आज उत्तराखंड की 6हजार से ज्यादा नदियां संकटग्रस्त हैं। देहरादून शहर की 23 नदियों में से सभी की सभी सूख चुकी हैं। इसी तरह से 2005 में द्वाराहाट, अल्मोड़ा की रिस्कन की सांस बिल्कुल टूट गई थी। बिल्कुल सूख गई थी। पर आज बहती है। अभी बहुत काम बाकी है, फिर भी अपने सबसे सुंदर रूप में बहने की उम्मीद जागी है। आज उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के उज्वल रेस्टोरेंट में ‘पर्यावरण वाले मनस्साब’ के नाम से मशहूर,द्वारहाट विकास खंड के ग्राम कंडे के निवासी मोहनचंद्र कांडपाल जी की एक प्रेस कांफ्रेंस हुई । इस दौरान वह मीडिया से मुखातिब हुए और कई सालों से नदियों को बचाने का जो कार्य कर रहे है उसे उन्होंने साझा किया।
मोहन कांडपाल ने बताया वह पिछले 34 सालों से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे है, जिसके अंतर्गत उन्होंने गांव की महिलओ और बच्चों के साथ मिलकर 1 लाख से अधिक वृक्ष रोपित किये है जो आज जंगल बन गए है। इसके साथ ही उनके द्वारा जल सरंक्षण हेतु लगभग 5 हज़ार से अधिक खाव एवं खंतिया खुदवाई गई है। और पिछले 10 वर्ष से उनके द्वारा ‘पानी बोओ पानी उगाओ’ अभियान चलाया जा रहा है उनका मानना है कि गांव से पलायन बढ़ जाने के कारण खेत बंजर हो गए हैं अब उनमें वर्षा का पानी नहीं रुकता है। जिसके कारण नौले- धारे सूखते जा रहे है। उसका प्रभाव गैर बर्फीली नदियों पर भी पर पड़ रहा है जिससे उनका जलस्तर घट रहा है।ऐसी ही उनके विकास खंड की नदी है रिस्कन, 40 किलोमीटर लम्बी नदी पर लगभग 46 गांव का अस्तित्व निर्भर करता है।
मई-जून में यह नदी कुछ वर्ष पूर्व सूख जाती थी। उनके द्वारा ‘पानी बोओ, पानी उगाओ’ अभियान के माध्यम से जागरूकता लाने के साथ-साथ प्रयोगात्मक कार्य ग्रामीणों के साथ मिलकर रिस्कन नदी बचाने का के लिए निशुलक प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अंतर्गत पूजाकार्य, नौकरी लगने, सेवानिवृत्त होने, शादी व संतान होने पर लोगों से अपील की जाती है कि वह जल संरक्षण हेतु खाव खुदवाएं व पेड़ लगाएं। ताकि वह रिस्कन नदी को बचा सके। मोहनचंद्र कांडपाल ने बताया कि उनके इस अभियान के बाद ग्रामीणों ने 10 लाख से अधिक की राशि के खाव और खंतिया बनाई है। और अब मोहनचंद्र कांडपाल चाहते हैं कि उनके पिछले 10 वर्ष से की जा रहे प्रयास को केंद्र और राज्य सरकार उदाहरण के तौर पर लें।