लखनऊ: उ0प्र0 कृषि अनुसंधान परिषद स्थित फसल मौसम सतर्कता समूह (क्राप वेदर वाच ग्रुप) के मत्स्य विशेषज्ञों एवं मत्स्य अधिकारियों ने मत्स्य पालकों को मछलियों को रोगों से बचाव हेतु उपयोगी सुझाव दिये हैं। उन्होंने मत्स्य पालकों को बताया है कि यदि पानी का तापक्रम 20 डिग्री से. से कम हो जाय तो मछलियों को आवश्यकतानुसार पूरक आहार दें।
तालाब में गोबर की खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग भी बंद कर दें। यदि एपीजोटिंक अल्सरेटिव सिण्ड्रोम से रोग ग्रस्त मछली जाल में आती है और रोग की प्रारम्भिक अवस्था में है तो 1 किग्रा0 पोटेशियम परमैग्नेट प्रति हे0 जलक्षेत्र की दर से घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें तथा 15 दिन के पश्चात 250 किग्रा0 बुझा हुआ चूना का घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें। पोटेशियम परमैग्नेट एवं चूना को 1 महीने के अन्तराल के बाद 3 बार घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें, अथवा रोगग्रस्त तालाब में मत्स्य रोग की रोकथाम हेतु 1 लीटर/हे0 की दर से सीफैक्स का घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें। जिन तालाबों में मछलियों को रोग नहीं लगा है उनमें भी 250 किग्रा0 प्रति हे0 की दर से बुझे हुए चूने का घोल बनाकर छिड़काव करें।
मत्स्य विशेषज्ञों/अधिकारियों ने मत्स्य पालकों को यह भी सुझाव दिया है कि झींगा मछली पालक झींगा मछलियों को शीघ्र ही तालाबों से निकाल करके उनकी बिक्री करें। सर्दी के मौसम के कारण तापमान कम होने के कारण झींगा मछलियों का नुकसान होगा।