भगवान बिरसा मुंडा की 146वीं जयंती के अवसर पर, राज्य जनजातीय अनुसंधान सह-सांस्कृतिक केंद्र और संग्रहालय (टीआरआई) द्वारा जनजातीय कार्य मंत्रालय के सहयोग से आजादी का अमृत महोत्सव के भाग के रूप में 11 नवंबर से लेकर 13 नवंबर 2021 तक उत्तराखंड जनजातीय महोत्सव का आयोजन किया गया। इस आकर्षक महोत्सव में बड़ी संख्या में आगंतुकों ने स्थानीय कला और शिल्प प्रदर्शनी में हिस्सा लिया और उत्तराखंड, झारखंड, उड़ीसा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश के जनजातीय समुदायों और देश के लगभग 15 राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रसिद्ध कलाकारों और शिल्पकारों के आकर्षक और उत्साहपूर्ण भागीदारी का स्वागत किया। अपनी रचनात्मक कला, शैक्षणिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का प्रदर्शन करते हुए, उत्तराखंड के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) के छात्र भी इस उत्सव में उत्साहपूर्वक शामिल हुए।
नगालैंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य राज्यों के कारीगरों और शिल्पकारों ने स्वदेशी हस्तनिर्मित उत्पादों का बिक्री करने के लिए उनका प्रदर्शन किया। उन्होंने विविध प्रकार के हस्तशिल्पों, आभूषणों, शीतकालीन पोशाकों, ट्राइबल फ्यूजन फैशन, चित्रकलाओं, कालीन, पारंपरिक दवाओं और अन्य चीजों का प्रदर्शन किया। ऐपन चित्रकारी और पॉटरी निर्माण जैसी जीवंत गतिविधियों का भी आयोजन किया गया और प्रतिभागियों के बीच जलपान का वितरण किया गया।
इस अवसर पर श्री एस. एस.टोलिया, निदेशक, जनजातीय कल्याण विभाग, उत्तराखंड ने घोषणा की कि वास्तव में यह आयोजन”आत्मनिर्भर भारत” और “लोकल फॉर वोकल” की भावना को आत्मसात करता है। विभाग की यह कोशिश थी कि जनजातीय कारीगरों और शिल्पकारों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने और उन्हें वित्तीय लाभ प्रदान करने के लिए एक मंच उपलब्ध कराया जाए।
नगालैंड के अंगामी जनजाति के कारीगरों ने कैशमिलन ऊन से हास्तनिर्मित शीतकालीन वस्त्रों का प्रदर्शन किया। झारखंड के उरांव जनजाति ने पश्चिम बंगाल की जनजातियों के साथ मिलकर हस्तनिर्मित कृत्रिम आभूषणों का उत्पादन किया, जो हस्तनिर्मित जूट बैग, गुड़िया, खिलौने और प्रजातीय कुर्तियां अपने साथ लेकर आए थे। इसके अलावा असम के राभा, बोडो और मिसिंग जनजातियों द्वारा बनाई गई एथनिक मेखला और दोखोना साड़ी, राजस्थान से एथनिक पारंपरिक आभूषण, मध्य प्रदेश से गोंड चित्रकारी, पंजाब से कलाकृतियां, प्राकृतिक रंगों से बनी हुई कलमकारी प्रिंट और आंध्र प्रदेश की पेडाना जनजाति द्वारा बनाई गई हैंडब्लॉक प्रिंट ने इस प्रदर्शनी में लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
नगालैंड के कोहिमा से आई एक कारीगर खैरीलाजोमो काइवुओ ने इस समारोह में हिस्सा लेने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। इसके अलावा, उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विविधता और कारीगरों और शिल्पकारों को रोजगार देने वाले विभिन्न अवसरों को बढ़ावा देने के लिए जनजातीय विभाग के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि वह सात बहन वाले राज्यों की प्रतिनिधि हैं और यह उनकी पहली उत्तराखंड यात्रा है।
एक अन्य कारीगर अनूपा कुजूर, जोरांची, झारखंड से आई थी, उन्होंने देश की कला और संस्कृति को बढ़ावा देने, उन्हें एक छत के नीचे एकजुट करने और कारीगरों और शिल्पकारों को लाभ प्रदान करने के लिए सरकार की पहल को अभिस्वीकृति प्रदान की। उसका स्टॉल ग्राहकों से खचाखच भरा हुआ था और वह इस उत्सव में शामिल होकर पर बहुत ही खुश लग रही थी।
उत्तराखंड के स्वदेशी जनजातीय कारीगर जैसे भोटिया, थारू, राजी, बोक्सा और जौनसारी ने भी अपनी कला और शिल्प का प्रदर्शन किया जैसे कि ड्रिफ्टवुड कला, टोपी और जैकेट, चित्रकारी, कालीन, ऊनी वस्त्र और बहुत कुछ।
सांस्कृतिक संध्या में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) के छात्र-छात्राओं और उड़ीसा, झारखंड और उत्तराखंड के जनजातीय समूहों ने संगीत संबंधी विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया। रेशमा साहा और राजेंद्र चौहान जैसे प्रसिद्ध कलाकारों ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। इसका समापन सायं काल में प्रसिद्ध गायक गोविंद डिगारी के मंत्रमुग्ध अभिनंदन के साथ हुआ। पहाड़ी, पंजाबी और हिंदी गीतों की धुनों पर थिरकने से दर्शक अपने आपको नहीं रोक पाए।
देहरादून में आयोजित उत्तराखंड जनजातीय महोत्सव के समापन समारोह को श्री एन. एस. नपलच्याल,पूर्व मुख्य सचिव एवं पूर्व अध्यक्ष, उत्तराखंड जनजातीय आयोग नेश्री एस.एस. टोलिया, निदेशक, उत्तराखंड जनजातीय कल्याण विभाग, श्री योगेंद्र रावत, अतिरिक्त निदेशक, उत्तराखंड जनजातीय कल्याण विभागऔर अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थित में अपने संबोधन के साथ किया। जनजातीय कलाकारों द्वारा किए गए उल्लेखनीय सांस्कृतिक प्रदर्शन ने भारत की विविधता में एकता के सार को प्रस्तुत किया।
तीन दिनों तक चलने वाली इस महोत्सव की सबसे उल्लेखनीय विशेषता एक्सपेरिमेंटल गैलरी थी, जिसकी सराहना केंद्रीय कैबिनेट मंत्री श्री अर्जुन मुंडा और मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा की गई।उत्तराखंड जनजातीय महोत्सव की प्रदर्शनी में 15 राज्यों के जनजातीय कारीगरों और शिल्पकारों ने अपने द्वारा हस्तनिर्मित सर्वोत्तम उत्पादों का प्रदर्शन और बिक्री की। थारू, भोटिया, राजी और जौसरी जैसे जनजातीय कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया। सायं काल को जाने-माने कलाकार किशन महिपाल ने अपने संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
श्री राजीव सोलंकी, अनुसंधान अधिकारी, उत्तराखंड जनजातीय कल्याण विभाग, ने दूसरे राज्यों और दूर-दराज के स्थानों से आए प्रतिभागियों, कारीगरों और शिल्पकारों को इस महोत्सव में शामिल होने के लिए बधाई दी। उन्होंने यह भी घोषणा की कि इस महोत्सव में पारंपरिक मूल्यों, संस्कृति और कला को बहुत ही उपयुक्त ढ़ंग से दर्शाया गया है और समुदायों को आश्वासन भी दिया कि विभाग उनकी उन्नति और समृद्ध भविष्य के लिए लगातार काम करेगा, उन्होंने यह भी कहा कि पारंपरिक संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिए नियमित रूप से इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
उत्तराखंड जनजातीय महोत्सव को जारी रखते हुए, राज्य जनजातीय अनुसंधान सह-सांस्कृतिक केंद्र और संग्रहालय, उत्तराखंड ने भारत सरकार द्वारा घोषित किए गए ‘जनजातीय गौरव दिवस’ को मनाने के लिए ट्राई परिसर, देहरादून में विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया। आईटीआई खटीमा, उत्तराखंड ने भी इस अवसर पर खेल गतिविधियों का आयोजन किया। उत्तराखंड के राज्यपाल, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने राजभवन में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय कलसी, देहरादून, उत्तराखंड के पूर्व छात्रों को, प्रधानाचार्य श्री जी. सी.बडोनी और उपप्रधानाचार्य श्रीमती सुधा पैनौली के साथ, शिक्षा में उनकी असाधारण उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया।