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देशभर में जनजातीय समुदाय का सशक्तिकरण: वनधन विकास योजना

देश-विदेश

प्रस्तुत विवरण न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से लघु वन उपजों (एमएफपी) के विपणन की प्रक्रिया के माध्यम से लघु वन उपजों के महत्व की श्रृंखला तैयार करने के एक घटक वनधन जन जातीय स्टार्ट-अप्स कार्यक्रम की सफलता को फिर से दर्शाता है। यह  कार्यक्रम  महाराष्ट्र के ठाणे जिले में शाहपुर की वीडीवीके आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था में जनजातीय उद्यमशीलता की सफलता गाथा का चित्रण है। साथ ही इस योजना से यहां स्थानीय जनजातियों को रोजगार का एक बड़ा अवसर भी मिला है I

वीडीवीके आदिवासी एकात्मिक संस्था, शाहपुर जनजातीय उद्यमशीलता का आदर्श उदाहरण है जो यह दर्शाता है कि सामुदायिक विकास और उत्पादों की मूल्य वृद्धि से किस प्रकार संस्था के सदस्यों की आय में बड़ी वृद्धि करने में सहायता मिल सकती है।

पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं से घिरा शाहपुर महाराष्ट्र के ठाणे जिला का सबसे बड़ा तालुका है और इसे भविष्य का विकसित क्षेत्र समझा जाता है। इस क्षेत्र में रहने वाली अधिकतर  जनजातियां यहां के वीडीवीके की सदस्य हैं और कात्करी समुदाय से आती हैं। कात्करी महाराष्ट्र (पुणे, ठाणे और रायगढ़) और गुजरात के कुछ भागों में रहने वाला सबसे पुराना जनजातीय समुदाय है। ये आदिवासी ग्रामीण श्रमिक हैं और जलावन की लकड़ी के साथ ही वनों में होने वाले फल बेचा करते हैं।

इस समुदाय के उद्यमशील सदस्य श्री सुनील पवारन और उनके मित्रों ने वनधन योजना के अंतर्गत अपरिष्कृत (कच्ची) गिलोय की बिक्री करने के लिए इस संस्था को शुरू किया था। अब इसके 300 सदस्य हैं। वीडीवीके के कार्यों का दायरा अब बहुत बड़ा हो गया है और अब यहां 35 से अधिक उत्पादों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से जुड़े कार्य संपादित किए जाते हैं I

गिलोय चूर्ण बनाने की प्रक्रिया आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा गिलोय की लताओं से गिलोय काटने से शुरू होती है और इसके बाद उन्हें अगले 8-10 दिनों तक सुखाया जाता है। सूखी हुई गिलोय को शाहपुर कार्यशाला में लाकर उसे पिसा और थैलियों में बंद करने के बाद उस पर ठप्पा लगा कर खरीददारों को भेजा जाता है जिनमें ट्राइब्स इण्डिया भी शामिल है। पिछले डेढ़ वर्ष के दौरान इस समूह ने 12,40,000/- रूपये (बारह लाख चालीस हजार रुपये) मूल्य का गिलोय चूर्ण और 6,10,000 रुपये मूल्य की सूखी गिलोय की बिक्री की है। इस प्रकार कुल मिलाकर 18,50,000 रुपये मूल्य के उत्पादों की बिक्री हुई।

एक समूह के रूप में कार्य करते हुए वीडीवीके ने पिछले डेढ़ वर्ष की अवधि में कई बड़ी कंपनियों, जिनमें डाबर, बैद्यनाथ, हिमालया, विठोबा, शारंधर, भूमि नेचुरल प्रोडक्ट्स केरला, त्रिविक्रम और मैत्री फूड्स शामिल हैं, को कच्ची गिलोय बेची है। इनमें से हिमालया, डाबर और भूमि ने अब तक इस संस्था को 1,57,00,000/- (एक करोड़ 57 लाख) रुपये मूल्य की 450 टन गिलोय की आपूर्ति करने के लिए आदेश दिया है।

जहां एक ओर वैश्विक महामारी कोविड-19 और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण वीडीवीके का काम रुक गया पर इसके चलते संस्था के कर्मियों के उत्साह और मनोबल में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने इस संकट के दुष्प्रभावों को कम से कम रखने के लिए इस दौरान कठोर परिश्रम भी किया।

मार्च 2020 से आधे जून 2020 की अवधि में वीडीवीके ने स्थानीय आदिवासियों से 34,000 किलोग्राम से अधिक मात्रा में गिलोय खरीदी। फिर लॉकडाउन समाप्त होने और धीरे-धीरे स्थिति के सामान्य होने के बाद वीडीवीके अब तेजी से काम को बढ़ा रही है और ई-प्लेटफॉर्म पर भी अपने उत्पादों को बिक्री के लिए उपलब्ध करवा रही है।

एक ओर जहां अपरिष्कृत (कच्ची) और प्रसंस्कृत गिलोय अभी भी वीडीवीके के कारोबार का मुख्य आधार है वहीं अब यह संस्था सफ़ेद मूसली, जामुन, बहेड़ा, वायविडंग, मोरिंगा, नीम, आंवला और संतरे के छिलकों का चूर्ण जैसे पदार्थों के क्षेत्र में भी अपने कारोबार को बढ़ा रही है।

इस सफलता ने इस समुदाय के हजारों लोगों को प्रेरित किया है और अब वे ऐसे ही कई क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं। अभी तक 12,000 लाभार्थियों वाली 39 वीडीवीके संस्थाओं को ट्राइफेड ने अतिरिक्त रूप से अपनी मंजूरी दी है I

वनधन जन जातीय स्टार्ट-अप्स कार्यक्रम, न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से लघु वन उपजों (एमएफपी) के विपणन की प्रक्रिया के माध्यम से लघु वन उपजों के महत्व की श्रृंखला तैयार करने का एक घटक है। वनधन विकास योजना वनों में रहने वाले आदिवासियों को स्थायी रूप से लम्बे समय तक जीविकोपार्जन का साधन देने के लिए वनधन केन्द्रों की स्थापना के माध्यम से लघु वन उपजों की मूल्य वृद्धि, ब्राडिंग और क्रय-विक्रय करने का कार्यक्रम है। इस योजना का उद्देश्य जनजातियों को उनका अपना व्यवसाय बढ़ाने एवं आय में वृद्धि के उद्देश्य से वित्तीय पूंजी निवेश, प्रशिक्षण, संरक्षण जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देकर उनका सशक्तिकरण करना है।

लघु वन उपजों की मूल्यवृद्धि, ब्रांडिंग और विपणन के माध्यम से गंभीरता पूर्ण प्रयासों, समर्पण और दृढ़ निश्चय के साथ एक साथ शुरू किए गए जनजातीय उद्यमशीलता के इन सामूहिक प्रयासों के कारण ये वीडीवीके इस तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्र में सफल सिद्ध हो रहे हैं।

वीडीवीके की सफलता इस बात का उदाहरण है कि ‘गो लोकल फॉर वोकल– मेरा वन मेरा धन मेरा उद्यम के लक्ष्य के साथ कैसे ट्राइफेड की ऐसी पहलें आत्मनिर्भर अभियान के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बना रही हैं और जिससे पूरे देश में जनजातीय पारिस्थितिकी में आमूल-चूल परिवर्तन होने लगा है।

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