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उपराष्ट्रपति ने भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारियों से कहा कि आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दें और स्थानीय के लिए मुखर बनें

देश-विदेश

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज आयकर विभाग के अधिकारियों से आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देने का आग्रह करते हुए कहा कि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज को भरपूर लाभ मिलेगा।

आज नागपुर में राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी (नेशनल एकेडेमी ऑफ़ डायरेक्ट टैक्सेज -एनएडीटी) में भारतीय राजस्व सेवा के 76वें बैच के समापन समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने युवा अधिकारियों से स्थानीय लोगों के लिए मुखर होने को कहा। उन्होंने उन्हें विस्तार से बताते हुए कहा “आप व्यापारिक समुदाय से रूबरू होंगे। आप उनमें राष्ट्रवाद की भावना को आत्मसात कर सकते हैं, और इससे देश को तीन बड़े लाभ होंगे- पहला, परिहार्य आयात के कारण विदेशी मुद्रा बर्बाद नहीं होगी, दूसरा, हमारे युवाओं के लिए रोजगार पैदा होगा और तीसरा, देश में उद्यमिता एक बड़ी छलांग लगाएगी।

भारत में कर प्रशासन के बढ़ते डिजिटलीकरण और पहचान रहित (फेसलेस) ई-असेसमेंट प्रणाली जैसे पारदर्शिता उपायों की प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसने कर व्यवस्था में गुमनामी की शुरुआत की है और ‘ईमानदार को सम्मान’ देने के अपने उद्देश्य को पूरा कर रही है। उन्होंने कहा कि जो समाज ईमानदारों का सम्मान करता है और बेईमानों को पुरस्कृत नहीं करता, वह शांति, सद्भाव और विकास के लिए स्थिर होता है।

श्री धनखड़ ने नकदी प्रबंधन को एक खतरा बताते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी नकदी के अनौपचारिक प्रबंधन को भी हतोत्साहित करती है, जो समाज के लिए बेहद हानिकारक है। व्यवस्था में अभूतपूर्व पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए इन कदमों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि यह आज भारत में भ्रष्टाचार के प्रति शून्य-सहिष्णुता के नए मानदंड के अनुरूप है। उन्होंने बल देकर कहा कि सत्ता के गलियारों में भ्रष्ट तत्वों को पूरी तरह से निष्प्रभावी कर दिया गया है और भ्रष्टाचार अब अवसर का पासपोर्ट नहीं है, यह अब निश्चित रूप से जेल जाने का रास्ता है।

विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के उदय का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब यह एक अलग भारत है और हम आज वैश्विक विमर्श को परिभाषित कर रहे हैं। भारत के विकास पथ पर संदेह जताने वाले कुछ व्यक्तियों का जिक्र करते हुए उन्होंने टिप्पणी की कि “बाहर और भीतर संदेह और आलोचना करने वाले लोग हैं, जो सार्वजनिक स्थानों  पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें मेरा संदेश है कि वे  – आशा और संभावना के वातावरण का अनुभव करने के लिए अपने “बुलबुले” से बाहर निकलें। उपराष्ट्रपति महोदय ने यह भी कहा कि ऐसे व्यक्तियों को उस बुलबुले से बाहर निकलने के बाद प्रबुद्ध किया जाएगा और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो यह नागरिकों का कर्तव्य है कि वे उनके “बुलबुले को फोड़ें”।

श्री धनखड़ ने संस्थान से प्रशिक्षण पूरा कर सेवा में जाने वाले अधिकारियों को सलाह दी कि वे लोगों में यह भावना पैदा करने के लिए परामर्श और अनुनय का उपयोग करें कि “सफलता का निश्चित मार्ग कर अनुपालन और कानून का पालन करना है” जबकि इसमें शॉर्टकट एक दर्दनाक मार्ग की ओर ही ले जाएंगे।

हमारी कराधान प्रणाली के संरक्षक के रूप में भारतीय राजस्व सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे “करदाताओं को जानकारी के साथ सशक्त बनाने, पारदर्शिता के माध्यम से परस्पर विश्वास को बढ़ावा देने और अपने पेशेवर आचरण में ईमानदारी के उच्चतम मानकों को बनाए रखने” के लिए कहा। सिविल सेवकों को युवाओं के लिए स्वाभाविक रोल मॉडल बताते हुए उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा कि “आपको अपने आचरण से अनुशासन, सत्यनिष्ठा, विनम्रता, नैतिकता और प्रतिबद्धता की भावना का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। साथ ही आपको पूरे देश में युवा दिमागों के लिए प्रेरणादायक और प्रेरक भी होना चाहिए।

इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) अध्यक्ष श्री नितिन गुप्ता, प्रधान महानिदेशक प्रशिक्षण श्री सीमांचल दास, राज्यसभा के महासचिव श्री पी.सी. मोदी, , आयकर महानिदेशक प्रशिक्षण श्री आनंद बायवार, और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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