रुड़की: उत्तर भारत में करवाचौथ का त्योहार पूरे धूमधाम सेमनाया जाता है। इस दिन सुहागिनें पति की लंबी आयु के लिए व्रत रख ईश्वर से उनके दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं, लेकिन उत्तराखंड के रुड़की में बॉर्डर के पास स्थित खाईखेड़ी, फलौदा, भैषाणी, बरला, कुतुबपुर, छपार व घुमावटी आदि 12 गांव में एक विशेष गोत्र में ये त्योहार नहीं मनाया जाता है।
इस गोत्र के करीब 200 परिवार रुड़की में भी निवास करते हैं। त्यागी कल्याण एवं विकास समिति रुड़की के उपाध्यक्ष प्रदीप त्यागी के अनुसार ऐसी मान्यता है कि करीब 300 साल पहले करवाचौथ के दिन बीकवान भारद्वाज गोत्र का एक युवक अपनी नवविवाहित वधु व बारात के साथ लौट रहा था।
सहारनपुर जनपद के जड़ौदा पांडा गांव में बाग में विश्राम के दौरान नाग के डंसने से उस युवक की मृत्यु हो गई थी। पति वियोग मे नवविवाहिता अपनी ससुराल या मायके न जाकर वहीं अग्नि समाधि लेकर सती हो गई थी।
मृतक वधु के मंदिर में चढ़ाते हैं साड़ी
तब से इस गोत्र में करवाचौथ का त्योहार नहीं मनाया जाता है। इस गोत्र के वंशज आज अपने गांव से निकल कर दुनिया में कहीं भी बस गए हों, मगर अपने पुरखों द्वारा तय इस परंपरा का निर्वाह अवश्य करते हैं।
उस नवविवाहिता का मंदिर सहारनपुर जनपद के जड़ौदा पांडा गांव में बना हुआ है। जहां आज भी भारद्वाज गोत्र की वधु साड़ी व प्रसाद चढ़ाकर अपने बच्चों व पतियों की लंबी उम्र की मन्नत मांगती है।