श्री हेमकुंड साहिब – जब भी धरती पर सुंदरता की बात आती है तो सबसे पहला नाम कश्मीर का ही आता है, लेकिन भारत में कुछ ऐसी जगहें भी है जो किसी जन्नत से कम नहीं और ये जन्नत कश्मीर नहीं बल्कि कोई और जगह है.
हम बात कर रहे हैं, सिखों की अटूट आस्था के प्रतीक श्री हेमकुंड साहिब की. उत्तराखंड के चमौली में स्थित श्री हेमकुंड साहिब 15200 फीट की ऊंचाई पर बना है. श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है.
श्री हेमकुंड साहिब अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है और यह देश के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है. गुरूद्वारे के पास ही एक सरोवर है. इस पवित्र जगह को अमृत सरोवर अर्थात अमृत का तालाब कहा जाता है. यह सरोवर लगभग 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है. यह चारों तरफ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है. इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है.
कुछ समय वे बर्फ सी सफेद, कुछ समय सुनहरे रंग की, कभी लाल रंग की और कभी-कभी भूरे नीले रंग की दिखती हैं. इस पवित्र स्थल को रामायण के समय से मौजूद माना गया है. कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है जहां श्री लक्ष्मण जी अपना मनभावन स्थान होने के कारण ध्यान पर बैठ गए थे. कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोबिंद सिंह जी ध्यान के लिए यहां आए थे.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह के बारे में अपने अनुभवों का उल्लेख किया है. श्री हेमकुंड साहिब के बारे में कहा जाता है कि यह दो से अधिक सदियों तक गुमनामी में रही. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह के बारे में बताया, तब यह अस्तित्व में आई. सिख इतिहासकार-कवि भाई संतोख सिंह (1787-1843) ने इस जगह का विस्तृत वर्णन दुष्ट दमन की कहानी में अपनी कल्पना में किया था.
इसके अलावा दशम ग्रंथ में यह कहा गया है कि जब पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में थे तो भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहां पर जन्म लेने का आदेश दिया था. उन्नीसवीं सदी के निर्मला विद्वान पंडित तारा सिंह नरोत्तम हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले वो पहले सिख थे. 1884 में प्रकाशित श्री गुड़ तीरथ संग्रह में उन्होंने इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है.
प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हेमकुंडसाहिब कि बारे में भाई वीर सिंह का वर्णन पढ़कर ही सेना से रिटायर संत सोहन सिंह ने इस जगह को तलाशने का फैसला किया, जो वर्ष 1934 में सफल हो गया. संत सोहन सिंह इस जगह को तलाशते हुए झील तक पहुंचे, जिसे आज लोकपाल के नाम से जाना जाता है.
1937 में यहां गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया. 1939 में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंडसाहिब के विकास का काम जारी रखने के मिशन को मोहन सिंह को सौंप दिया. गोबिंद धाम में पहली संरचना को मोहन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था. 1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी दे दी.
अगर आप भी छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो उत्तराखंड जा सकते हैं, श्री हेमकुंड साहिब के अलावा ये और भी बहुत से खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं.