नई दिल्ली: सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य रूप से बजाए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ासी चर्चा हो रही है लेकिन बहुत कम लोग हैं जिन्होंने पूरे फ़ैसले को पढ़ा है। सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने इस मामले में सात आदेश दिए हैं जिन्हें दस दिन के भीतर लागू किया जाना है।
यह समझना ज़रूरी है कि इन सात आदेशों के अलावा जजों ने कुछ और नहीं कहा है। सोशल मीडिया पर कई लोग सवाल पूछ रहे हैं कि विकलांगों के लिए क्या प्रावधान होंगे या दुर्घटना की स्थिति में क्या होगा? या फिर आदेश का पालन न करने वाले लोगों के लिए दंड के क्या प्रावधान होंगे?
पाँच पन्ने के इस जजमेंट में इस तरह के सवालों के जवाब नहीं हैं-
- राष्ट्रगान का किसी तरह का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकता जिससे कोई भी किसी तरह का आर्थिक लाभ उठा सके, प्रत्यक्ष या परोक्ष से।
- राष्ट्रगान का कोई नाटकीय इस्तेमाल नहीं किया जा सकता या उसे किसी मनोरंजन कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। ऐसा इसलिए कि जब राष्ट्रगान गाया या बजाया जाता है तो वहाँ मौजूद सभी लोगों का ये कर्तव्य है वे उसके प्रति पर्याप्त सम्मान प्रदर्शित करें। राष्ट्रगान की नाटकीय प्रस्तुति पूरी तरह से कल्पना के भी परे है।
- राष्ट्रगान या उसका कोई हिस्सा किसी वस्तु पर नहीं छापा जा सकता, या उस तरह या उन जगहों पर प्रदर्शित नहीं किया जा सकता जहाँ उसका असम्मान होने की आशंका हो। राष्ट्रगान के गायन-वादन से शिष्टाचार के नियम जुड़े हैं जिनकी जड़ें हमारी राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रीय एकता और संविधानिक देशभक्ति की भावना में है।
- भारत के सभी सिनेमाघरों को फ़ीचर फ़िल्म शुरू होने के पहले राष्ट्रगान बजाना है और हॉल में मौजूद सभी लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे राष्ट्रगान के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए खड़े हों।
- सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने से पहले वहाँ घुसने और वहाँ से निकलने के रास्ते बंद होने चाहिए ताकि कोई किसी तरह का व्यवधान पैदा न कर सके जो राष्ट्रगान का अपमान करने के समान होगा।राष्ट्रगान के समाप्त होने के बाद दरवाज़े खोले जा सकते हैं।
- जब राष्ट्रगान बज रहा हो तो स्क्रीन पर राष्ट्रध्वज ही दिखाया जाना चाहिए।
- राष्ट्रगान का कोई भी संक्षिप्त संस्करण किसी भी कारण से बनाने और उसका प्रदर्शन करने की अनुमति किसी को नहीं है।
साभार बीबीसी हिन्दी
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