जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने आजादी के अमृत महोत्सव समारोह के भाग के रूप में वन अधिकार अधिनियम, 2006 पर तीन दिवसीय प्रशिक्षकों के वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन 2 अगस्त,2021 को किया। वर्चुअल प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त रूप से जनजातीय कार्य मंत्रालय, राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, छत्तीसगढ़ तथा यूएनडीपी द्वारा 2 से 4 अगस्त 2021 को किया जा रहा है। जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरुता, जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव, जनजातीय कार्य मंत्रालय की संयुक्त सचिव श्रीमती आर जया तथा संयुक्त सचिव श्री नवल जीत कपूर मंत्रालय के अन्य अधिकारियों के साथ-साथ एनटीआरआई और यूएनडीपी, राज्य टीआरआई के प्रतिनिधियों के साथ बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
जनजातीय कार्य मंत्री श्री अजुन मुंडा ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार विशेष रूप से चिंतित और प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के विजन को हासिल करने के लिए अनुसूचित जनजातियों की अनूठी चुनौतियों और चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जनजातीय कार्य मंत्रालय जनजातीय समुदायों और उनके क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को मानते हुए नीति और कार्यक्रम बनाने के लिए समर्पित है और उनके संरक्षण, सशक्तिकरण और विकास के लिए एक विस्तृत ढांचा प्रदान करता है।
श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह विजन तभी सफल हो सकता है जब जनजातीय समुदाय के लोग अपने अधिकारों तथा हक के प्रति जागरूक हों और अंतिम स्थान तक डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत संस्थागत व्यवस्था हो तथा कोई जनजातीय परिवार पीछे नहीं छूटे। उन्होंने कहा कि इसीलिए वन अधिकार अधिनियम इस विजन की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कानून है। उन्होंने कहा कि इसे कारगर ढंग से लागू करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण तथा विभिन्न हितधारकों, जनजातीय समुदायों, उनके प्रतिनिधियों, अधिकारियों और नोडल एजेंसियों के क्षमता सृजन की आवश्यकता है। श्री मुंडा ने कहा कि स्थानीय समुदायों का आगे प्रशिक्षण तभी संभव है जब मास्टर प्रशिक्षक और संसाधन व्यक्ति ब्लॉक तथा जिला स्तर पर उपलब्ध हों।
श्री मुंडा ने कहा कि हम जनजातीय लोगों के समग्र विकास को आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में देख रहे हैं और भारत की आजादी के 75 वर्ष निकट आने पर अनेक कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम पर प्रशिक्षकों के वर्चुअल प्रशिक्षण का तीन दिनों का राष्ट्रीय कार्यक्रम वन अधिकार अधिनियम के ज्ञान आधार को बढ़ाने तथा जनजातीय समुदाय का विकास सुनिश्चित करने में मदद देगा। श्री मुंडा ने कहा कि अच्छी राष्ट्रीय व्यवस्था बनाना और हमारे लोकतंत्र में जनजातीय लोगों का सही गवर्नेंस सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में तैयार किए गए विषयों से सामुदायिक अधिकारों, सामुदायिक वन संसाधनों को समझने, वन गवर्नेंस के लिए कानूनी धारकों को सशक्त बनाने में सहायता मिलेगी।
श्रीमती रेणुका सिंह सरुता ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय तथा राज्य सरकारें समय-समय पर अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि ये प्रशिक्षण कार्यक्रम बेहतर क्रियान्वयन और उन्नत डिलीवरी सेवाओं में परिवर्तित किए जाएं। उन्होंने कहा कि इसीलिए राज्य, जिला तथा ब्लॉक स्तरों पर मास्टर प्रशिक्षकों का वैसा कैडर बनाना महत्वपूर्ण है जो अधिनियन के उद्देश्य को साकार करने में क्रियान्वयन संस्थाओं को समर्थन प्रदान कर सके।
उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर डिलीवरी प्रणाली को मजबूत बनाना महत्वपूर्ण है ताकि वन अधिकार अधिनियम लागू करने का लाभ सभी हकदारों को मिले और अपने संसाधनों को शासित करने में ग्राम सभाएं सशक्त हो सकें। उन्होंने टीआरआई, छत्तीसगढ़ के सहयोग से तीन दिवसीय व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रयासों की सराहना की।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि इन सत्रों से प्रतिभागी लाभान्वित होंगे और राज्य सरकार तथा छत्तीसगढ़ के राज्य जनजातीय अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान इस प्रयास को आगे ले जाएंगे और वन अधिकार अधिनियम पर मास्टर प्रशिक्षकों का एक कैडर तैयार करेंगे ताकि अधिकारों की प्रक्रिया को मजबूत बनाया जा सके और राज्य में सभी पात्र दावेदारों के अधिकारों को मान्यता प्रदान की जा सके।
जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव श्री अनिल कुमार झा ने कहा कि यद्यपि अनेक राज्यों में समुदायों के अधिकारों तथा सीएफआर अधिकारों को मान्यता दी जा रही है लेकिन यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति के कर्मियों और एसडीएलसी तथा डीएलसी जैसे संस्थागत निकायों में प्रायः प्रावधानों की व्याख्या और क्रियान्वयन के लिए सूचना और क्षमता की कमी रहती है, विशेषकर समुदाय के अधिकारों की मान्यता के संबंध में। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों से स्वयं टीआरआई का क्षमता सृजन होगा।
आईआईपीए के महानिदेशक और एनटीआरआई के मेंटर श्री एस.एन त्रिपाठी ने कहा कि यह कार्यक्रम विस्थापित समुदायों के अधिकारों को सशक्त बनाएगा और बदलेगा। उन्होंने कहा कि इससे वनवासी अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों की उचित आजीविका और खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी और वनों की संरक्षण व्यवस्था मजबूत होगी।
जनजातीय कार्य मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री आर जया ने अपने आरंभिक भाषण में कहा कि जनजातीय लोगों तक सरकारी योजनाओं को उनके कल्याण के लिए ले जाने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम पर क्षमता सृजन कार्यक्रम इस उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद करेगा।
जनजातीय कार्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव डॉ. नवलजीत कपूर ने जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से क्षमता सृजन और प्रशिक्षण की प्रमुख विशेषताओं को बताया जो जनजातीय कार्य मंत्रालय, राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, छत्तीसगढ़ तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का साझा प्रयास है। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रक्रिया को और मजबूत बनाएगा तथा अधिनियम को लागू करने में विचारों तथा समस्याओं और चुनौतियों को स्पष्ट करेगा।
एनटीआरआई की विशेष निदेशक डॉ. नूपुर तिवारी ने कहा कि प्रशिक्षण के इन प्रयासों का फोकस राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों की क्षमताओं को मजबूत बनाने और राज्य स्तर पर मास्टर प्रशिक्षकों की कैडर उपलब्धता सुनिश्चित करने पर है। मास्टर प्रशिक्षकों का कैडर प्रशिक्षण कार्यक्रम को राज्य से जिला और आगे जिला से ब्लॉक स्तर पर ले जाएगा।
कार्यक्रम में टीआरआई छत्तीसगढ़ के निदेशक श्री सुशील चौधरी, यूएनडीपी के राष्ट्रीय कार्यक्रम संयोजक, मंत्रालय के अधिकारी तथा राज्य टीआरआई विशिष्टता केंद्र के प्रमुख शामिल हुए।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागियों में मुख्य रूप से अनुमंडल अधिकारी, तहसीलदार, वन अधिकारी, सहायक आयुक्त जनजातीय विकास के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों के प्रशिक्षक, टीआरआई, छत्तीसगढ़ के शोधकर्ताओं जैसे क्रियान्वयन अधिकारी शामिल हैं।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम वन अधिकार अधिनियम समीक्षा, भारत में भूमि और वन भूमि को विनियमित करने वाले कानूनों के साथ एफआरए के इंटरफेस जैसे विषयों को कवर किया जाएगा, संस्थागत व्यवस्थाएं: अधिदेशित संस्थानों की भूमिका और कार्य, सीडब्ल्यूएच की वन भूमि पहचान से संबंधित परिवर्तन तथा दावों, शिकायतों और अपील को स्थानांतरित करने और अस्वीकार करने, अधिकारों की मान्यता के बाद के विषयों, अधिकारों के रिकॉर्ड और वन गांवों को राजस्व गांवों में परिवर्तन आदि से संबंधित विषय।