देहरादून: कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल द्वारा झाझरा स्थित उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं तकनीक परिषद (यूकाॅस्ट) में ‘पेयजल की गुणवत्ता की जांच एवं प्रबन्धन’ तथा राष्ट्रीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी के 28 वें
तीन दिवसीय वार्षिक सम्मेलन का समापन किया गया।
सम्मेलन समापन के अवसर पर मा मंत्री ने सम्बोधन में कहा कि सम्पूर्ण विश्व इस बात की चर्चा कर रहा है कि उनका जल प्रबन्धन कैसे सफल हो क्योंकि पानी के बीना जीवन की कल्पना करना असम्भव है तथा अक्सर कहा भी जाता है कि अगर तृतीय विश्वयुद्ध होगा तो उसकी भूमिका में जल होगा। उन्होने कहा कि आज जहां विकसित देश नई तकनीक द्वारा जल प्रबन्धन कर रहे हैं वहीं भारत जैसे विकासशील देश पुरानी परम्परागत तकनीक पर निर्भर है जबकि दिनो-दिन आभादी बढने के कारण जल के कुशल प्रबन्धन की बड़ी आवश्यकता है। उन्होने कहा कि हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि बिना बांध बनाये तथा प्रकृति के संसाधनों का दोहन किये बिना हम विकास नही कर सकते, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इस तरह से होना चाहिए की प्रकृति पर नकरारत्मक प्रभाव न पड़े और हमारी जीविका भी चलती रहे। उन्होने कहा कि हमारा प्रदेश विविधताओं से भरा है और केदारनाथ आपदा के पश्चात चारधाम यात्रा को सफल बनाकर उत्तराखण्ड सरकार ने देश-दुनिया को सुरक्षित उत्तराखण्ड का जो संदेश दिया है वह काबिलेतारीफ है। उन्होने कहा कि सरकार ने हरित प्रदेश बनाने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन वाली वन प्रबन्धन योजना शुरू की है, जो पर्यावरण तथा लोगों की जीविका को एक साथ साधती है। उन्होने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे रिसर्च पर अधिक जोर दें तथा ज्ञान एवं अपने अनुभवों का लाभ समाज के निचले तबके तक पंहुचाने की भरपूर कोशिश करें। उन्होने उम्मीद जताई की इस सम्मेलन से भविष्य में अच्छे परिणाम आयेंगे। मा0 मंत्री ने इससे पूर्व यूकाॅस्ट के विज्ञान आंचल केन्द्र (विज्ञान धाम/विज्ञान भवन) का निरीक्षण किया जिस दौरान उन्होने आधुनिक तकनीक से युक्त प्रदर्शनियां देखकर यूकाॅस्ट के सदस्यों की सरहाना की।
सम्मेलन में यूकाॅस्ट के महानिदेशक डाॅ राजेन्द्र डोभाल ने कहा कि यह सम्मेलन वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय संवाद को साझा करने के लिए एक आधार प्रदान करता है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड में चूने के पानी की अधिकता से पत्थरी तथा वैक्टिरिया की अधिकता से अनेक बीमारी होती है साथ ही गिजर, आरो, वाटर प्यूरीफायर आदि उपकरण खराब होने से जनता की आमदनी का बड़ा भाग इस पर व्यय होता है। उन्होने कहा कि वर्तमान समय में जल स्वच्छता के गुणवत्तापूर्ण उपकरण आम आदमी की पंहुच से बाहर है इसलिए हमें ऐसे रिसर्च पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है जो कम दाम में बेहतर गुणवत्ता दें तथा आम जन की पंहुच में हों।