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पहेलीनुमा परत जहां सूर्य का आंतरिक रोटेशन प्रोफाइल बदलता है, की सैद्धांतिक व्याख्या

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लम्बे समय से यह बात ज्ञात थी कि सूर्य की भूमध्य रेखा ध्रुवों की तुलना में अधिक तेजी से घूमती है। बहरहाल, ध्वनि तरंग का उपयोग करते हुए सूर्य की आंतरिक रोटेशन की जांच करने से एक पहेलीनुमा परत का पता चला जहां सूर्य का रोटेशन प्रोफाइल बहुत तेजी से बदलता है। इस परत को नियर-सर्फेस शीयर लेयर (एनएसएसएल) कहा जाता है और इसका अस्तित्व सौर सतह के बहुत निकट मौजूद होता है जहां एंगुलर वेलोसिटी में बाह्य रूप से कमी होती है।

इस परत की व्याख्या की लम्बे समय तक जांच के बाद, भारतीय खगोलविदों ने इसके अस्तित्व के लिए पहली बार एक सैद्धांतिक व्याख्या पाई है। एनएसएसएल को समझना सनस्पॉट फॉर्मेशन, सौर चक्र जैसी कई सौर घटनाओं के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है और यह अन्य तारों में भी ऐसी ही घटनाओं को समझने में सहायक होगा।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तशासी संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के शोधकर्ता बिभूति कुमार झा ने बैंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. अर्नब राय चौधरी के साथ मिलकर पहली बार सूर्य में एनएसएसएल के अस्तित्व की सैद्धांतिक व्याख्या की है। यह शोध पत्र रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के जर्नल मंथली नोटिसेज में प्रकाशित हुआ है।

अपने अध्ययन में उहोंने थर्मल विंड बैलेंस इक्वेशन नामक एक समीकरण का उपयोग किया। यह व्याख्या करती है कि किस प्रकार सौर ध्रुवों और भूमध्य रेखा, जिसे थर्मल विंड टर्म कहते हैं, के तापमान में मामूली अंतर का संतुलन सोलर डिफरेंशियल रोटेशन के कारण प्रतीत होने वाले सेंट्रिफुगल फोर्स के कारण होता है। अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि यह स्थिति केवल सूर्य के आंतरिक हिस्से में ही होती है और यह सौर्य सतह के निकट नहीं होती। इस शोध पत्र में, लेखकों ने प्रदर्शित किया है कि यह धारणा वास्तव में सतह के निकट भी होती है।

उन्होंने नोट किया कि अगर सौर सतह के निकट यह स्थिति सही है तो यह एनएसएसएल के अस्तित्व की व्याख्या कर सकती है जिसका अनुमान हेलियोसिज्मोलॉजी आधारित ऑब्जर्वेशन में लगाया जाता है।

चित्र:  सौर रोटेशन प्रोफाइल की गणना झा और चौधरी (2021) द्वारा दिए गए सैद्धांतिक मॉडल के आधार पर की गई। ठोस, काली और डैश्ड लाल परिरेखाएं क्रमशः मॉडल और ऑबजर्वेशन पर आधारित कोणीय रोटेशन की रूपरेखाएं हैं।

प्रकाशन लिंक:

ArXiv: https://arxiv.org/abs/2105.14266

DOI: https://doi.org/10.1093/mnras/stab1717

विस्तृत जानकारी के लिए बिभूति कुमार झा (bibhuti[at]aries[dot]res[dot]in) और अर्नब राय चौधरी (arnab[at]iisc[dot]ac[dot]in)से संपर्क किया जा सकता है।

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