जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने 19 जून 2021 को विश्व सिकल सेल रोग दिवस मनाने के लिएफिक्की, नोवार्टिस, पिरामल फाउंडेशन, अपोलो अस्पताल, एनएएससीओऔर जीएएससीडीओ के साथ साझेदारी में ‘भारत में सिकल सेल रोग’ पर दूसरा ऑनलाइन राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया।
इस कार्यक्रम में देशभर के सिकल रोग के विशेषज्ञों के साथ सिकल रोग के प्रबंधन में हालिया प्रगति को लेकर बातचीत की गई। इसमें बीमारी के प्रारंभिक निदान से लेकर नवीनतम दवाओं और रोग के उपचार में प्रगति तक की चर्चा की गई।
केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा और रेणुका सिंह सौता ने झारखंड के खूंटी और छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सिकल सेल रोग की जांच और समय पर प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए उन्मुक्त परियोजना के तहत मोबाइल वैन को झंडी दिखाकर रवाना किया। ये दोनों आदिवासी बहुल जिले सिकल सेल रोग से अधिक प्रभावित हैं।
श्री मुंडा ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय की तरफ से सिकल सेल रोग पर राष्ट्रीय परिषद के गठन और जनजातीय स्वास्थ्य प्रकोष्ठ की स्थापना के बारे में चर्चा की, जो स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित करने का काम करेगा। श्री अर्जुन मुंडा ने रियल टाइम डेटा की आवश्यकता पर बल दिया जो सिकल सेल रोगियों से संबंधित प्रासंगिक जानकारी और परीक्षण, दवाओं और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के संबंध में उनकी आवश्यकताओं के संबंध में जानकारी मुहैया कराने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने सिकल सेल सपोर्ट कॉर्नर के विकास के माध्यम से डेटा का केंद्रीय भंडार बनाने के लिए तंत्र तैयार किया है जिसे मंत्रालय के डैशबोर्ड पर पोस्ट किया गया है।
उन्होंने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आदिवासी आबादी की आने वाली पीढ़ियां इस बीमारी से मुक्त हों।”
मंत्री ने कहा कि मंत्रालय ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान दिया है। उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को विकलांगता प्रमाण पत्र की वैधता को 1 वर्ष से बढ़ाकर 3 वर्ष करने के लिए धन्यवाद दिया।
जनजातीय मामलों की केंद्रीय राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह ने कहा कि सिकल सेल रोग महिलाओं और बच्चों को अधिक प्रभावित कर रहा है और इस बीमारी की चपेट में आने सेलगभग 20 प्रतिशत आदिवासी बच्चे दो वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं, और 30% बच्चे वयस्क होने से पहले ही मर जाते हैं। उन्होंने सिकल सेल रोग (एससीडी) से निपटने के लिए सरल लेकिन अभिनव उपायों के बाद जागरूकता और रोकथाम को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने भारत के जनजातीय क्षेत्रों में सिकल सेल रोग से रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने और देखभाल की पहुंच बढ़ाने के लिए संयुक्त रूप से काम करने के लिए समान विचारधारा वाले संगठनों, फार्मास्युटिकल उद्योगों, निजी संगठनों, गैर-लाभकारी संगठनों के साथ बहु-हितधारक जुड़ाव के साथ-साथ सार्थक साझेदारी की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
जनजातीय मामलों के मंत्रायल के सचिव श्री अनिल कुमार झा ने कहा कि मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और राज्यों के समन्वय से यह सुनिश्चित करेगा कि सिकल सेल रोग के निदान और उपचार की सुविधाएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तर पर भी उपलब्ध हों। उन्होंने यह भी कहा कि इस बीमारी के उपचार में सभी सुविधाएं आदिवासी रोगियों के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। उन्होंने जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और इस प्रयास में मंत्रालय से जुड़े सहयोगी संगठनों के प्रयासों की सराहना की।
जनजातीय मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ. नवल जीत कपूर ने डेटा, परीक्षण, बुनियादी ढांचे, जागरूकता कार्यक्रम, प्रशिक्षण से संबंधित मुद्दों को प्रस्तुत किया और कहा कि मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से सिकल सेल रोग पर दिशानिर्देश और मानक संचालन प्रक्रिया का मसौदा तैयार कर रहा है। उन्होंने अगले 1 वर्ष के लिए मंत्रालय द्वारा तैयार की गई कार्य योजना के बारे में भी जानकारी दी।
चेयर-फिक्की स्वस्थ भारत टास्क फोर्स और डॉ लाल पैथ लैब्स के कार्यकारी अध्यक्ष कार्यकारी अध्यक्ष डॉ अरविंद लाल, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच के निदेशक डॉ अरारूप दास, सीएसआईआर, इंस्टीट्यूट ऑफ ग्नोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल, पिरामल फाउंडेशन के सीनियर वीपी डॉ शैलेंद्र हेगड़े, एशिया पैसिफिक क्लस्टर, नोवार्टिस के ऑन्कोलॉजी के प्रमुख श्री केविन जू और ग्लोबल अलायंस ऑफ सिकल सेल डिजीज ऑर्गनाइजेशन (जीएएससीडीओ) की प्रेसिडेंट और सीईओ श्री मैरी अम्पोमा ने भी इस विषय पर अपने विचार साझा किए।
कॉन्क्लेव में ‘मल्टीपल फेसेस ऑफ सिकल सेल डिजीज’ पर एक पैनल चर्चा हुई, जिसमें जनजातीय स्वास्थ्य केंद्र की सलाहकार डॉ विनीता श्रीवास्तव, एम्स की प्रोफेसर डॉ तुलिका सेठ, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच, जबलपुर मध्य प्रदेश के निदेशक डॉ अरूप दास, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली में बाल रोग विभाग की प्रमुख डॉ अनुपम सचदेवा, एससीआईसी, रायपुर के महानिदेक डॉ अरविंद नेरल; मध्य प्रदेश ब्लड सेल की उप निदेशक डॉ रूबी खान, जनरल मेडिसिन एंड प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, सिकल सेल इंस्टीट्यूट वीएसएसएमएसएआर, बुर्ला, ओडिशा के विभागाध्यक्ष डॉ पीके मोहंती, तेलंगाना के एनएचएम के ब्लड सेल की उप निदेशक डॉ नंदिता चौहान, ब्लड सेल गुजरात के एससीडी नियंत्रण कार्यक्रम परियोजना अधिकारीडॉ उमंग मिश्रा; एनएएससीओ के सचिव श्री गौतम डोंगरे, एनएसडीएल के एमडी और सीईओ डॉ सुरेश सेठी, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज नागपुर महाराष्ट्र में गायनोकोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अलका जाटकर, बाल रोग विभाग, जीएमसी, नागपुर, महाराष्ट्र की विभागाध्यक्ष प्रोफेसरदीप्ति जैन और नोवार्टिस ऑन्कोलॉजी इंडिया के महाप्रबंधक श्री सौमिल मोदी शामिल थे।