केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने नई दिल्ली में 7वें इंडिया वॉटर इम्पैक्ट समिट, 2022 (आईडब्ल्यूआईएस 2022) का उद्घाटन किया। 7वें आईडब्ल्यूआईएस 2022 का विषय ‘एक बड़ी बेसिन में छोटी नदियों का जीर्णोद्धार और संरक्षण’ है, जिसमें ‘5 पी- पीपल, पॉलिसी, प्लान, प्रोग्राम, प्रोजेक्ट के प्रतिचित्रण और अभिसरण’ के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। तीन दिवसीय (15-17 दिसंबर) इस शिखर सम्मेलन में देश-विदेश के विशेषज्ञ उन उपायों पर चर्चा करेंगे, जिनसे बड़ी नदी घाटियों में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी छोटी नदियों का जीर्णोद्धार किया जा सके और उन्हें संरक्षण प्रदान किया जा सके।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जल और नदियों के विषयों पर चर्चा करना मनुष्य के भविष्य और उनके सामने आने वाले चुनौतियों पर चर्चा करने के समान है। उन्होंने कहा कि पिछले 7 वर्षों में नमामि गंगे मिशन ने नदियों के संरक्षण के लिए जिस प्रकार से काम किया है, वह बहुत ही सराहनीय है। मंत्री ने कहा कि “प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप नमामि गंगे एक जन आंदोलन बन चुका है और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग इसमें अपने-अपने हिसाब से सहयोग दे रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि भारत में सभी नदियों को मां का दर्जा प्राप्त है और भारत में माताओं कों सम्मान देने की एक समृद्ध परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि भारत के ऋषि-मुनियों और पूर्वजों ने पारंपरिक ज्ञान प्राप्त किया और शास्त्रों के माध्यम से हम लोगों में जल संरक्षण की भावनाएं उत्पन्न की। श्री शेखावत ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री ने अर्थ गंगा की अवधारणा को अपना समर्थन दिया है, जिसका मुख्य विषय-वस्तु अर्थव्यवस्था के माध्यम से लोगों और नदियों को आपस में जोड़ना है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में समयबद्ध रूप से नमामि गंगे के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों की प्रसन्नता करते हुए, उन्होंने कहा कि गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों का कायाकल्प करने की दिशा में अवसंरचना निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और इसके सकारात्मक परिणामों को राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मान्यता प्राप्त हो रही है।
श्री शेखावत इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त किया कि इस इंडिया वॉटर इम्पैक्ट समिट, 2022 में देश-विदेश के विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि, “भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन जल क्षेत्र में भारत के अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूती प्रदान करेगा और शिखर सम्मेलन में प्राप्त सुझाव आगे निर्णय लेने में फायदेमंद साबित होंगे।”
आईडब्ल्यूआईएस के 7वें संस्करण के विषय पर टिप्पणी करते हुए, श्री शेखावत ने कहा कि छोटी नदियां और नाले भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं और यह सबसे उपयुक्त है कि गंगा नदी जैसी बड़ी नदी घाटी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘5 पी- पीपल, पॉलिसी, प्लान, प्रोग्राम, प्रोजेक्ट के प्रतिचित्रण और अभिसरण’ के माध्यम से छोटी नदियों का जीर्णोद्धार करने की दिशा में आवश्यक बातचीत की जाएगी।
श्री पंकज कुमार, सचिव, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय ने अपने संबोधन की शुरुआत शिखर सम्मेलन के फोकस बिंदुओं को रेखांकित किया, जिसमें बड़े बेसिनों में छोटी नदियों का जीर्णोद्धार और निरीक्षण करने और छोटी नदी प्रणालियों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर बल दिया गया। उन्होंने जानकारी दी कि किस प्रकार से बड़ी नदियों के संरक्षण और पुनर्स्थापन पर ध्यान केंद्रित करने के कारण छोटी नदियों की उपेक्षा की जाती है। उन्होंने गंगा संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करने के लिए एनएमसीजी द्वारा की जा रही कड़ी मेहनत पर भी प्रकाश डाला, जिसे समयबद्ध रूप से परियोजनाओं को पूरा करने के रूप में देखा जा सकता है, जिसके कारण पानी की गुणवत्ता में बहुत हद तक सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि अब भारत में नदियों के पूरे इकोसिस्टम पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और इस शिखर सम्मेलन में छोटी नदी की जीर्णोद्धार परियोजनाओं के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जाएगा। उन्होंने नदियों का कायाकल्प करने की दिशा में विभिन्न संस्थानों, सरकारी निकायों और निजी व्यक्तियों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। हिंडन नदी का उदाहरण देते हुए और छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य को पूरा करने में कई संभावी परिसंपत्तियों की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा कि उद्योगों और अन्य हितधारकों को प्रमुख भागीदार बनाकर हिंडन को पुनर्जीवित करने की योजना तैयार की गई। उन्होंने आशा व्यक्त कि इस विचार-विमर्श में देश की छोटी नदियों के जीर्णोद्धार का रूपरेखा तैयार करने के लिए सिफारिशें प्रदान की जाएंगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह राज्यों, जिला प्रशासनों और विभिन्न मंत्रालयों के लिए एक टूल किट के रूप में काम कर सकता है, जो पूरे देश में पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में सहायक साबित हो सकता है।
श्री विनोद तारे, आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर ने कहा कि गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है बल्कि देश की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। यही कारण है कि गंगा का संरक्षण और संवर्धन सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि इसकी सहायक नदियों और छोटी नदियों का जीर्णोद्धार किया जाए। उन्होंने कहा कि छोटी नदियों का कायाकल्प किए बिना गंगा संरक्षण की प्राप्ति का लक्ष्य असंभव है। उन्होंने सुझाव दिया कि विभिन्न संगठनों और संस्थानों द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं को बड़े बेसिन में छोटी नदियों के कायाकल्प करने की दिशा में तेजी लाने के लिए सहयोग करना चाहिए। उन्होंने बाहरी प्रौद्योगिकी का मूल्यांकन करने और देश की नदियों और संरक्षण कार्यक्रमों में इसकी उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए अपने खुद का एक संरक्षण बेंचमार्क तैयार करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
श्री डी.पी.मथुरिया, एनएमसीजी के कार्यकारी निदेशक (तकनीकी) ने स्वागत भाषण दिया और जल संरक्षण करने में एनएमसीजी के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गंगा नदी की जल गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि कई परियोजनाएं कार्यान्वयन होने की विभिन्न चरणों में हैं और परिसंपत्तियों की शुरुआत होने से नदी के पानी की गुणवत्ता और इसकी सहायक नदियों में और ज्यादा सुधार होगा। उन्होंने उल्लेख किया कि किस प्रकार से जिला गंगा समितियां नदियों, विशेष रूप से छोटी नदियों का कायाकल्प करने के लिए विभिन्न गतिविधियों का समन्वय करने वाली एक महत्वपूर्ण संस्था बन चुकी हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि यह शिखर सम्मेलन किस प्रकार से विभिन्न योजनाओं से वित्तीय संसाधनों का लाभ उठाकर विभिन्न गतिविधियों को लागू करने के लिए उपयुक्त तकनीकी मॉडल प्रदान कर सकता है।
कार्यक्रम के दौरान, केंद्रीय मंत्री ने जल गुणवत्ता विश्लेषण की निगरानी के लिए गुणवत्ता नियंत्रण पर एक ऑनलाइन शिक्षण पाठ्यक्रम, पीटीबी का भी उद्घाटन किया। इसे एनएमसीजी के अंतरराष्ट्रीय भागीदारों में से एक, जर्मन नेशनल मेट्रोलॉजी इंस्टीट्यूट पीटीबी द्वारा तैयार किया गया है। इस ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म का उद्देश्य गंगा नदी की जल निगरानी के लिए गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना को मजबूती प्रदान करना है। इसे मान्यता प्राप्त गुणवत्ता-गारंटी उपायों के आधार पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने के लिए गंगा नदी बेसिन में एकत्र किए गए आंकड़ों के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा और ऑनलाइन प्रशिक्षण इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किए गए लक्षित प्रयासों का समर्थन करेगा।
केंद्रीय मंत्री ने नदी एटलस यात्रा का भी विमोचन किया: इनमें उत्तराखंड नदी एटलस, अलकनंदा और भागीरथी: नदी बेसिन एटलस, यमुना नदी बेसिन एटलस, दिल्ली की नदियों का एटलस: संस्करण 1, उत्तर प्रदेश की नदियों का एटलस: संस्करण 1, हिंडन नदी बेसिन का एटलस, काली पूर्व नदी बेसिन का एटलस: संस्करण 1, रामगंगा नदी बेसिन का एटलस: संस्करण 1, गोमती नदी बेसिन का एटलस: संस्करण 1, घाघरा नदी बेसिन का एटलस: संस्करण 1, ‘नदियों, नालों और औद्योगिक प्रवाह का नया सेंसर आधारित जल गुणवत्ता डेटा: सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए कितने विश्वसनीय’ जैसे विषय शामिल हैं।
पहले दिन ‘नदी की स्वस्थ स्थिति निर्धारित करने के लिए लक्ष्यों का निर्धारण’, ‘अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए हाइब्रिड मॉडल’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग’ पर सत्रों का आयोजन किया गया।