रंगपंचमी पर उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर से भगवान महाकाल का ध्वज चल समारोह निकलेगा। अलग-अलग मार्गों से होता हुआ चल समारोह पुनः महाकालर मंदिर पहुंचेगा। इसके साथ ही भगवान महाकाल को प्राकृतिक रंग चढ़ाया जाएगा। टेसू के फूलों से रंग बनाया जा रहा है, जो भस्मारती में चढ़ेगा।
प्रतिवर्ष रंगपंचमी पर महाकालेश्वर मंदिर से महाकाल भगवान का ध्वज चल समारोह निकलता है। इस बार 22 मार्च को यह चल समारोह निकलेगा। रंगपंचमी की शाम को अतिथियों द्वारा महाकालेश्वर मंदिर सभामंडप में ध्वज का पूजन किया जाएगा। इसके बाद ध्वज चल समारोह अपने साज-सज्जा के साथ नगर भ्रमण पर निकलेगा। ध्वज चल समारोह महाकाल मंदिर से शुरू होकर महाकाल चौराहा, तोपखाना, दौलतगंज, फव्वारा चौक, नई सड़क, कंठाल, छत्रीचौक, गोपाल मंदिर होता हुआ रात्रि करीब 10.30 बजे पुनः श्री महाकालेश्वर मंदिर पहुंचेगा। चल समारोह में बाबा की ध्वजा के साथ ही वर्ष में एक बार सजने वाले सेहरे के दर्शन भी भक्तों को होंगे। ध्वज का पूजन कर श्रद्धालु भगवान का आशीर्वाद लेंगे।
टेसू के फूलों से तैयार हो रहा प्राकृतिक रंग
इधर महाकालेश्वर मंदिर में रंगपंचमी पर महाकालेश्वर को प्राकृतिक रंग चढ़ाया जाएगा। मंगलवार सुबह भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल के साथ पण्डे पुजारी और श्रद्धालु रंगपंचमी का त्यौहार मनाएंगे। इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। महाकाल मंदिर में टेसू के फूलों से शुद्ध रंग तैयार किया जा रहा है। आगर,उज्जैन और आसपास के क्षेत्रो से टेसू के फूल मंगवाए जा रहे हैं। इन्हें उबालकर शुद्ध रंग बनाया जा रहा है। करीब छह घंटे तक फूलों को गर्म पानी में उबाला जा रहा है। इससे तैयार रंग भस्म आरती के दौरान महाकाल को अर्पित किया जाएगा। टेसू के फूलों से बने सुंगधित रंग से रंग पंचमी मनाने के लिए यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। इसमें रंगपंचमी पर तड़के होने वाली भस्मारती में भगवान महाकाल को शुद्ध रंग चढ़ाने की परंपरा है। बताया जा रहा है कि रंग को तब तक उबाला जाता है जब तक केसरिया रंग न हो जाए। इसमें हजारों लीटर पानी लरगता है। इसके बाद इसे ठंडा कर छाना जाता है और बाद में महाकाल भगवान को अर्पित किया जाता है।
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