नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखण्ड में बहने वाली नदियों को अन्य राज्यों के समान ही वन विभाग के क्षेत्राधिकार से बाहर निकालकर सिंचाई विभाग के अंतर्गत किया जाए। नदियों में विशाल मात्रा में एकत्र आरबीएम जो कि बाढ़ नियंत्रण में बाधक है, के एक वैज्ञानिक विधि से चुगान के संबंध में आवश्यक नीति का निर्धारण शीघ्र किया जाए।
पर्यावरण के लिए हानिकारक चीड़ के वृक्षों को चरणबद्ध तरीके से चैड़ी पत्ती वाले वृक्षों से प्रतिस्थापित किया जाए। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात कर राज्य से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर केंद्र से सहयोग का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने हरिद्वार में प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबंध का के संबंध में अवगत कराया कि पूरे देश के सभी वर्ग के लोग सामान्यतः गंगाजल को प्लास्टिक केन में लेकर जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि मिनरल वाटर की बोतल, दूध की थैली आदि विभिन्न अति आवश्यक वस्तुएं आजकल प्लास्टिक के पात्र में ही उपलब्ध हैं। एकदम से प्लास्टिक पर पूरी तरह से बैन लगाना व्यावहरिक नहीं है। प्लास्टिक प्रदूशण को रोकने के लिए प्लास्टिक की मोटाई तय की जा सकती है। साथ ही यह भी तय किया जा सकता है कि प्लास्टिक का उपयोग किन कार्यों में किया जा सकता है और किन कार्यों में नहीं किया जा सकती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके अभाव में स्थानीय व्यापारियों एवं तीर्थयात्रियों में आक्रोश बढ़ रहा है। कारण गंगाजल किस पात्र में ले जांए, पीतल के लोटे में या लोहा के पात्र में। परन्तु ये गरीब तीर्थयात्रियों के लिए महंगे होंगे और साथ ही इन्हें भी पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल नहीं ठहराया जा सकता है। मुख्य मंत्री ने सुझाव दिया कि ऐसे मानदण्ड बनाए जांए जो कि व्यवहारिक हों, पर्यावरण के अनुकूल हों और जिससे हरिद्वार में दुनियाभर से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस भी न पहुंचे।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने केंद्रीय मंत्री से विधानभवन व सचिवालय बनाए जाने के लिए रायपुर में 59.903(लगभग 60 हेक्टेयर) वन भूमि के स्थानान्तरण की स्वीकृति दिए जाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एएफसी ने देहरादून में विधानसभा भवन व सचिवालय भवन की स्थापना के लिए भूमि चयनित करने हेतु वन के क्षेत्रीय नोडल अधिकारी, राजस्व विभाग के अधिकारी व जिलाधिकारी की समिति को भौतिक निरीक्षण करने के निर्देश दिए थे । परीक्षण में रायपुर वन भूमि को ही उपयुक्त पाया गया व निरीक्षण आख्या केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार ने पूर्व में ऐसी अवस्थापनात्मक सुविधाओं के विकास के लिए अनेक नव गठित राज्यों को इससे कहीं अधिक वन भूमि हस्तांतरित की हैं। उत्तराखण्ड का 65 फीसदी क्षेत्र वनाच्छादित है और बहुधा आपदाओं से जूझता रहता है। रायपुर में विधानसभा भवन व सचिवालय भवन बनने से देहरादून में यातायात की समस्या भी हल हो सकेगी। मुख्यमंत्री श्री रावत ने केंद्रीय मंत्री श्री जावड़ेकर से इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को यथाशीघ्र स्वीकृति दिए जाने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड में वन क्षेत्रों में बहने वाली समस्त नदियों को वनाधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कर दिया गया जबकि अनेक राज्यों में इसी प्रकार की नदियाँ राज्य के राजस्व अथवा सिंचाई विभाग के अन्तर्गत निहित हैं। इन नदियों को वन विभाग के क्षेत्राधिकार से बाहर किए जाने के लिए शीघ्र ही उत्तराखण्ड सरकार प्रस्ताव भेजेगी जिस पर केंद्र सरकार से सकारात्मक कार्यवाही की अपेक्षा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों में विषाल मात्रा में एकत्र आरबीएम जो कि बाढ़ नियंत्रण में बाधक है, के एक वैज्ञानिक विधि से चुगान के संबंध में आवश्यक नीति बनाए जाने के संदर्भ में भारत सरकार के स्तर पर नीति निर्धारण की कार्यवाही गतिमान है जिसमें उत्तराखण्ड के मामलें भी निहित हैं। इस पर भारत सरकार शीघ्र निर्णय लेकर नीति निर्धारण करे।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने उत्तराखण्ड में जैव विविधता के लिए चीड़ के पेड़ों के नुकसानदायक होने की जानकारी देते हुए कहा कि उत्तराखण्ड के पहाडी क्षेत्रों में चीड़ के वृ़क्षों की पत्तियां वनों में अग्निकाण्ड की एक मुख्य कारक हैं तथा अत्यधिक नमी को सोखने की प्रवृति के कारण यह वृक्ष भूमि को बंजर एवं एसीडिक बना कर पर्यावरण को हानि पहुंचाने में सहायक है। राज्य सरकार इसकी पत्तियों को हटाने हेतु इसके औद्योगिक उपयोग के लिए अनेक प्रकार के प्रयोगों में प्रयासरत रहने के बावजूद इसके निदान में पूर्णतः सफल नहीं हो सकी है। यह वृक्ष पर्वतीय भूभाग के लिए एक अभिषाप की तरह फैलता जा रहा है। मुख्यमंत्री ने एक 10 वर्षीय कार्य योजना बनाकर प्रथम चक्र में निचले क्षेत्र में चीड़ के वृक्षों को चरणबद्ध तरीके से हटाकर इनके स्थान पर चैडी पत्ती के वृ़क्षों का रोपण करने का सुझाव दिया। केंद्रीय मंत्री श्री जावड़ेकर ने सुझाव को आकर्शक बताते हुए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सहमति का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिए गहन अध्ययन के साथ राज्य सरकार केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्ताव उपलब्ध कराए। चीड़ की पत्तियों को एकत्र करने के कार्य को मनरेगा के अन्तर्गत जोड़ने की सम्भावना पर भी विचार विमर्श किया गया।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने कहा कि प्रदेश में प्लास्टिक कचरे को एकत्रित कर क्षेत्रीय आधार पर यूनिट लगाई जाए। इसमें मोटी प्लास्टिक शीट तैयार कर इसे मकानों की छतों हेतु लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने राज्य सरकार के स्तर पर सब्सीडी के साथ इसका क्षेत्रीय स्तर पर यूनिट लगाने की बात कही।
गंगोत्री इको सेंसिटीव जोन के नोटिफिकेशन का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने अवगत कराया है कि उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश के अन्तर्गत राज्य में पहले से ही भागीरथी नदी घाटी विकास प्रधाकिरण स्थापित है तथा नोटीफिकेशन के अनुरूप है। अतः इस इको सेंसिटिव जोन नोटिफिकेषन की आवष्यकता नहीं रह जाती है। शिवपुरी में राफ्टिंग से संबंधित पर्यटकों को और अधिक रेगुलेट करने की आवश्यकता के संदर्भ में मुख्यमंत्री ने अवगत कराया कि इसमें पहले से ही राज्य स्तर पर कार्यवाही की जा रही है। इसी प्रकार देहरादून की अनेक सूखी नदियों में अतिक्रमण के संदर्भ में भी मुख्यमंत्री ने अवगत कराया कि इनके पुनर्वास हेतु राज्य सरकार द्वारा 150 करोड की योजना बनाई गई है।
मुख्यमंत्री हरीष रावत व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर, के साथ हुई बैठक में उत्तराखण्ड के अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा, स्थानिक आयुक्त शंकर दत्त शर्मा एवं भारत सरकार के पर्यावरण सचिव अशोक लवाशा, महानिदेशक-वन एस. एस. गब्र्याल अपर महानिदेशक डाॅ0 एस.एस. नेगी उपस्थित रहे।