराज की विषैली गंध पुजारी के नाक तक पहुंचनी चाहिए, इसलिए वे नाक-मुंह पर पट्टी लगाते हैं। साभार यंगिस्तान

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