नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने नवीकरणीय खरीद बाध्यता (आरपीओ) नियमनों के लागू होने पर हिन्दुस्तान जिंक बनाम राजस्थान बिजली नियामकीय आयोग के बीच मामले में 13 मई, 2015 तारीख को आदेश दिया है कि कैप्टिव उपभोक्ता पर आरपीओ न्यायोचित है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के संविधान की अनुच्छेद 51ए (जी), जो नागरिकों को प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करने एवं उससे बेहतर बनाने का बुनियादी अधिकार देता है, और अनुच्छेद 21 के अधिदेश, जो स्वस्थ जीवन के साथ जीने के अधिकार की गारंटी देता है, के संदर्भों में इसकी व्याख्या की है।
बिजली अधिनियम (ईए) 2003 के खंड 86(1) (ई) में ऊर्जा के उपभोग पर नवीकरणीय खरीद बाध्यता (आरपीओ) का प्रावधान है और आरपीओ का निर्धारण संबंधित राज्य बिजली नियामकीय आयोग करते हैं। आरपीओ वितरण कंपनियों (डिस्कॉम), कैप्टिव बिजली संयंत्रों (सीपीपी) और ओपन एक्सेस (ओए) उपभोक्ताओं पर भी लागू होता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने अगस्त, 2012 में हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड, ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड और 14 अन्य कंपनियों, जिन्होंने कैप्टिव बिजली संयंत्रों पर आरपीओ लगाने के राजस्थान बिजली नियामकीय आयोग (आरईआरसी) द्वारा लागू आरपीओ नियमनों को चुनौती दी थी, द्वारा की गई अपील को खारिज कर दिया था। प्रमुख कैप्टिव बिजली संयंत्रों और ओपन एक्सेस उपयोगकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि आरईआरसी के पास आरपीओ के आदेश को पारित करने और अधिशेष (आर्थिक दंड) लगाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि सीपीपी और ओए बिजली अधिनियम 2003 के तहत पूरी तरह गैर-लाइसेंसी गतिविधियां हैं। इसके अतिरिक्त, बिजली अधिनियम 2003 केवल ‘वितरण लाइसेंसी के क्षेत्र में कुल उपभोग’ पर आरपीओ की अनुमति देता है और इस प्रकार आरपीओ केवल वितरण लाइसेंसियों पर ही लागू होता है। हिन्दुस्तान जिंक ने राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश एक सकारात्मक कदम है और यह देश में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और आरपीओ अनुपालन को और आगे बढ़ाने में सहायक होगा।