केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राजयमंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रधान मंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत को प्राप्त करने की कुंजी है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता का यह विश्वास अगली पीढ़ी तक जाएगा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ मनीषियों को आकर्षित करने में मदद करेगा। डॉ. जितेंद्र सिंह भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोडकर के नेतृत्व में तैयार अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग पर समीक्षा समिति की रिपोर्ट जारी करने के बाद बोल रहे थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जहां तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संबंध है, भारत पहले से ही एक वैश्विक शक्ति है फिर भी इसके साथ ही उन्होंने प्रधान मंत्री के निर्देशों के अनुरूप देश की विशाल और अब तक अछूती क्षमता को सुव्यवस्थित करके उसके समुचित उपयोग करने का आह्वान करते हुए कहा कि वैज्ञानिक प्रयास नागरिक केंद्रित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विविधीकरण को एक लाभ के रूप में लिया जाना चाहिए क्योंकि बहुत कम देश विविध संसाधनों से संपन्न हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज भारत का 44 देशों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग है और आने वाले दिनों और महीनों में इस सूची में और विस्तार होगा । उन्होंने निर्धारित समय के भीतर सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए मंत्रालय आधारित परियोजनाओं के बजाय विषय आधारित परियोजनाओं को शुरू करने का भी आह्वान किया। मंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में अधिक से अधिक अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञों को लाने और साथ ही साथ स्वदेशी क्षेत्र से गहराई से जुड़े रहने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, हमें इस तरह के सहयोग की वास्तविक क्षमता हासिल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के की सीमाओं से बाहर भी जाना होगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बहुत जल्द, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ भारत सरकार के प्रत्येक मंत्रालय और विभागों के साथ विचार-मंथन करने के लिए एक नई कवायद शुरू की जाएगी। उन्होंने याद दिलाया कि पांच साल पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद राष्ट्रीय राजधानी में एक व्यापक विचार-मंथन अभ्यास आयोजित किया गया था, जिसमें विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के साथ-साथ ढांचागत विकास के पूरक, सुधार और तेजी लाने के लिए एक आधुनिक उपकरण के रूप में सर्वोत्तम अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जा सकता है, पर काम करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के प्रतिनिधि इसरो और अंतरिक्ष विभाग के वैज्ञानिकों के साथ गहन बातचीत में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग अब रेलवे, सड़क और पुल, चिकित्सा प्रबंधन/ टेलीमेडिसिन, समय पर उपयोगिता प्रमाण पत्र की खरीद, आपदा पूर्वानुमान और प्रबंधन आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के वैज्ञानिकों से अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और गतिविधियों को बढ़ाने के लिए उद्योगों और कॉर्पोरेट घरानों के साथ सहयोग करने को कहा। मंत्री महोदय ने कहा कि विभिन्न विज्ञान मंत्रालय राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं लेकिन उन्हें अलग-अलग काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोविड ने हमें घरेलू स्तर पर ही नहीं नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी समन्वय और सहयोग के मूल्य के बारे में बहुत अधिक सिखाया है।
डॉ. अनिल काकोडकर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक लंबा अनुभव है। उन्होंने कहा कि इस तरह के सहयोग में सहकारी और प्रतिस्पर्धी भावना एक साथ चलती है और जिसके अपने ही कई फायदे हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, जैव प्रौद्योगी विभाग की सचिव श्रीमती तथा रेणु स्वरूप, तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. राजीवन, सीएसआईआर के महानिदेशक और डीएसआईआर के सचिव श्री शेखर मांडे सहित मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस बैठक में भाग लिया।