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केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर औषधीय बूस्टर से ज्यादा लाभकारी होते हैं

देश-विदेश

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर औषधीय बूस्टरों की तुलना में ज्यादा प्रभावी होते हैं, वे प्रतिष्ठित आरएसएसडीआई (रिसर्च सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया) के जीवन संरक्षक होने के साथा-साथ मधुमेह और चिकित्सा के पूर्व प्रोफेसर भी रहे हैं। पिछले दो दशकों में दुनिया की अग्रणी चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए कई अध्ययनों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि भले ही एलोपैथी में विटामिन और प्रतिरक्षा बूस्टर गोलियां निर्धारित की जाती हैं लेकिन कुल मिलाकर अनुमान यही है कि भले ही रोगी को विटामिन की खुराक और एंटी-ऑक्सीडेंट गोलियां या कैप्सूल देना उचित हो सकता है लेकिन विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट के प्राकृतिक स्रोत ज्यादा विश्वसनीय और प्रभावी साबित हो सकते हैं।

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, 2021 के अवसर पर पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा “सेफ फूड टुडे फॉर ए हेल्दी टुमॉरो” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मुख्य भाषण देते हुए, डॉ, जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने वाले उपायों के माध्यम से रोगों के प्रबंधन की अवधारणा, विशेष रूप से संक्रामक रोगों की, भारत में चिकित्सा प्रबंधन का एक अंतर्निहित हिस्सा रहा है, विशेष रूप से एंटीबायोटिक दवाओं और रोगाणुरोधी दवाओं के आने से पहले, जिसके बारे में चिकित्सकों को तब पता चला जब पहला एंटीबायोटिक, अर्थात् पेनिसिलिन, 1940 के दशक के अंत में प्राप्त हुआ।

उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में तपेदिक बड़े पैमाने पर व्याप्त था और स्ट्रेप्टोमाइसिन और अन्य तपेदिक रोधी दवाएं 1950 के दशक की शुरुआत में उपलब्ध होने से पहले, तपेदिक के उपचार का मुख्य आधार आरोग्य निवास प्रबंधन था, जिसमें एक स्पष्ट, निरोग, खुला और हवादार वातावरण, स्वास्थ्यकर स्थितियां, स्वस्थ आहार शामिल थे, जिसका उद्देश्य संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देना था।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में ही जब गैर-संचारी और मेटाबॉलिक रोगों ने कब्जा जमा लिया, तब औषधीय और गैर-औषधीय आहारों के माध्यम से संक्रमणों के उपचार पर ध्यान देना बहुत कम हो गया था, लेकिन कोविड की अभूतपूर्व महामारी के आगमन के बाद इसे पुनर्जीवित किया गया है, जिसने पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया है। हालांकि कोविड महामारी ने आहार के सिद्धांतों को समझने के लिए और अधिक जागरूकता व जिज्ञासा पैदा की है, उन्होंने कहा कि प्राच्य समाज की एक विशेषता यह रही है कि भोजन और भोजन की आदतों को कभी भी प्राथमिकता नहीं दी गई और इस पर कई प्रकार के मिथकों को भी समय-समय पर प्रचलित किया गया।

तीन दशकों से ज्यादा समय में प्राप्त हुए अपने नैदानिक अनुभवों के आधार पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि उदाहरण के लिए, मधुमेह के उपचार के बारे में एक लोकप्रिय मिथक यह है कि इसमें कार्बोहाइड्रेट का सेवन पूरी तरह से वर्जित है, लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी व्यक्ति के लिए, चाहे वह मधुमेह से पीड़ित हो या न हो, 24 घंटों में संतुलित आहार के कुल सेवन का लगभग 60% कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए क्योंकि ये शरीर में ऊर्जा का स्रोत होता है और इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अग्न्याशय को भी प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने कहा, हालांकि, कार्बोहाइड्रेट की विभिन्न श्रेणियों जैसे सरल कार्बोहाइड्रेट या जटिल कार्बोहाइड्रेट या अन्य में से किस एक का चुनाव करना है, वह डॉक्टर द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति, शरीर का वजन, शारीरिक गतिविधियों का स्तर आदि के आधार पर किया जाना चाहिए।

मंत्री ने कहा कि आज, कोविड महामारी के दौरान, प्रत्येक नागरिक के लिए अच्छा पोषण, भोज्य पदार्थों और प्रतिरक्षा प्रणाली पर इनके प्रभावों को समझना और उसके प्रति जागरूक होना बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि पौष्टिक और सुरक्षित भोजन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है जो कि बीमारियों से लड़ने में सहायता प्रदान करता है और इसलिए खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक चरण में भोजन को सुरक्षित और गुणकारी रखने का प्रयास किया जाना चाहिए।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र, लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी वाला होने के साथ-साथ दुनिया का सबसे ज्यादा जैव-विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जो कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगे हैं। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर), पूर्वोत्तर राज्यों में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए बहुत अधिक प्रयास कर रहा है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि मणिपुर और मेघालय को हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा 2019-20 में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत के छोटे राज्यों में शीर्ष दो घोषित किया गया है। जनवरी 2016 में, सिक्किम भारत का पहला “ऑर्गेनिक” राज्य बना।

अर्जेंटीना के राजदूत श्री ह्यूगो जेवियर गोब्बी ने अपने संबोधन में कहा कि उनका देश दक्षिण-दक्षिण सहयोग के अंतर्गत भारत के साथ खाद्य सुरक्षा और सुरक्षा सहित सभी मुद्दों पर पूरा सहयोग कर रहा है।

इस अवसर पर एनईसीयू के कुलपति, डॉ. डारलैंडो खाथिंग, पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष, संजय अग्रवाल अध्यक्ष और पीएचडीसीसीआई के उपभोक्ता मामलों के अध्यक्ष, प्रो. बेजोन कुमार मिश्रा ने भी सभा को संबोधित किया।

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