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उत्तराखण्ड के विकास पुरूष- सतपाल महाराज

राजनेता है, साधू भी हैं, संत भी है और सूफी भी हैं- देश के गौरव सतपाल जी महराज
उत्तराखंडसम्पादकीय

उत्तराखण्ड राज्य के राजनीतिक दृश्य पट पर इन दिनों एक अजीब सा भूचाल आया हुआ है वैसे कायदे से यह वर्ष आम चुनाव का वर्ष है। उत्तराखण्ड के चुनाव धोषित होते ही सतारूढ़ कांग्रेस जो अभी तक जमी थी, अचानक बिखरने कैसे लगी। बताया जा रहा है कि जब से उत्तराखण्ड के राजनैतिक गुरू चाणक्य सतपाल महाराज का चैबट्टाखाल से विधान सभा का चुनाव लड़ने एक शुरूआत भर है।

राजनैतिक के जरिये अंख्यक दबे-थके और कमजोर लोगों की पीड़ाओं में मलहम लगाने का लिए राजनीति करने की प्रेरणा दिलाई है। यही नहीं उन्होंने उत्तराखण्ड में सेवा भाव से आधुनिक कांग्रेस की नींव उनके द्वारा रखी गई थी। परन्तु बार-बार कांग्रेस पार्टी ने उनकी उपयोगिता को अनदेखा कर भष्ट नेताओं को उत्तराखण्ड राज्य की बागडौर सौपी गयी। जिससे सतपाल महाराज ने बडे़ दुखी मन से विकास पुरूष श्री नरेन्द्र मोदी का दामन पकड़ा तो सदा-सदा के लिए बीजेपी के होकर रह गये और दुगुने जोश के साथ बीजेपी की नीतियों और विकास पुरूष मोदी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नक्शे कदम पर चलने के संकल्प के साथ देश-विदेश में भारतीय जनता पार्टी के विश्व बधुत्व, विश्वशांति और अंहिसा के सिद्वांतो को अपने अहनिर्ष प्रयासों से प्रचारित करने में तन-मन-धन से जुटे हुए है। जिसका उत्तराखण्ड़वासियों को सदा गर्व रहेगा।

यह सच है कि उत्तराखण्ड में विपक्ष की अभी तक कांग्रेस को चुनौती दे पाने लायक अपनी हैसियत नहीं बना पाया है। जबसे सबसे पहले सतपाल महाराज ने कांग्रेस छोड़ी। उनके साथ धीरे-धीरे सभी वरिष्ठ कांग्रेसियों एक लम्बी फेरिस्ट के साथ बीजेपी का दामन पकड़ने लग गये। जिससे सतपाल महाराज का बीजेपी में जाना जो कांग्रेस हाईकमान के लिए परेशानी का कारण बन चुके है। आज पूरा उत्तराखण्ड़ कांग्रेस विहीन होता जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री को सतपाल महाराज का बीजेपी में जाने से उन्हें लग रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस डूब जायेगी। हरीश रावत ने कई वरिष्ठ नेताओं के टिकट काटकर पी0डी0एफ के सरकार के सहयोगी दल के नेताओं को टिकट देकर विद्रोही कांग्रेस नेता हरीश रावत के लिए पेपरवेट की तरह सवार है। जिसके कारण वह स्वतंत्र रूप में चुनाव का काम नहीं कर पा रहे है।

यह भी देखा गया है कि कांग्रेस पर्यवेक्षक चुनाव के समय दिखावटी अधेमन से प्रचार-प्रसार कर रहे थे। राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सतपाल महाराज बीजेपी के कर्मठ और स्वमिभक्त हैं और उनके जरिये अपनी छवि बनाने का प्रयास करते है, उत्तर प्रदेश में स्वर्गीय हेमवती नन्दन बहुगुणा के साथ अल्पसंख्यको का विश्वास एवं आत्मीयता थी। ठीक उसी प्रकार उत्तराखण्ड राज्य में सतपाल महाराज के पीछे अल्पसंख्यक लोग है। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में दो ही व्यक्ति ऐसे है जिसमें अल्पसंक्ष्ख्यक समुदाय विश्वास करते है। वे है युग पुरूष माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी दूसरा सतपाल महाराज जी है

भारत वर्ष में उत्तराखण्ड़ राज्य अकेला ऐसा राज्य है जहां अल्पसंख्यक लोग सबसे अधिक सुरक्षित स्थान मानते है। यहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ मैत्रीपूर्ण ढ़ग से गंगा यमुना संस्कृति में आराम और सुविधापूर्ण रूप से जी रहे है। उत्तराखण्ड राज्य में हिन्दु-मुस्लिम एकता की एक मिसाल के रूप में पहचाना जा रहा है।

कांग्रेस हाईकमान इस दुविधा में है कि सतपाल महाराज बीजेपी समर्पित उत्तराखण्ड प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते है तो उत्तराखण्ड प्रदेश में कांग्रेस का नाम लेने वाला कोई नही होगा?

देश-विदेश में भारतीय जनता पार्टी का गौरव बढ़ाने के जो अथक प्रयास उनके द्वारा किये जा रहे हैं। गांधी जी को सम्मान दिलाने के लिए उन्होने मुर्ति विदेश में लगाने के जो यत्न उन्होने किये है। उससे भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में उनके लिए स्थान सुरक्षित हो गया है। गांधी जी के परम् शिष्य होने और उन्हीं के अनुरूप अपनी वेष-भूषा बनाये रखने के कारण उत्तराखण्ड़ के गंाधी के नाम से पहचाने जाते है। सामान्य सफेट खादी का कुर्ता, चुड़ीदार पैजामा और सर पर सफेद टोपी, अब तो भारतीय जनता पार्टी का भग्वा दुपट्टा और कभी-कभी काली टोपी उन्हे किसी शान्ति दूत से कम नहीं आंकती। वाणी में माधुर्य कार्य में चातुर्य उनकी पहचान बनकर उन्हे आलोकित कर रही है।
(यह संपादक के निजी विचार है।)

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