गांधी जयंती के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, श्री भूपेंदर यादव ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आजादी का अमृत महोत्सव के प्रतिष्ठित सप्ताह (4-10 अक्टूबर 2021) की शुरुआत करते हुए ‘इंडिया फॉर टाइगर्स-ए रैली ऑन व्हील्स’ को झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर श्री यादव ने पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए और सिंधु तथा गंगा नदियों में डॉल्फ़िन की गणना के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए।
श्री यादव ने बताया कि ‘आजादी का अमृत महोत्सव-प्रतिष्ठित सप्ताह’ और उसके बाद, यह परिकल्पना की गई है कि एक गहन, देशव्यापी अभियान, जो नागरिकों की भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करेगा, को ‘जनांदोलन’ में परिवर्तित किया जाएगा, जहां स्थानीय स्तर पर छोटे बदलाव होंगे, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय लाभ में वृद्धि होगी और न्यासी होने की अवधारणा को सुदृढ़ करने तथा प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने में मदद मिलेगी।
इस अवसर पर मंत्री महोदय ने तीन टाइगर रिजर्व नवेगांव नागजीरा टाइगर रिजर्व-महाराष्ट्र, बिलिगिरी रंगनाथ मंदिर टाइगर रिजर्व, कर्नाटक और संजय डुबरी टाइगर रिजर्व, मध्य प्रदेश से टाइगर रैलियों को झंडी दिखाकर रवाना किया।
अखिल भारतीय आउटरीच गतिविधि में भारत की आजादी के 75 साल का उत्सव मनाने और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के प्रोजेक्ट टाइगर और वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास (आईडीडब्ल्यूएच) कार्यक्रम के दायरे में जैव विविधता संरक्षण का संदेश फैलाने के दोहरे उद्देश्य हैं। रैली ऑन व्हील्स का आयोजन चुनिंदा तिथियों और निर्धारित मार्गों पर किया जाएगा और इसका नेतृत्व फील्ड निदेशक करेंगे। फील्ड निदेशक अपने नामित टाइगर रिजर्व से शुरुआत करेंगे। रैलियों का समापन रणथंभौर, कान्हा, मेलघाट, बांदीपुर, सिमिलिपाल, सुंदरबन, मानस, पलामू और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में होगा, जो प्रोजेक्ट टाइगर 1973 के तहत नामित हमारे देश के शुरुआती नौ टाइगर रिजर्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।
रैली में सभी 51 टाइगर रिजर्व लैंडस्केप स्तर पर भाग लेंगे और रैली के दौरान असंख्य आयोजनों में विभिन्न प्रकार के हितधारकों की सक्रिय भागीदारी दिखाई देगी और आयोजनों का आपस में मिलन बाघ को शांति और सुरक्षा में फलने-फूलने का अधिकार देने की अपील के साथ बाघ की व्यापक उपस्थिति को प्रदर्शित करेगा जो हमारी संस्कृति, पौराणिक कथाओं, इतिहास और साहित्य में गहराई से निहित है।
इस आयोजन में वन और वन्यजीव क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल पर्यटन के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए। पर्यावरण अनुकूल पर्यटन दुनिया भर में और साथ ही भारत में भी प्रचलित है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ‘वन और वन्यजीव क्षेत्रों में स्थायी पर्यावरण अनुकूल पर्यटन के लिए दिशानिर्देश’ जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश वन, वन्यजीव क्षेत्रों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में पड़ने वाले पर्यावरण अनुकूल पर्यटन स्थलों पर लागू होते हैं।
वन्यजीवों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए एक भागीदारी दृष्टिकोण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, दिशानिर्देश स्थानीय समुदायों की भागीदारी पर जोर देते हैं जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को समृद्ध करते हैं और स्थानीय समुदायों को ‘आत्मनिर्भर’ बनने में मदद करने के लिए वित्तीय व्यवहार्य मूल्य श्रृंखलाओं के माध्यम से स्वदेशी सामग्री के सतत उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं। इसके अलावा इको-सेंसिटिव पर्यटन के विकास के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के साथ लाभों के समान बंटवारे में हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देता है।
दिशानिर्देशों में प्रत्येक संरक्षित क्षेत्र में नींव का निर्माण और स्थानीय समुदायों के साथ राजस्व के बंटवारे पर भी महत्व दिया गया है। इसके अलावा, दिशानिर्देशों में पर्यावरण अनुकूल पर्यटन स्थलों की पहचान, क्षेत्रीकरण और एक पर्यावरण अनुकूल पर्यटन योजना बनाने का प्रावधान है जो पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र के मामले में वन/संरक्षित क्षेत्र और पर्यटन मास्टर प्लान के लिए अनुमोदित प्रबंधन योजना/कार्य योजना का हिस्सा होगा। इसमें जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी तंत्र का भी प्रावधान है।
पर्यावरण मंत्री ने गंगा और सिंधु नदी में डॉल्फ़िन, संबंधित जलीय जीवों और आवास की निगरानी के लिए एक फील्ड गाइड भी जारी की। डॉल्फ़िन एक जलीय शीर्ष शिकारी है और जलीय प्रणाली को नियंत्रित करती है। डॉल्फिन एक छत्र प्रजाति के रूप में कार्य करती है, जिसके संरक्षण से मानव सहित संबंधित आवास और जैव विविधता का कल्याण होगा। महत्वपूर्ण संरक्षण क्षेत्रों को चित्रित करने के लिए डॉल्फ़िन की गणना बहुत महत्वपूर्ण है, जहां विकास की योजना उपयुक्त शमन उपायों और स्थानीय समुदायों की आजीविका को सुरक्षित करने के लिए भी बनाई जा सकती है।
अब तक, मौजूदा समय में गणना की कोई योजना नहीं है, हालांकि अतीत में छिटपुट गणनाएं की गई हैं। पहली बार एक मानकीकृत निगरानी प्रोटोकॉल बनाया गया है और असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब राज्यों में किए जाने वाले समकालिक डॉल्फिन गणना अभ्यास के लिए नियोजित की जाएगी। डॉल्फिन अनुमान एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और “प्रोजेक्ट डॉल्फिन” का घटक है।
निगरानी प्रोटोकॉल पद्धति में गंगा नदी में डॉल्फिन की संख्या की वास्तविक निगरानी शामिल है। नदी की चौड़ाई और गहराई के आधार पर, डॉल्फिन की वास्तविक निगरानी के लिए नाव आधारित पद्धति में डबल ऑब्जर्वर सर्वे, बोट इन टैंडेम सर्वे और सिंगल बोट सर्वे का उपयोग किया जाएगा।