सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति ने चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को निराधार पाया है. आंतरिक समिति ने अपनी रिपोर्ट 5 मई को ही वरिष्ठता क्रम में नंबर दो जज, जस्टिस मिश्रा को पेश कर दी गई थी. इस रिपोर्ट की एक कॉपी जस्टिस रंजन गोगोई को भी सौंपी गई है. ये साफ़ नहीं है कि शिकायतकर्ता महिला को रिपोर्ट की प्रति दी गई है. ये रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है.
इस बारे में कोर्ट की ओर से जारी विज्ञप्ति में इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट (2003) 5 एससीसी 494 मामले का हवाला देते हुए कहा है कि आंतरिक प्रक्रिया के तहत गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करना अनिवार्य नहीं है.
इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट कर ‘आम लोगों के हित में’ रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने 19 अप्रैल को जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.
आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति गठित की गई थी. जस्टिस रंजन गोगोई ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा था कि ये सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ रची जा रही बड़ी साज़िश का हिस्सा हैं. आरोपों के बाद जस्टिस गोगोई ने कहा था शिकायतकर्ता के पीछे कुछ बड़ी ताक़तें हैं जो सुप्रीम कोर्ट को अस्थिर करना चाहती हैं.
समिति से न्याय की उम्मीद नहीं शिकायतकर्ता
शिकायतकर्ता आंतरिक समिति के समक्ष दो बार पेश हुईं पर तीसरी बार पेश होने से इनकार कर दिया था. शिकायतकर्ता महिला का कहना था कि उन्हें समिति के सामने अपने वकील के साथ पेश होने की अनुमति नहीं मिली है. उनका कहना था कि बिना वकील और सहायक के सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के सामने वो नर्वस महसूस करेंगी. शिकायतकर्ता ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके ये भी कहा था कि उन्हें इस समिति से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है.
इसके बाद समिति की जांच जारी रही और चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने समिति के सामने पेश होकर अपना पक्ष रखा था. ये पहली बार है जब भारत के चीफ़ जस्टिस यौन उत्पीड़न के आरोपों में किसी जांच समिति के सामने पेश हुए. सुप्रीम कोर्ट की इस आंतरिक समिति में जस्टिस बोबड़े के अलावा जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल हैं. source: bbc.com/hindi