लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ते ही अयोध्या सीट चर्चा के केंद्र में आ ही जाती है. लेकिन इस बार यह कुछ अन्य कारणों से चर्चित है. दरअसल 1980 के दशक के बाद से पहली बार यहां पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक मुस्लिम प्रत्याशी बज्मी सिद्दीकी को चुनावी मैदान में उतार दिया है. यह इसलिए अहम है क्योंकि कम से कम पिछले तीन दशकों में पहली बार मुख्यधारा के दल ने किसी मुस्लिम प्रत्याशी को यहां से टिकट दिया है. यानी बसपा ने परंपरा को तोड़ते हुए यहां से मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है. उल्लेखनीय है कि अयोध्या सीट इसलिए खासी चर्चित मानी जाती है क्योंकि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद यहीं से शुरू हुआ और इसने भारतीय राजनीति पर खासा असर डाला.
यहां से बसपा के प्रत्याशी बज्मी सिद्दीकी फैजाबाद के बिजनेसमैन हैं. रियल एस्टेट का भी कारोबार शुरू किया है. पिछले साल अक्टूबर में एक महिला ने उनके खिलाफ बलात्कार का भी मामला दर्ज कराया था. फैजाबाद पुलिस ने उनके खिलाफ एक एफआईआर भी दर्ज की थी. हालांकि इस बारे में बज्मी का कहना है कि उनकी छवि को खराब करने की यह एक साजिश है.
बसपा का दांव
उल्लेखनीय है कि राज्य की 19 फीसद मुस्लिम आबादी को आकर्षित करने के लिहाज से बीएसपी ने इस बार अभी तक सर्वाधिक 97 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा की है. क्षेत्र के लिहाज से देखा जाए तो सबसे ज्यादा बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 149 सीटें हैं और बसपा ने यहां से 50 मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा है. यानी पार्टी के कुल मुस्लिम प्रत्याशियों में से तकरीबन आधे ऐसे प्रत्याशी यहां से चुनावी मैदान में हैं. इससे पहले पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 85 प्रत्याशी उतारे थे और उनमें से 15 चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे.
बसपा इस बार दलित-मुस्लिम (डीएम) कार्ड खेलने की इच्छुक दिखाई देती है. मुस्लिमों के बाद उसने सबसे ज्यादा परंपरागट वोटों के लिहाज से दलित प्रत्याशी ही उतारे हैं. उसके बाद संख्या के लिहाज से ब्राम्हण प्रत्याशियों का तीसरा स्थान है. इससे पहले 2007 और 2012 के चुनावों में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के तहत ब्राम्हण-दलित कार्ड खेला था. माना जाता है कि 2007 के चुनावों में इसी सोशल इंजीनियरिंग की बदौलत बसपा सत्ता में आई थी.
साभार एनडीटीवी इंडिया