उत्तर भारत के तीन राज्यों यूपी, उत्तराखण्ड एवं बिहार का राष्ट्रीय राजनीति एवं सामाजिक वातावरण की व्यवस्था बनाने में विशेष योगदान है। बिहार विधनसभा के चुनाव गत वर्ष सम्पन्न हो चुके हैं जबकि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने वाले सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तराखण्ड के चुनाव इसी माह सम्पन्न होने जा रहे हैं। इन तीनों प्रदेशों के साथ ही दिल्ली एक ऐसा राज्य है जहां सम्पूर्ण भारतवर्ष के सभी प्रदेशों की जनता एवं सरकारी कर्मचारी तथा व्यापारी समुचित मात्रा में निवास कर रहे हैं और इन चार प्रदेशों के चुनावी गणित से यह तय हो जाता है कि देश की जनता का रुख क्या है और वह किस दल और विचारधरा का समर्थन करती है और किस विचारधरा की विरोधी है फिलहाल अब उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश राज्य के विधानसभा चुनाव यह निर्णय दे देंगे कि देश में जो रहा है वह सही है अथवा गलत। इन सभी राज्यों तथा केन्द्र में अलग-अगल दलों की सरकारें हैं। यूपी में समाजवादी पार्टी, उत्तराखण्ड में कांग्रेस, बिहार में जनता दल जदयू, दिल्ली में आम आदमी पार्टी तो केन्द्र में भाजपा की सरकार है।
केन्द्र सरकार द्वारा गत वर्ष 8 नवम्बर को बिना किसी तैयारी अथवा पूर्व सूचना के लागू की गई नोटबंदी ने पूरे देश की जनता को झकझोर कर रख दिया। लगभग सभी वर्गों ने यह परेशानी झेली, मजदूरी और व्यवसाय दोनों प्रभावित हुए, देश की विकास दर घटी और वर्तमान चुनाव पर भी नोटबंदी का सीध प्रभाव नजर आ रहा है। प्रथम दृष्टव्या पिछले चुनावों की तुलना में इस बार प्रत्याशी भी अपेक्षाकृत कम ही हैं। प्रचार भी कम है और नोटबंदी से आहत राजनैतिक पार्टियों का प्रचार का भी पिछले चुनावों की तुलना में फीका है। नोटबंदी का जनता पर क्या प्रभाव पड़ा इसका चुनाव नतीजों से आकलन किया जा सकता है।
यूपी, उत्तराखण्ड में हो रहे विधनसभा के ये चुनाव राज्य के भविष्य निर्माण के साथ ही राजनैतिक दलों की नीति एवं नियति का भी फैसला करेंगे कि किस-किस दल की नीतियां सर्वसमाज को जोड़ने और भारत के संविधान के अनुरुप सभी ध्र्मों का समान आदर करने की हैं तो कौन सा दल धर्मिक उन्माद फैलाकर बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यकों में अलगाव की स्थिति पैदा करता है जो राजनैतिक दल देश के संविधान, समाज और धर्मों का सम्मान नहीं करता, देश को धर्म और समाज के नाम पर बांटने का काम करता है उसके प्रति जनता अपना निर्णय देगी। दोनों प्रदेशें की जनता इस बात का भी निर्णय करेगी कि उत्तराखण्ड में राजनैतिक अस्थिरता का वातावरण बनाकर विकास कार्य बाध्ति करने का दोष किसका है। जनता द्वारा चयनित सरकार को गिराकर केन्द्रीय व्यवस्था लागू करने से प्रदेश पर कैसा प्रभाव पड़ा और यह पूरा संघर्ष सत्ता के लिए हुआ या प्रदेश के विकास के लिए। जनता को यह भी निर्णय करना है कि राज्य में अब तक कार्यरत रही राज्य सरकारों में किस दल की सरकार ने अच्छा कार्य किया और किस दल ने सत्ता संघर्ष का खेल खेलकर राज्य को अवनति की ओर धकेला। यूपी एवं उत्तराखण्ड दोनों राज्यों ने पिछले लोकसभा चुनाव में एक तरफा मतदान किया उसके बदले में केन्द्र सरकार ने दोनों राज्यों के लिए क्या किया, इस चुनाव में दोनों राज्यों की जनता केन्द्र द्वारा दोनों राज्यों के साथ किए गए सहयोग या विरोध, राजनैतिक स्थिरता, संगठन में तोड़-फोड़ के आधर पर निर्णय लेगी।
उत्तराखण्ड के साथ ही उत्तर प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने में किस दल का हाथ था यह भी लगभग सिद्व हो चुका है और यूपी की जिस राज्य सरकार ने देश की आजादी के बाद से अब तक बनी राज्य सरकारों और यह कहें कि देश की सभी राज्य सरकारों से अच्छा कार्य किया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, वहां भी सपा परिवार को बांटने का कार्य किया गया इससे पूर्व घर वापसी और लव-जेहाद जैसे मुद्दे खड़े कर धर्मिक स्तर पर राज्य की जनता को बांटने का कार्य किया गया। जनता इस चुनाव में पूरी सूझ-बूझ के साथ निर्णय लेगी उसके साथ दोनों राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार की कार्यशैली का लेखा -जोखा है।
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