लखनऊ: मा0 सर्वोच्च न्यायालय के मार्ग निर्देशानुसार मध्यस्थता से विवादों को हल कराने की सुदृढ़ व्यवस्था की गयी है। मध्यस्थता विवादों को निपटाने की सरल, त्वरित सुलभ, सस्ती एवं निष्पक्ष प्रक्रिया है। विभिन्न पक्ष अपने विवाद को सभी दृष्टिकोण से मापते हैं।
मध्यस्थता अधिकारी दबाव रहित-वातावरण में विभिन्न पक्षों के विवादों का निपटारा कराते हैं। सभी पक्ष अपने पहलुओं को मध्यस्थ अधिकारी के समक्ष रख सकते हैं जिससे मध्यस्थता अधिकारी विवाद की जड़ तक पहंुच सकता है। सभी पक्ष अपनी इच्छा से सद्भावनापूर्ण वातावरण में विवाद का समाधान निकालते हैं। कोई व्यक्ति जो भी मध्यस्थता के पूर्णतः प्रशिक्षित हो मध्यस्थ हो सकता है।
मध्यस्थता प्रणाली के तहत सभी पक्षों को मध्यस्थता प्रक्रिया के नियमों के बारे में बताया जाता है जिससे विवाद के प्रति निपटारे के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है। बातचीत से उत्पन्न विभिन्न समीकरणों को पक्षों के समक्ष रखा जाता है। विवाद के निवारण उपरान्त सभी पक्षों के समझौते की पुष्टि होती है। सभी पक्षों के हितों की पहचान होती है। समझौते की शर्तें स्पष्ट अंकित होती हैं।
मध्यस्थता के द्वारा विवाद का अविलम्ब वे शीघ्र समाधान हो जाता है तथा समय तथा खर्चों की बचत होती है। न्यायालय प्रक्रिया से मिलता है और टूटे रिश्तों की पुर्नस्थापना हो जाती है। यह प्रक्रिया अत्यधिक सरल व सुविधाजनक है। इसमें विवाद का हमेशा के लिए प्रभावी एवं सर्वमान्य समाधान हो जाता है।
मध्यस्थ वाले मामले में कोई अपील या संशोधन नहीं होता है। विवाद का अंतिम रूप में निपटारा से जाता है। मध्यस्थता में विवाद निटाने पर वादी कोर्ट फीस एक्ट 1870 की धारा 16 के तहत न्यायालय शुल्क वापस लेने का हकदार होता है।