मध्यप्रदेश: फिल्मों में तो ऐसा अक्सर देखा होगा जब एक ही हीरो से शादी करने के लिए दो बहनें किसी भी हद से गुजर जाती हैं, कुछ किस्से ऐसे भी हैं जब एक युवक को पाने को एक बहन ने दूसरी के खून से अपने हाथ रंग दिए। लेकिन मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के छोटे से गांव में एक दूसरी ही कहानी ने जन्म लिया है। कहानी ऐसी की हर किसी को अंदर तक झकझोर दे। प्यार और समर्पण की ऐसी दास्तान जो शर्तिया आपकी आंखों में आंसू ला देगी।
यहां दो बहनों ने एक ही युवक के नाम की मेहंदी अपने हाथों पर लगाई। उसी के नाम का लाल जोड़ा पहना और उसके साथ ही दोनों बहनों ने शादी के सात फेरे लिए। त्याग और रिश्तों के इस अनोखे संगम पर वहां मौजूद हर शख्स की आंख नम थी।
चलिए अब आपको विस्तार से बताते हैं पूरा मामला। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले श्योपुर में दो बहनों ने एक ही युवक से शादी की। इनमें से बड़ी बहन भभूती जन्मजात विकलांग है, उसके दोनों हाथ पूरी तरह विकसित नहीं हैं। बहन की इस अक्षमता का अंदाजा उसकी छोटी बहन कविता को भी था इसलिए उसने शर्त रख दी कि वह उसी व्यक्ति से शादी करेगी जो उसकी बहन से भी शादी करने को तैयार होगा। कुछ झंझावातों के बाद दोनों बहनों की जिंदगी में खैर वो वक्त भी आया जब कोई उनका हाथ थामने को तैयार हुआ।
प्रदेश की शहरिया जनजाति की दोनों बहनों से शादी के लिए उनकी ही बिरादरी का 21 साल का नीमा तैयार हो गया। वह करहल ब्लॉक के पहाड़ गांव का रहने वाला है। विकलांग भभूति चार भाई बहनों में सबसे बड़ी है उससे छोटी कविता और दो छोटे छोटे भाई हैं।
ऐसे में बड़ी बहन की देखभाल की सारी जिम्मेदारी कविता पर ही है। कविता ने बताया कि ‘मेरे माता पिता काफी बुजुर्ग हैं, मैं अपनी बड़ी बहन की देखभाल को लेकर काफी चिंतित थी।’ शादी के बाद पहली बार अपने घर लौटी कविता ने बताया कि ‘मुझे चिंता यही थी कि मेरे बाद बड़ी बहन की देखभाल कौन करेगा।’
‘अब मैं अपने पति की सहायता से उसकी देखभाल कर सकती हूं।’ चेहरे पर मुस्कराहट के साथ कविता ने कहा ‘मुझे उम्मीद है दीदी अब ठीक रह सकेंगी।’ कविता के माता पिता हरज्ञान और दुलरिया ने बताया कि उनकी ‘बड़ी बेटी भभूति के दोनों हाथों की जगह छोटी सी गांठ है।’
‘उसकी इसी शारीरिक अक्षमता के कारण कोई उससे शादी करने को तैयार नहीं होता था।’ कविता बताती है कि ‘जो भी रिश्ता आता वो मेरे लिए ही होता था मेरी बहन के लिए कोई नहीं। ऐसा कोई भी नहीं था जो मेरी बहन को पत्नी के तौर पर स्वीकार करने के लिए तैयार हो।’ उसके माता पिता बताते हैं कि ‘भभूति अनपढ़ नहीं है शारीरिक अक्षमता के बावजूद वह 11वीं तक पढ़ी है। वह लिखाई पढ़ाई के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल करती है।’
साभार अमर उजाला