नई दिल्ली: स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत दिल्ली में 80 स्थानों पर 480 सार्वजनिक शौचालय-सीटों का निर्माण किया जाएगा। यह निर्माण अगले तीन महीनों के दौरान होगा। यह निर्णय कल शाम को भारत सरकार के शहरी विकास सचिव श्री मधुसूदन प्रसाद की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में लिया गया। इस बैठक में एनडीएमसी, दिल्ली नगर निगम के तीनों अंगों और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार परियोजना (डीयूएसआईपी) के मुख्य कार्यकारियों, दिल्ली सरकार के विशेष सचिव, दिल्ली शहरी कला आयोग (डीयूएसी) के अध्यक्ष तथा अन्य आला अधिकारियों ने हिस्सा लिया। श्री मधुसूदन प्रसाद ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत तीव्र कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया और इस बात पर चिन्ता व्यक्त की कि दिल्ली के धीमे विकास के कारण लोगों में नकारात्मक धारणाएं बन रही हैं।
बैठक में सार्वजनिक शौचालयों से संबंधित तमिलनाडु के ”नम्मा” मॉडल तथा दिल्ली शहरी आश्रय सुधार परियोजना द्वारा विकसित विभिन्न मॉडलों पर चर्चा की गई। सार्वजनिक शौचालय का नम्मा मॉडल डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम के सुझाव पर तैयार किया गया था जब वे 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार थे। इस मॉडल को तमिलनाडु में इस्तेमाल किया जा रहा है। नम्मा शौचालयों की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी सराहना की थी जब उन्होंने पिछले महीने तीन नए शहरी अभियानों को जारी करने के दौरान आयोजित एक प्रदर्शनी में इसे देखा था।
दिल्ली के चार शहरी निकाय ऐसे 20 स्थानों की पहचान करेंगे जहां सार्वजनिक शौचालय परिसर बनाए जाने हैं। प्रत्येक शौचालय में 6 सीटें होंगी। इस तरह 80 स्थानों के आधार पर कुल 480 शौचालय-सीटों का निर्माण किया जाएगा। इस काम के लिए नम्मा और डीयूएसी के मॉडलों का उपयोग किया जाएगा।
कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के अंतर्गत नेशनल बिल्डिंग्स कांस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (एनबीसीसी) लागत का कुछ हिस्सा वहन करेगा।
डीयूएसआईपी मलिन बस्तियों में एक हजार सामुदायिक शौचालय सीटों को लगाने के लिए एक कार्य योजना तैयार करेगा। सामुदायिक शौचालय सीटों के निर्माण के लिए 40 प्रतिशत अंतराल निधि का विस्तार किया जाएगा, जिसे इन शौचालयों का इस्तेमाल करने वालों से मामूली शुल्क लेकर पूरा किया जाएगा।
स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत 2019 तक 1,29,398 व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालयों, 9156 सार्वजनिक शौचालय सीटों और 1982 सामुदायिक शौचालय सीटों का निर्माण किया जाना है। इसके अलावा इस दौरान शत-प्रतिशत ठोस कचरा प्रबंधन को भी सुनिश्चित किया जाना है। इसकी अनुमानित लागत 350 करोड़ रुपये है।