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गंगा का पानी आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं: आराधना मिश्रा मोना

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: बनारस में गंगा जी की खस्ताहाल हालत और गंगा जल की गिरती गुणवत्ता को लेकर प्रदेश कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा मोना ने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि खुद को गंगा मां का बेटा कहने वाले प्रधानमंत्री ने उसे पहले से अधिक बदहाल स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। गंगा के नाम पर फंड की लूट चल रही है, और रायशुमारी  किए बिना गंगा के मूल रूप से छेड़छाड़ की जा रही है।

उन्होंने कहा कि किसी भी प्राकृतिक नदी में बिना स्टडी किए, छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। गंगा देश के संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक हैं, भाजपा के लिए प्रयोग के लिए नहीं है। जनवरी का डाटा है, जहाँ अस्सी नदी गंगा जी से मिलती है, वहां प्रति एक सौ एमएल पर 36 मिलियन फिकल कॉलिफोर्म काउंट है, जो स्नान योग्य नदी में प्रति एक सौ एमएल में औसतन 500 होना चाहिए। वरुणा पर यह आंकड़ा 67 मिलियन के करीब है। पानी को साफ़ करने के लिए दो प्रोजेक्ट लगे हुए हैं, लेकिन वह कारगर नहीं हैं।

कांग्रेस ने नेता ने कहा कि गंगा जी के लिए संवेदनशीलता के साथ काम होना चाहिए था लेकिन भाजपा सरकार ने गंगा सफाई को अपने प्रचार-प्रसार का अंग बना लिया। करोड़ों के ढांचागत कामों का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सरकार के नेता कर रहे हैं, लेकिन गंगाजल की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं आया है, बल्कि उसकी गुणवत्ता और गिरती ही जा रही है। गंगा जी के नाम पर भाजपा सरकार ने सिर्फ चमक-दमक दिखाई है, गंगाजल की गुणवत्ता कैसे शुद्ध की जाएगी, इस पर शायद ही इस सरकार में कोई बात करता हो।

उन्होंने भाजपा सरकार को घेरते हुए कहा कि गंगा जी में क्या दोष है ? वह तो वैसे ही प्रवाहमान हैं, दिक्कत यह है कि जो गंदे नालों का पानी गंगा में जा रहा है, उसको रोकने के उपायों पर सख्ती नहीं हो रही है। सात साल मोदी सरकार के होने को हैं और पांच साल योगी सरकार के, लेकिन घाटों पर रंग-रोगन और गंगा के नाम पर पब्लिसिटी को छोड़ दिया जाए, तो गंगाजल की गुणवत्ता का हाल है यह कि घाटों पर भी गंगा आचमन के योग्य नहीं बची हैं।

आज प्रधानमंत्री मोदी, जिस गंगा सफाई अभियान का श्रेय ले रहे हैं, उसे 1986 में ‘‘गंगा कार्य योजना’’ का रूप देकर दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने अमली जामा पहनाया।‘‘पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा के अद्भुत महत्व को समझ कर ही ‘‘गंगा कार्य योजना’’ की शुरुआत साल 1986 में बनारस से ही की थी, लेकिन बाद की सरकारों ने योजनाओं का नाम बदलने और अवैज्ञानिक रास्तों पर चलने में दिलचस्पी ली।

उन्होंने कहा कि खुद को गंगा का कहने वाले प्रधानमंत्री ने गंगा जी के नाम पर वोट बटोरे लेकिन गंगा जी का जो सबसे बड़ा दुःख उसकी गुणवत्ता है, उसे सुधारने के बजाय तबाह कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी। पीएम मोदी ने गंगा के मूल स्वरूप को संरक्षित करने का संकल्प दोहराया था, जो थोथा साबित हो गया है। गंगा के पानी को रोके जाने से नदी में पहली बार काई दिखी, जिससे पानी का रंग हरा हो गया। इसका असर बनारस से लेकर मिर्जापुर तक है। काई के चलते नदी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है। बनारस के घाटों का हाल बेहाल है, सिर्फ बाहरी चमक दिखती है। घाटों पर मलबे पटे पड़े हैं, गंगा सफाई के नाम पर अनेक मूर्खतापूर्ण काम किये जा रहे हैं। बनारस में सरल प्रवाहित हो रही गंगा को विकास के नाम पर प्राइवेट एजेंसियों ने ‘‘हाईजैक’’ कर लिया है। यह सरकार लोगों को बरगलाकर गंगा सफाई के नाम पर गंगा के मूल रूप से खिलवाड़ कर रही है।

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